डॉ॰ सरोज भार्गव इंतजार कर रही थी उन्होंने रजनी जी का परिचय कराया । पहली बार उनसे परिचय हुआ पर बहुत
अपनापन लगा। गर्मागर्म खाना तैयार था। हाथ, मुँह धोकर सबने गर्म-गर्म पूड़ी सब्जी खाई। तब तक दस बज चुके थे और हम सब एअरपोर्ट के लिये रवाना हुए। जून माह में अभी बारिश बहुत दूर थी लेकिन बारिश बार-बार आकर हमारी यात्रा को खुशगवार बना रही थी।
साढ़े दस बजे हम एअरपोर्ट के बाहर पहुँच चुके थे और बाकी के सहयोगियों का इंतजार करने लगे। पौने ग्यारह बज गये अभी तक कोई भी नहीं दिखाई दिया था 12 बजे हमें रिपोर्ट करना था यद्यपि फ्लाइट 3.30 की थी लेकिन चीन की यात्रा कुछ संदेहास्पद व कठिन मानी जाती है इसलिये सघन चैकिंग होती है।इसलिये समय भी अधिक लगता है । हम गलत जगह तो नहीं खड़े हो गये हैं कहीं वे दूसरे दरवाजे से अंदर चले गये हों फिर फोन लगाया जाता ।
सबसे पहले डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के दर्शन हुए तो जरा राहत हुई। हम छः तो थे ही सातवीं साथी डॉ॰ राजकुमारी शर्मा के रूप में हमारे सामने आ गयीं अब इंतजार था मुख्य सहयोगियों का श्रीमती नन्दनी गुप्ता ग्वालियर से आने वाली थीं। वहाँ एक कॉलेज में योग प्रशिक्षक हैं। डॉ॰ चित्ररेखा सिंह चित्रकार हैं व मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़ में चित्रकला विभाग की विभागाध्यक्षा हैं। वन्दनी सकारिया ललित कला संस्थान आगरा में चित्रकला की प्रोफेसर हैं ये सभी अलीगढ़ से आने वाले थे। साढ़े बारह बजे डॉ॰ मनोरमा शर्मा आदि की जीप रुकी तब हमारी जान में जान आई क्योंकि जब तक वे नहीं आतीं हमारी यात्रा एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकती थी।
तुरंत ही हम सबने ट्राली में सामान लादा और अंदर प्रवेश की पंक्ति में लग गये। एक-एक कर सभी प्रक्रियाऐं पूरी होते-होेते दो बजे गये। उड़ान से पूर्व हमारे बैग भी चैक हुए उसमें से वह वस्तुऐं जैसेµछोटा सा चाकू, नेलकटर, आदि एअरपोर्ट कर्मियों ने निकालकर पास रखे कंटेनर में डाल दिये। यहाँ तक कि शैम्पू तक निकाल कर डाल दिए।
रात्रि के दो बजे थे लेकिन यात्रा के उत्साह में जरा भी नींद थकान या शरीर में शिथिलता नहीं थीं हांॅ मन कर रहा था कुछ गर्म-गर्म पीया जाय।पहले घूम घूम कर पूरे लाउंज को देखा कि कहॉं क्या मिल रहा है?काफी अच्छी सी लग रही थी इसलिए कुछ ने गर्म कॉफी तो कुछ ने ठंडा पेय लिया।
दो आमने-सामने की बैंचो पर बैठ कर उड़ान का इंतजार करने लगे। सुई का कांटा अनवरत् सरक रहा था लेकिन
हमारी उड़ान का कहीं पता नहीं था। तीन का समय पार हो गया। हांगकांग की फ्लाइट फ्लैश ही नहीं हो रही थी। उसके बाद की उड़ानंे आ रही थी जा रही थी। पर बोर्ड पर फ्लैश हुआ हांगकांग की फ्लाइट आधा घंटा लेट है यह आधा घंटा धीरे-धीरे दो घंटे में खिंच गया पता लगा विमान में तकनीकी खराबी आ गई है उसे ठीक किया जा रहा है।दूसरा प्लेन नहीं लिया जायेगा अगर आकाश में खराब हो गया तो ? वाई वाई न जाने कहॉं टूटे बिखरे पड़े होंगे ।हो सकता है दूसरे दिन के अखबार की सुर्खी बन जायें ।
