हांगकांग की फ्लाइट में यद्यपि खाने का समय था पर प्रावधान नहीं था कारण हमारी फ्लाइट पहले पहुँचनी थी इसलिए हांगकांग एअरपोर्ट पर टिकिट के साथ हमें नाश्ते के कूपन प्राप्त हुए थे पाँच डालर तक का नाश्ता हम ले सकते थे। एक ही दुकान थी उस पर दो चीनी लड़कियाँ खड़ी थी वे केवल चीनी भाषा जानती थीं बहुत मुश्किल से उन्हें हाथ के इशारे से समझा कर पेस्ट्री और काफी प्राप्त की।काफी पेस्ट्री के बाद भी कूपन बच गये तो यह सोच कर कि पैसे क्यों बरबाद किये जायें चॉकलेट लेलीं और बच्चों के लिये रख लीं पर अंत मंे वे सब पिघल गईं ।
शंघाई के लिये हमने 2.30 पर यात्रा प्रारम्भ की और पाँच बजे शंघाई एअरपोर्ट पहँुचे। शंघाई पर चार टर्मिनल हैं हम तीसरे टर्मिनल से साढ़े पाँच बजे बाहर आये अर्चना जयधारा फूलों के साथ हमारा इंतजार कर रही थी। बेहद जहीन साहसी उत्साही जनहित की भावना रखने वाली प्यारी सी लड़की। सी वी इंगलिश मीडियम स्कूल की पिं्रसपल अर्चना जयधारा दिखने में स्टूडेंट।
संभवतः फ्लाइट की देरी ने उसे भी परेशान कर दिया था क्योंकि वहाँ से लंबी यात्रा थी फिर भी हम सबका स्वागत बहुत उत्साह से किया।सब अपना-अपना सामान ट्राली में रखकर एअरपोर्ट से बाहर आये हमारा परिचय हमारी गाइड वैंडी से कराया, पतली दुबली सी बीस बाईस साल की लड़की ,जिसने हमारे कार्यक्रम निर्धारित किये थे। वैंडी हमें बीजिंग में मिलने वाली थी उसे हिंदी में बोलते सुनकर अच्छा लगा, यद्यपि हल्का सा लहजा विदेशी था फिर भी बहुत साफ और स्पष्ट हिंदी थी।
खूबसूरत सी छोटी सी वैन में हम सब पन्द्रह लोग, अब अर्चना भी हमारे साथ थी, अपने गन्तव्य शाअसिंग के लिये रवाना हो गये। शंघाई एअरपोर्ट से बाहर बिलकुल अलग ही दुनिया हमारे सामने थी। घुमावदार विशाल फ्लाई ओवर पार करते हम मुख्य मार्ग पर आये। फ्लाई ओवर पर दोनों तरफ पास-पास गोल-गोल सफेद लैंप लगे थे जैसे हजारों हजार दीपक जल रहे हों।
शंघाई जियांग जिन की राजधानी है । सड़कें छः लेन व आठ लेन की हैं। दोनों तरफ मार्ग में विलो वृक्ष थे रोशनी बाहर थी ही अंधेरा घिर चुका था। दूर-दूर तक सड़क पर केवल रोशनी दिखाई दे रही थी। शंघाई से शाउसिंग की 300 किलोमीटर लंबी यात्रा में हमें सिवाय एक दो ट्रक के और कुछ नहीं दिखा। हैरानी हो रही थी इतना सुनसान रास्ता कैसे? क्या है शंघाई में कर्फ्यू है क्या? या जनता नहीं है। चीन सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश लेकिन दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था। हमारी वैन सरपट भागती चली जा रही थी और 300 किलामीटर की यात्रा 5 घंटे में पूरी कर ली। हर तरह के वाहन की अलग लाइन थी। इमर्जैसी लाइन अलग थी। अलग-अलग स्पीड के लिये अलग-अलग लाइन थी यदि वाहन चालीस की स्पीड का है तो उसे अलग लाइन में चलना होगा। साइकिल वालों के लिए सबसे किनारे पर लाइन थी। केवल एक ट्रक रास्ते में दिखाई दिया था। रास्ते में एक स्थान पर तेजी से मैगनेटिक टेªन जा रही थी। जैसे तेजी से दीपमालिका हवा में उड़ती चली जा रही हो क्योंकि वह ऊँचाई पर जा रही थी।
