Thursday, 30 December 2021

ye din ye mahine

 ये दिन ये महिने


कैलेंडर शब्द यूनान का है इसका अर्थ है मैं चीखता हूँ या में आवाज लगागा हूँ यूनान में पहले आवाज लगाकर कि कौन सा दिन और तारीख दे, किस दिन बाजार की बंदी है तथा किस तारीख को किराया वसूला जायेगा दिनों तारीखों और छुट्टियों का हिसाब रखने वाला यही शब्द बाद में कलैंडर में तब्दील हो गया।




भारतीय वर्ष छः )तुओं में बांटा गया है। बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर हेमन्त। भारतीय वर्ष का प्रारम्भ बसंत )तु से होता हैं जब सर्दी और पतझड़ के बाद वृक्षों पर नव पल्लवों का अंनुकरण प्रारम्भ होता है। इन )तुओं कको बारह मास में विमक्त किया गया है। मास का प्रारम्भ पूर्ण चन्द्र या पूर्णिमा के दिन से होता है। पन्द्रह दिन शुक्ल पक्ष और पन्द्रह दिन कृष्ण पक्ष के इस प्रकार  पूरा माह। इन माह के नाम हैं चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, क्चार, कार्तिक, पौष, माघ, फाल्गुन।

भारतीय विद्वानों ने हफ्तों के नाम ग्रहों पर आधारित किये क्योंकि ज्योतिष विद्या के अनुसार ग्रहों की स्थिति का हमारे जीवन पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है। पूरे वर्ष हम ग्रहों के प्रभाव में ही रहते है। अंग्रेजी महिनों के अनुसार यह मार्च से प्रारम्भ होता है। आधुनिक केलैंडर पश्चिमी कलैंडर पर आधारित है जो पूर्णतः रोमन केलैंडर हैं। रोमनवासियों ने दिन एवम् महिनों के नाम सूर्य चन्द्र एवम् यु( के देवी देवताओं के नाम पर रखे हैं या प्रसि( व्यक्तियों के नाम पर लेकिन ये नाम ही क्यों प्रयोग किये गये इनके पीछे भी कहानियाँ हैं।

रविवार ;ैनद.कंलद्धरू प्राचीन काल में आकाश में घूते आग के गोले को देख सभी हैरान थें। उसके विषय में कोइगर्् भी कुछ कहने में असमर्थ था। दक्षिणी यूरोप के निवासियों ने सोचा अवश्य कोई देवता है जो आग के गोले को आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक खींचता है। अपनी भाषा में उन्होंने इस शक्तिशाली देवता को नाम दिया सोल ;ैवसद्ध यह भाषा लैटिन थी। प्रथम दिन का नाम दिया सूर्य का दिन ;कपमे ैवसपेद्ध बाद में उत्तरी यूरोप के निवासियों ने भी सूर्य को आदर से नाम दिया लेकिन यह भाषा दूसरी थी यह अंगे्रजी थीं और नाम दिया सनानडेग ;ैनदंदकवमहद्ध जो वर्षों बाद बना सन-डे।

भारतीय विद्वानों के अनुसार भी सूर्य सर्वाधिक शक्तिशाली ग्रह हैं उनके अनुसार भी सूर्य को ही सर्वाधिक आदर दिया और प्रथम दिन का नाम रखा गया रविवार।

सोमवार ;डवद.कंलद्धरू दक्षिण यूरोप के निवासियों ने रात्रि में चांदी की तरह चमकती गेंद को भी पूरा सम्मान दिया लैटिन में उसका नाम था लूना ;स्नदंद्ध और दिन को नाम दिया चंद्र का दिन ;स्नदं कपमेद्ध उत्तरी यूरोप के व्यक्तियों ने चंद्रमा को सम्मान दिया और नाम रखा चंद्र का दिन ;डवदंद कंमलद्ध आधुनिक अंग्रेजी में जो हुआ डवदकंल 

भारतीय ने भी चंद्रमाको द्वितीय स्थान दिया नामकरण हुआ सोमवार।

मंगलवार ;ज्नमेकंलद्धरू रोमवासियों को विश्वास था कि एक यु( का देवता ट्यू ;ज्पूद्ध होता है एवम् वह उन्हीं यो(ाओं की सहायता करता है जो उसकी पूजा करते हैं किसी यो(ा की मृत्यु पर यु( का देवता युवा स्त्री सहयिकाओं के साथ  पर्वतीय निवास स्थान से उतरकर आता है और मृत यो(ा को अपने साथ ले जाता है जहाँ यो( की आत्मा शांत और सुंदर स्थान पर वास करती है।