5.30 पर हांगकांग के लिये हम सबने कैथे पैसीफिक एअर लाइन्स के हवाई जहाज में प्रवेश लिया। विशाल हवाई जहाज में बहुत पास-पास सीट थी छः बीच में और दो-दो इधर-उधर।जिन्हें किनारे की सीट मिली वे प्रसन्न थे हमारे चेहरे लटक गये बिलकुल बीच में एकदम घिच पिच । लगा थर्ड क्लास के ट्रेन के डिब्बे में बैठे हैं ।हमें एक-एक मुलायम फर का कंबल व तकिया दिया गया लेकिन पीछे की सीट पर एक लड़की छोटे बच्चे के साथ थी । बच्चा बहुत बेचैन था और बहुत रो रहा था वह लड़की संभवतः प्रथम बार माँ बनी थी बार-बार परेशान सी अग्रिम पंक्ति में बैठे अपने पति के पास सहायता के लिये जा रही थी इसलिये सीट लंबा करना संभव नहीं हो पा रहा था। हमारी उड़ान साढ़े आठ घंटे की थी यात्रा का मार्ग हमारे सामने की सीट के पीछे छोटी सी स्क्रीन पर आ रहा था। हमारे पायलट थे कैप्टन डोमिल मैक्डोनेल , सीट बैल्ट लगाने की प्रार्थना की गई । चाइनीज एअर होस्टेस ने यात्रा के निर्देश दिये विमान थरथराया रन वे पर दौड़ा और रुक गया,असपास सीटें तो थी हीं सबकी ऑंखें मिली और हॅंस पड़े। सब एक सा ही सोच रहे थे । कुछ देर तक हिलने के बाद हवाईजहाज ने आकाश की ओर पंख फैलाये तो अधिंकाश ने अपनी आँखें बंद कर लीं अभी नीचे दिल्ली धुंधली सी दिख रही थी बिजली की रोशनी और भोर की हलकी दस्तक ने दिल्ली को पलक झपझपाने को मजबूर कर दिया था , हम सबने
ऑंख बंद करनी चाही ।धीरे-धीरे हवाई जहाज ने आसमान की ऊँचाईयाँ नापना प्रारम्भ कर दिया था।
अभी ऑंख हमने बंद भी नहीं की थी बाहर सूर्य की लालिमा झांकने लगी , प्रातः काल की दस्तक के साथ ही खूबसूरत एअर होस्टेस ट्रे, में गर्मगर्म लिपटे टॉवल लेकर हाजिर हुई। एक-एक टॉवल हमें पकड़ाती जा रही थी। हमने चेहरा साफ किया और गर्म-गर्म चाय पी। कुछ ही देर में छोटी-छोटी गाड़ियोँ में नाश्ता लेकर उपस्थित हुई उसमें सामिष और आमिष दोनों प्रकार के नाश्ते के व्यंजन थे वो पूछ-पूछ कर हमें ट्रे देती जा रही थी हमारी ट्रे में कटलेट,बन ,जैम व कटा हुआ आम था।आकाश से हम विशाल बंदरगाह और पहाड़ों का दृश्य देख रहे थे । विशाल जहाज कागज की नाव से दिख रहे थे ।नाश्ते के साथ ही चाय ली चास आदि पीकर चुके ळी थे कि हॉंगकॉंग दिखने लगा। हांगकांग के ऊपर जब जहाज ने चक्कर लगाया, सांस जैसे थम गई एक खूबसूरत दृश्य ,एक विशाल विकसित देश हमारे सामने था दूर से ही ऊँची-ऊँची शीशे की इमारतें जैसे एक सजा-सजाया प्रेक्षागृह हो और सागर शांत वहाँ से उसमें चल रहे नाटक को देख रहा हो। हमारा हवाई जहाज हांगकांग डेढ़ बजे पहुँचा क्योंकि हमने दो घंटे देर से यात्रा प्रारम्भ की थी हमारा प्रतीक्षित विमान जा चुका था।
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