रात्रि के करीब ग्यारह बजे हम अर्चना जयधारा के निवास पर पहुँचे। विशाल द्वार बना हुआ था उसके अंदर जाकर कॉलोनी में दोनों तरफ बिलकुल एक से फ्लैट बने थे रंग भी एक सा हरा था। चीन में घर सरकार बनवाती है। उसके
अधिकार सरकार के ही पास रहते हैं। अंदर से आप कैसा भी सजायंे पर बाहर से समरूपता रखनी होगी। कहने के लिये शाउसिंग एक विलेज कहलाता है वह शंघाई का विलेज है लेकिन मैट्रो सिटी से कहीं कम नहीं लगा। यह शहर कपड़ा शहर कहलाता है अधिकांश कपड़े की मिलें वहीं है।अर्चना ने वहाँ हम सबके लिये खाने का इंतजाम कर रखा था थकान उतारने
के लिये चाय से सबका स्वागत किया फिर दाल, चावल आदि सुस्वादु भारतीय खाना खिलाया।
अर्चना की ग्यारह वर्षीय बिटिया हम सबको देखकर बहुत खुश हो रही थी इतनी सारी दादी नानी आंटी देखकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था। आगे यात्रा में भी जब-जब हम उससे मिले वह हम लोगों के साथ घुलमिल कर रही तरह-तरह के डांस आदि दिखाये हम लोगों के साथ खेल-खेले। उसका बस चलता तो हम लोगों को घर से हिलने नहीं देती।
रात्रि विश्राम के लिये हमारी व्यवस्था होटल गैंगडू में थी होटल पास ही था वहाँ परेशानी यह थी कि रिसैप्शनिष्ट वेटर आदि कोई भी हिंदी या इंगलिश नहीं जानता था। हमारे साथ अर्चना ने एक ऐसा व्यक्ति कर दिया था जो चाइनीज व हिंदी इंगलिश जानता था उसने हमारी व्यवस्थाऐं होटल में करवाई ।हम तो पानी मांगना चाह रहे थे वह भी नहीं मांग पा रहे थे कुछ प्रतीक सार्वभौमिक हैं यदि कहीं भी आप पानी मांगेगे तो हाथ की ओक बनाकर मुॅह से लगायें गे पर उनके समझ में किसी प्रकार का कोई एक्शन नहीं आ रहा था।
सुबह स्नान आदि करके हम अर्चना के निवास पर पहुँचे जो बिलकुल नजदीक ही था पैदल ही हम सब पहुँच गये नाश्ते के बाद अर्चना के पति दीपक जी हमें वहाँ का स्थानीय बाजार दिखाने ले गये। पैदल ही घूम-घूम कर हमने वहाँ का बाजार देखा एक दम चौड़ा बाजार था दुकानें यद्यपि साधारण थी, लेकिन सब्जी फल आदि काफी बड़े-बड़े और स्वस्थ थे। कुछ फल अलग थे लेकिन अब भारत में भी विवाहों में फलों के स्टाल पर दिखने लगे हैं जैसे कॉटेदार लीची देखने में पीला
लाल कांटे दार फल होता है मोटा छिलका हटाकर उसके अंदर लीची के से स्वाद का फल निकलता है ऐसे ही दो तीन अन्य फल नजर आये।
अर्चना का निवास लू शेन रोड पर स्थित था। करीब 2 किलोमीटर दूर पर विचारक लू शेन का स्मृति स्थान है लू शेन चीन के बहुत बड़े प्रगतिवादी साहित्यकार व विचारक थे उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी, उनके निवास को उनकी याद में संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है अर्थात् उनके जीवन से संब( रखने वाली सब सामिग्री उनके ग्रन्थ उनके चित्र उनकी हस्तलिखित पांडुलिपियाँ सारा प्रकाशित साहित्य पत्र-पत्रिकाएं जिनमें उनका साहित्य छपा, अंग्रेजी में अनूदित सभी सामिग्री वहाँ सुरक्षित थी। यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि एक साहित्यकार को इतना मान सम्मान चीन सरकार ने दिया था उसे अमर बना दिया था।