इन्हीं यु( देवता को सम्मान दिया और सप्ताह के तीसरे दिन को नाम दिया टिउसडेग ;ज्नमेकंलद्ध अंग्रेजी में नाम हुआ टयूजडे ज्नमेकंल।

हिन्दुओं ने बाकी सब दिनों के नाम भी सूर्य के पास रहने वाले अन्य शक्तिशाली ग्रहों के नाम पर ही रखें। जैसे मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र, शनि।

बुधवार वैडनैसडे ;ॅमकदमेकंलद्ध: उत्तरी यूरोप के निवासी मानते है कि सब देवताओं में शक्तिशाली है बोदन देवता। ये देवता ज्ञान की तलाश में स्थान स्थान पर घूमते हैं यहाँ तक कि ज्ञान अर्जन के लिये इन्हें अपनी एक आँख भी देनी पड़ी। दो काली चिड़ियाएँ इनके दोनों कंधों पर सवार रहती हैं। चिड़ियाएँ रात को नीचे पृथ्वी पर आती है और जाकर वोदन को सारी पृथ्वी पर घटनाऐ सविस्तार बताती हैं इस प्रकार वोदन की पृथ्वी पर घटी घटनाओं का ज्ञान रहता है। ऐसे देवता को एक दिन का नाम रख कर सम्मान दिया वैडनैसडे और अंगेजीह में हुआ वैडनैसडे ॅमकदमेकंल।

वृहस्पतिवार ;ज्ीनेकंलद्ध थर्सडे: पहले लोगों की समझ में नहीं आता था कि ये बादल और बिजली है क्या? एक पतली रेखा चमकती और भंयकर गड़गड़ाहट होती उन्होंने समझा यह किसी देवता की कोई क्रिया है उन्होंने उस देवता को नाम दिया थोर ;ज्ीवतद्ध। उनके अनुसार जब थोर देवता क्रोधित होते हैं एक विशाल हथौड़ा आकाश में फेकते है वह है बिजली और हथौड़ा फेकते समय वे बकरियों से जुते रथ पर दौड़ते हैं पहियों की आवाज ही गड़गड़ाहट है।

भयग्रस्त निवासियों ने देवता को प्रसन्न करने के लिये एक दिन उसे समर्पित किया नाम दिया थर्सडेग और अंग्रेजी में थर्सडे ;ज्ीनतेकंलद्ध।

शुक्रवार ;थ्तपकंलद्ध यूरोप के निवासियों के अनुसार एक सुन्दर सहृदय देवी हैं फ्रिग ओर ये पृथ्वी पर मृत यो(ाओं की देखभाल करती है। मृत व्यक्ति को अन्य देवतागण देवी फ्रिंग के पास ले जाते है जो उन्हें जीवन प्रदान करती है। जीवनदायनी देवी को एक दिन समर्पित किया फ्रिगडेग। अंग्रेजी ने उसे अपनी भाषा में परिवर्तित फ्राइडे थ्तपकंल।

शनिवार ;ैंजनतकंलद्ध: रोमवासी खेती बाड़ी का देवता सैटर्न मानते थे। उनके मतानुसार अच्छा या खराब मौसम सैटर्न की इच्छा पर निर्भर करता है उसकी के हाथ में वर्षा है। रोम का किसान खेती प्रारम्भ करने से पहले सैटर्न की पूजा करता है और किसी जानवर की बलि चढ़ाता है। उसी सैटर्न के नाम पर रोमवासियों ने एक ग्रह का नाम रखा सैटर्नीडैग और अंग्रेजी मेें नाम हुआ ;ैंजनतकंलद्ध।

जनवरी: प्रारम्भ में रोमन कलैंडर में दस ही महिने होते थे। एक रोमन सम्राट ने दो महिने और जोड़ने चाहे लेकिन उसके लिये दो नामों की आवश्यकता थी। उस समय रोमवासी एक दो मुँह वाले देवता जेनम में विश्वास करते थे जिनका एक मुँह भविष्य की ओर रहता था और एक अतीत की ओर। सम्राट ने सोचा एक माह का नाम जेनस के नाम पर रखना बहुत अच्छा रहेगा जिससे साल समाप्त होने पर व्यक्ति सोच सके कि बीते साल हमने क्या किया और आगामी वर्ष में क्या करना है इसलिये उन्होंने इस माह को कहना आरम्भ किया जेनरस ;श्रंदनंतपनेद्ध आज अंगेजी में इसे जनवरी ;श्रंदनंतलद्ध कहते है।

फरवरी ;थ्मइतनंतलद्धः अब सम्राट ने अन्य दूसरे महिने के लिये नाम ढूँढ़ना प्रारम्भ किया। सफाई करने को लैटिन में फैब्रम ;थ्मइतनतउद्ध कहते हैं सम्राट ने सोचा बहुत सी बातों के लिये हम पछताते हैं एक हमने ऐसा क्यों किया आगामी वर्ष में हम गलतियाँ न दोहराये और आगामी वर्ष साफ स्वच्छ रखें इसके लिये उसने साल के अंतिम माह को नाम दिया फ्रेवेरस ;थ्मइतनंतपनेद्ध अंग्रेजी में इसे फरवरी ;थ्मइतनंतलद्ध कहा जाता है।

पहले साल का प्रारम्भ मार्च से होता था लेकिन जूलियस सीजन के बाद में इन्हें वर्ष के प्रारम्भ में रख दिया था।

मार्च ;डंतबीद्ध: रोमन व्यक्ति एक अन्य यु( देवता मार्स ;उंतेद्ध में विश्वास रखते थे उन देवता केप्रति अपनी श्र(ा और आदर की अभिव्यक्ति प्रकट की और इस माह को नाम दिया। मार्टस ;डंतजपनेद्ध अंगे्रजी में मार्च कहा जाने लगा। 

अप्रैल ;।चतपसद्ध चतुर्थ माह में पौधे अंगड़ाई लेकर उठ बैठते हैं और चारों ओर फूल खिल उठते हैं। रोमनों ने प्रकृति के इस जागने को व्यक्त किया एक लैटिन शब्द एपीरियों ;व्चमतपवद्ध में जिसका अर्थ हैं जग जाना। उस माह को पुकारा गया एप्रिलिस और अंगे्रजी में एप्रिल ;।चतपसद्ध।

मई ;डंलद्ध मे या मई रोमनों के अनुसार बसंत की देवी माया नवीन पौधों की सुरक्षा करती हैं और उन्हें उगने में सहायता करती हैं जो मानव को जीवन प्रदान करते हैं। एक महिने को उन देवी को समर्पित किया और नाम दिया मायस ;उंपनेद्ध जो अंग्रेजी में पुकारा जाने लगा मई ;डंलद्ध।

जून ;श्रनदमद्ध: रोमनों के अनुसार जूनो सभी देवियों की देवी है। जूनस ;श्रनदपनेद्ध माहसकी मृत्यु के पश्चात उस माह को जूलियस कहा जाने लगा और अंग्रेजी तक आते आते बना जुलाई ;श्रनसलद्ध।

अगस्त ;।नहनेजद्ध: जूलियस सीजर की मृत्यु के कुछ वर्ष बाद सीजर के भतीजे अगस्टस ने रोमन साम्राज्य संभाला। अगस्टस की इच्छा थी कि वह भी सीजर के समान महान सम्राट कहलाये सो उसने इस माह का नाम बदल का अगस्टस रख दिया जो अगस्त कहलाने लगा। पहले जुलाई में अगस्त से एक दिन ज्यादा होता था उसने फरवरी में से एक दिन लेकर अपने नाम के माह में जोड़ दिया। इस प्रकार जुलाई और अगस्त दोनों में 31 दिन हो गये इस प्रकार अगस्टस अपने को सीजर के समकक्ष समझने लगा।