उसे नाम दिया गया है ‘लू शेन नेटिव पैलेस’ सामने प्रवेश द्वारा पर ही प्रबु( प्रगतिवादी विचारक लू शेन की प्रतिमा लगी है वह काले पत्थर से निर्मित है उस पर चाऊ एन लाई के हाथ का लिखा वाक्य लिखा है।
बड़े से काले रंग के द्वार से सामने ही उनके समय का सामान यथावत् रखे दिख रहे थे अधिकांश वस्तुऐं मेज कुर्सी पलंग सब लकड़ी के थे लेकिन आकार में छोटे थे उनपर कलात्मक नक्काशी थी उस समय का पानी गरम करने का गरमा पानी भरने के कुंडे वाले बड़े-बड़े बर्तन रखे थे। उनका स्नान घर। पूजा घर वहाँ बु( की प्रतिमाएँ व चित्र आदि थे। जिस स्थान पर अपने पूर्वजों को श्रृ(ांजलि देते थे वह कमरा इनसेंस कक्ष कहलाता है पूर्वजों को फल आदि अर्पण किये जाते थे इसलिए प्रतीक रूप में कलात्मक टोकरियों में फलों के प्रतिरूप रखे थे। ध्यान कक्ष पढ़ने का कमरा, सोने का कमरा एक विचार विमर्श कक्ष था जहाँ उनकी आध्यात्यिक यात्रा भी चलती थी। इन कमरों में वंदनवार आदि लगे थे जिन पर हाथ की कढ़ाई थी। बच्चों का कक्ष, जिनमें बच्चों के पलंग आदि थे ,संगीत कक्ष में सीप के प्यालों से बनी जलतरंग, सितार आदि रखे थे। परिवारिक बैठक थी जिसकी दीवारों पर सुनहरी चित्रकारी थी। चारों ओर गुलाब के फूलों की तस्वीरें थीं। सुनहरे अक्षरों में लिपिब( उनके विचार थे । सबसे अधिक आनंद यह देखकर आया रसोईघर की दीवार आलमारियों तक पर चित्रकारी थी । विशेष ढंग से बने मिट्टी के चूल्हे थे। खाना गर्म रखने के लिये दो पर्तो वाले डोगे थे अर्थात् आजकल के कैसेरोल जैसे। भंडारण करने के लिये बांस की तीलियों से बने बड़े-बड़े बर्तन थे।
उनके विषय में जानकारी पुस्तक, पेपर में मिल रही थी। लेकिन सब चीनी भाषा में थी। हमारे लिये वे केवल चित्रांकन मात्र था जो कुछ भी था साम्यवाद को अधिक जोर दिया जा रहा था।
चीन की भाषा एक है लेकिन लिपि अलग-अलग है वे चार प्रकार की हैं पूरे देश में हान जाति की भाषा है,यह मेनड्रेन कहलाती है। चीनी लिपि चित्रमय सांकेतिक भाषा है इसलिये बहुत अधिक फर्क नहीं है लेकिन एक दीवार पर बड़े-बड़े चीनी अक्षरों में कुछ लिखा था स्थानीय लोगों से पूछा वे बता नहीं पाये।संभवतः लू शेन स्मारक लिखा होगा ।
दो चौक के इस मकान के दूसरे भाग में बरामदे के एक कोने में सिसला नामक एक विकालांग लड़का पैर के अंगूठे और उंगली से पकड़ कर चित्रकारी कर रहा था। उसके बनाये चित्र किसी भी हाथ वाले चित्रकार से कम नहीं थे।
लू शेन प्रतिदिन डायरी लिखते थे वे डायरी जिल्द में बंधी उनके सामाधि स्थल पर क्रमब( रखी थीं।
मुख्य इमारत से बाहर बाजार सजा था वहाँ हर प्रकार की चीनी वस्तुएँ मिल रही थी इसे लूशेन विलेज कहा जाता है।
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