सैप्टम्ब्र, अक्टूबर, नवम्बर एवम् दिसम्बरः प्रारम्भिक रोमन कलैंडर में पहले केवल दस माह होते थे और उनके नाम नम्बरों पर आधारित थें सात के लिये लैटिन शब्द है सैप्टम, आठ के लिए ओक्टो, एवम् नौ के लिए नोवम् और लैटिन शब्द दिसम दस के लिये प्रयुक्त किया जाता था। इस प्रकार पुराने कलैंडर के सातवें, आठवें, नौवे, दसवें माह पुकारे जाने लगे। सैप्टम्बर, अक्टूबर, नवम्बर, एवम् दिसम्बर। बाद में इसमें जनवरी और फरवरी दो माह और जोड़ गये। लेकिन अब जनवरी फरवरी साल के प्रारम्भिक माह हैं और आधुनिक कलैंडर के अनुसार सितम्बर अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर माह के सातवें, आठवें, नवें एवम् दसवे माह नहीं है लेकिन फिर नामों का प्रयोग उसी ढंग से किया जाता है। का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया।

जुलाई ;श्रनसलद्ध: यूलियस सीजर रोम का महान् सम्राट था। जुलाई माह उसके जन्म का माह था।

सकी मृत्यु के पश्चात उस माह को जूलियस कहा जाने लगा और अंग्रेजी तक आते आते बना जुलाई ;श्रनसलद्ध।

अगस्त ;।नहनेजद्ध: जूलियस सीजर की मृत्यु के कुछ वर्ष बाद सीजर के भतीजे अगस्टस ने रोमन साम्राज्य संभाला। अगस्टस की इच्छा थी कि वह भी सीजर के समान महान सम्राट कहलाये सो उसने इस माह का नाम बदल का अगस्टस रख दिया जो अगस्त कहलाने लगा। पहले जुलाई में अगस्त से एक दिन ज्यादा होता था उसने फरवरी में से एक दिन लेकर अपने नाम के माह में जोड़ दिया। इस प्रकार जुलाई और अगस्त दोनों में 31 दिन हो गये इस प्रकार अगस्टस अपने को सीजर के समकक्ष समझने लगा।

सैप्टम्ब्र, अक्टूबर, नवम्बर एवम् दिसम्बरः प्रारम्भिक रोमन कलैंडर में पहले केवल दस माह होते थे और उनके नाम नम्बरों पर आधारित थें सात के लिये लैटिन शब्द है सैप्टम, आठ के लिए ओक्टो, एवम् नौ के लिए नोवम् और लैटिन शब्द दिसम दस के लिये प्रयुक्त किया जाता था। इस प्रकार पुराने कलैंडर के सातवें, आठवें, नौवे, दसवें माह पुकारे जाने लगे। सैप्टम्बर, अक्टूबर, नवम्बर, एवम् दिसम्बर। बाद में इसमें जनवरी और फरवरी दो माह और जोड़ गये। लेकिन अब जनवरी फरवरी साल के प्रारम्भिक माह हैं और आधुनिक कलैंडर के अनुसार सितम्बर अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर माह के सातवें, आठवें, नवें एवम् दसवे माह नहीं है लेकिन फिर नामों का प्रयोग उसी ढंग से किया जाता है।


Monday, 27 December 2021

jeebh aur dant

 

जीभ और दाँत

एक बार जीभ और दाँत में लड़ाई हो गई दाँत बोले तू छोटी सी जीभ है कितनी कोमल है तेरी हम रक्षा इसलिये करते हैं कि तू हमारे द्वारा काटे सामान को पेट में घुमाती है हमारी वजह से तुझे तरह-तरह के स्‍वाद मिलते है।”

‘जीभ हसते हुए बोली तुम मेरी क्‍या रक्षा करोगे मैं अपनी रक्षा अपने आप करती हूँ। मैं तो तरह-तरह के स्‍वाद तुम्‍हें चखाता हूँ तुम तो बस कटावने हो काटते हैं।

‘छोड़ बित्‍ते भर की बातें इतनी बड़ी-बड़ी करती हैं जबकि दम जरा सा भी नहीं है जरा से में तोड़-मरोड़ कर फेंक दी जायेगी।’

मेरी वजह से बोल-बोल कर नेता कुर्सी पर बैठ जाते हैं तुम्‍हारा क्‍या योगदान है कुछ नहीं मैं नहीं होउँ तो भषण नहीं होगा और जनता कैसे फंसेगी।’

देख ले खुद ही कह रही है कि फंसाती है लोगों को बहुत मक्‍कार और फरेबी है तब भी हम तुझे बचाते हैं। तेरी वजह से तो इतना बड़ा महाभारत का युद्ध हुआ पर तब भी अपनी शान बढ़ायेगी। तेरी वजह से राम जी का बनवास हुआ भंवरा की जीभ ही तो चली थी तब भी अपनी जीभ हलेगी। तभी वहाँ से एक पहलवान गुजरा जीभ चिल्‍लाई ओये पहलवान।

पहलवान ने पलट कर देखा किसकी इतनी हिम्‍मत हुई एक पिद्दी से लड़के को खड़ा देख उसे गुस्‍सा आया और उसने जोर से एक मुक्‍का लड़के के मुँह पर जड़ दिया होता। वह चीत्‍कार कर उठे जीभ बाहर खीच लूँगा। अभी पहलवान का दूसरा मुक्‍का पड़ता कि जीभ बोली ‘अरे वाह! पहलवान जी क्‍या दम है मुक्‍के में क्‍या मारा है आपको नमन है प्रभु आप तो दुनिया के श्रेष्‍ठ पहलवान हैं।”

पहलवान मुस्‍कराया और लड़के के गाल थपथपा दिये। जीभ हंसी बोली “कहा अपनी रक्षा मैंने अपने आप करी या नहीं।”

दाँत सिमट कर रह गये।

Thursday, 23 December 2021

nari sashaktikaran

 

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Tuesday, 21 December 2021

उक्ति

 

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Monday, 13 December 2021

 होमई व्यारावाला

व्यावसायिक


गुलाम देश के दमघोटू वातावरण में जहाँ महिलाओं को खबरों में मुश्किल से स्थान मिलता था एक महिला ऐसी थी जो स्वयं खबर देती थी वह भी चित्रों के साथ भारत की प्रथम छाया, चित्रकार होमई हर खबर के चित्र लेने दौड़ पड़ती। उसके चित्र इतने जीवंत होते थे कि लाइफ-टाइम आदि पत्रिकाऐं उन चित्रों को हाथांे हाथ लेती थीं। उस समय के अधिकांश अग्रणी प्रकाशनों में उनके चित्र छपते थे।

होमई व्यारावाला को पहली महिला फोटोग्राफर होने का गौरव प्राप्त है। 1940 से 1970 के बीच के दौर में होमई ने देश की राजधानी और 40 के दशक में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और उससे जुड़े प्रमुख लोगों की जिदंगी के नायाब और अनछुए और अबूझे पहलुओं को कैद किया था वैसे तो होमई ब्रिटिश इंफार्मेशन सर्विस के लिये काम करती थी पर उन्हें फ्रीलांसर के रूप में भी काम करने की स्वतंत्रता मिली हुई थी। होमई भारतीय इतिहास के उन पलांे की साक्षी रही है जिनसे भारत का वर्तमान तैयार हुआ है। लार्ड मांउटवेटेन से लेकर मार्शल टीटो, ब्रिटेन की महारानी से लेकर जैकलिन कैनडी, नासिर, चाउ एन लाई आदि महत्वपूर्ण ेचेहरों को कैद किया है ।। 

13 दिसम्बर 1913 में जन्मी होमई का जन्म स्टेज कलाकार दोसाभाई हथीराम के यहाॅ गुजरात के नवासरी जिले में मफुसिल कस्बे में हुआ।  उनके पिता उर्दू पारसी थियेटर के कलाकार थे। यद्यपि पिता आर्थिक रूप से सक्षम नहीं थे लेकिन होमई की रुचि देखकर पिता ने उन्हें मुबंई आगे शिक्षा प्राप्त करने भेज दिया होमई को उसकी माँ ने मुंबई के एक कान्वेन्ट स्कूल में पढ़ाया। माँ अस्थमा की मरीज थी। होमई को घर का काम करके शिक्षा प्राप्त करने जाना होता था यहाँ तक कि कुँए से पानी तक भर कर लाना होता था। होमई 13 साल की थी जब वह मानेक्शा व्यारावाला से मिली। मानेक्शा दूर के रिश्तेदार तो थे ही उम्र में बड़े भी थे। होमई को अंकगणित पढ़ाने आते थे फोटोग्राफी का शौक उनके राॅलीफ्लैक्स कैमरे को देख कर ही लगा। 1938 से ही उन्होने फोटोग्राफी प्रारम्भ कर दी ।1941 में होमई ने  अपने साथी फोटोग्राफर मानेक्शा के साथ विवाह कर लिया।

1942 में होमई और मानेक्शा दोनों दिल्ली आ गये यहाँ प्रैस फोटोग्राफर के रूप में नियुक्ति मिल गई। प्रारम्भ की उसकी तस्वीरें बोम्बे क्रिमनल में छपी लेकिन मानेक्शा के नाम से ,क्योंकि उस समय किसी महिला फोटोग्राफर की कल्पना भी नही की जा सकती थी। बी॰ए॰ के बाद होमई ने जे जे स्कूल आॅफ आर्टस मुंबई में दाखिला ले लिया। तभी इलस्ट्रैड वीकली में होमई का फोटोग्राफ मुखपृष्ठ पर छपा 1942 में दम्पत्ति दिल्ली आ गये। होमई उस समय साड़ी पहनती थी क्योंकि साड़ी महिला के लिये उपयुक्त मानी जाती थी लेकिन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान और नेहरू जी का एक चित्र वह नीचे बैठकर एंगल बना रही थी कि उन्हें साड़ी के फटने की आवाज सुनाई दी उस दिन के बाद उन्होंनें सलवार कमीज पहनना प्रारम्भ कर दिया। होमई का उपनाम या छद्म नाम डालडा 13 था। उनकी प्रथम कार का नम्बर डीएलडी13 था । उनका जन्म 13 तारीख को हुआ उनकी शादी भी 13 साल की उम्र में हुई।

व्यारावालों की फोटोग्राफी की अनुपम कृतियाँ है नेहरू जी द्वारा 4 मार्च 1951 को प्रथम एशियन खेलों में शांति प्रतीक कबूतर उड़ाना, प्रथम झंडारोहण लाल किले पर, माउंटबेटन द्वारा भारत के प्रथम गवर्नर जनरल के रूप में शपथ ग्रहण,  राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अंतिम दिन फाइल पढ़ते हुए, फ्रेंकीलन रूसवेल्ट, आइजनहावर मार्टिन लूथरकिंग, जैकलीन कैनेडी शाहईरान, दलाई लामा का भारत प्रवेश। महात्मा गांधी की मौतनेहरू और शास्.ी जी केदाह संस्कार की तस्वीरें खींचीं

लेकिन आजादी के बाद न उन्हें राजनीति में रुचि रही और न ही फोटोग्राफी में । 26 मई 1969 को एकाएक मानेक्शा का स्वर्गवास हो गया। होमई ने उसके बाद फोटोग्राफी छोड़ दी। पुत्र फारूक ने उन्हें पिलानी बुला लिया वहाँ वे रिटायर्ड लाइफ व्यतीत करने लगंीं। 1975 में फारुक का विवाह हुआ। उसके विवाह के पश्चात होमई कलकत्ते स्थित एक आश्रम में रहने लगी लेकिन फारुक के बीमार होने के बाद वे वापस पिलानी आ गइ्र्र लेकिन 1988 को फारुक की कैंसर से मृत्यु हो गई। होमई बुरी तरह से टूट गई आखिर में बड़ोदरा में बस गई और एक गुमनाम जीवन जीने लगी भारतकी पहली महिला पत्रकार अकेली रहने लगीं वह भी टेलीफोन तक के बिना। उन्होंने अपना चित्र संग्रह दिल्ली स्थित अल काजी फाउन्डेशन आफ आर्ट को दान कर दिया । 1910 में उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया, 2011 में पद्यविभूषण से सम्मानित किया गया ।

97 साल की उम्र में 15 जनवरी 1912 को उन्होंने अंतिम सांस ली।गूगल ने उनके जन्म की 104 वीं जयन्ती पर डूडल के साथ सम्मानित किया ।




Monday, 6 December 2021

करोना काल

 आज भी बार बार सवाल उठता है करोना में चिकित्सा नहीं हुई,करोना में मजदूरों को खाना नहीं दिया गया भूखे मर रहे लोग,मंहगाई बढ़ रही है आदि आदि। करोना में जिस अप्रत्याशित रूप से बीमारी आई और एक दम आई सब लोग सरकार पर उंगली उठा रहे हैं। इतिहास को एक बार उठा कर देखें तो जब जब महामारी आइ्र है लाखों लोग काल कलवित इुए हैं टीका करण सालों साल बाद हुआ है। बस एक बात जानना चाहती हूं लोगों का कहना था डाक्टर नहीं है आक्सीजन नहीं है नर्सिंग स्टाफ नहीं है। हर वर्ष संख्या डाक्टरी पढ़ने वालों की बढ़ रही है नर्सिंग स्टाफ की भी बढ़ रही है उसी दर से जनता भी बढ़ रही है जितने डाक्टर निकलते हैं वो नियुक्त हो जाते हैं एकाएक महामारी आने से सबने शोर मचाया कि डाक्टर नहीं हैं तो क्या डाक्टरी पढ़ाई इतनी आसान है कि दो दिन में पढ़कर तैयार हो जायेंगे और नियुक्त हो जायेंगे जितने डक्टर देश में थे उन्होंने दिन रात अपनी सेवाऐं दीं क्या वे देश के लिये आवश्यक नहीं थे जो उनके लिये जिसे देखो कह रहा था डाक्टर नहीं हें उनहोंने दिन रात एक कर अपनी सेवाऐं दीं  क्या वे अनाथ थे उनके परिवार नहीं थे । एकाएक चिकित्सक पैदा हो जाते अमर बूटी खाकर और अनजान दुश्मन से बिना हथियार लड़ते उनको गरियाते रहे कितने ही डक्टर काल कलवित हुए शहीद का दर्जा उन्हें दिया जाना चाहिये न कि जर्बदस्ती बैठे लोगों को शहीद मानें जिन्होंने आम जनता का जितना नुकसान किया है शायद नेता उन्हें माफ करदे पर जनता कभी माफ नहीं करेगी क्योंकि उनकी वजह से जनता को बहुत कष्ट उठाना पड़ा ।डाक्टरों को प्रोत्साहन देने के लिये अगर उनके सम्मान में मोदी जी ने थाली घंटे बजवाये तो मजाक उड़ाने पर उन्हें शर्म नहीं आई । हद है नकारात्मक सोच की ।क्या उन डाक्टरों की जान जान नहीं थी जिन्होंने दिनरात सेवा की वे मना भी कर सकते थे कि हम मरने  के लिये नहीं हैं और हजारों डाक्टर पीड़ित भी हुए पर नहीं बिना सेचे समझे मजाक उड़ाना व्यक्तित्व की हीनता साबित करती है ।

Saturday, 4 December 2021

लघु कथा चलो कुछ हो जाये

 

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Friday, 3 December 2021

भारत गरीब नहीं है

 ऽ धार्मिक स्थलों पर खाने पीने रहने की सुविधा है पंचतारा श्रेणी तक के निवास स्थल हैं ं अब जनता के पास खूब पैसा है दिल खोलकर खर्च करता है इसलिये हर उत्सव का स्वरूप भव्य होता जा रहा है।कहा जायेगा अरे बहुत मंहगाई है पर त्यौहार पहले भी उमंग से मनाये जाते थे लेकिन इतने खर्चीले ढंग से नहीं । दीपावली पर नये कपड़े बनते थे उसका एक क्रेज था वह इसलिये कि त्यौहारों पर ही नये कपड़े बनते थे अब जब कहीं जाना है पहले नये कपड़े बनेंगे  कोई भी त्यौहार है नये कपड़े बनेंगे चाहे तीज हो राखी हो होली हो दीपावली हो वैसे कोई भी पसंद कपड़ा आया कोई कारण नहो तब भी खरीद लिया जाता है।सम्पन्न परिवारों में भी रोशनी की जाती थी लेकिन दीपक से पर अब पांच दिन तक पूरा घर रोशनी से नहाये रहता है कुछ तो देव दीपावली तक  रोशनी लगाये रखते हैं हजारों रुपये  के पटाखे धुऐं में उड़ा दिये जाते हैं। पहले लक्ष्मी गणेश की मिट्टी की मूर्ति लाई जाती सम्पन्न धरों में चांदी सोने की। मिट्टी की मूर्ति गमले में अधिकतर घरों में तुलसी का पौधा तो होता ही है उसमें रख दिया जाता था। वह गल जाती थी रंग कच्ची खड़िया के होते थे। लेकिन अब प्लास्टर आॅफपेरिस की बड़ी बड़ी मूर्तियां लाई जाती हैं जो न गलती हैं न टूटती हैं रंग रसायन युक्त होते हैं जो मिट्टी को जहरीला और बंजर बना देता है ।