अमावस के अंधेरे ने मुझे दिया हे अवसर चमकने का
नहीं तो उजालों को तो जरूरत नहीं मेरे उजाले की
बिटिया पायल की रुन झुन
मधुर मधुर घुंघरू की छुनछुन
गीतों की सुरमयी झंकार
बारिष की ष्षीतल सी फुहार
पिता के आंगन की है बहार
मां के चैखट का श्रृंगार
गले का है वो मनहर हार
अधूरा जिसके बिन श्रृंगार
घरों का जोड़ रही वो तार
बिटिया के बिन सूना संसार
बिटिया हे जीवन का सार
सांस सांस का अदभुत् संसार।
ऽ एक किले की आत्मा
जर्जर अकेला खड़ा है
विषाल वृक्षों की बाहों में
झाड़ झंखाडों की उंगली थामे
प््रातीक्षा में
स्ूानी पगडंडियों को देखते हुए
षायद कोई पदचाप कोई आहट हो
फिर गीत संगीत की धुन सुनाई दे
ढोल ताषों की आवाज
हो रेषमी कपड़ों की सरसराहट
ईष्वर का आव्हान करते
सुखों को दुखों को बयान करते
सूनी दीवारों को आंखें फाड़ देखते
पत्तों की हल्की जुंबिष
थरथरा देती है मन को
पीछे से आती है आहट
तलवारों की झनकार
छमछम नर्तकियां
वाह वाह की आहट
खनकते प्याले
जागते रहो के स्वर
सरकती भारी जंजीरें
कन्याओं की चीखें
और पत्थर हुआ आदमी
समा गये हैं मुझ में
न जाने कितने रक्त
लहूलुहान नींव में
चारो ओर सन्नाटा
चीखना चाहते हैं
सब कुछ पत्थर है
बस धड़क रहा है सीना
जो कहता है यहां कभी
महान षासक जन्मा था
वह था वह था ।
ऽ कुर्सी के लिये कितना अहित करते हैं लोग
जनता जाये भाड़ में उन्हें चाहिये सत्ता भोग।
सड़क पर बैठ कर ईष्वर से प्रार्थना करने वालेां के लिये मैं ष्षत्र लगा कर कह सकती हूं िकवे कठपुतली की तरह षारीरिक क्रियाऐ ंतो कर लेंगे पर म नही मनसिवाय यह कहने कि क्या मजा आ रहा है जनता को परेषान करने में । ईष्वर चंद लोगों की प्रार्थना सुनेगा या सैंकड़ोंलोगों की जो गसली दे रहे होंगे क्योंकि किसी की ट्रेन छूट रही होगी किसी मरीज लेकर जाना है किसी की परीक्षा छूट जायेगी तो साल बेकार हो जायेगा किसी को काम पर जाना है देर होगी तो पगार कअ जायेगी किसी को दफ्तर पहुचना होता है। हजारों जलती निगाहों को ईष्वर देखेगा या चंद बंद आंखों को जिनमें उसे याद न कर अहित करने का सुख होगा। याद रखो अहित करने की सोचने वाले को पहले अपना अहित झेलना पड़ता है । कर्मों का फल मिलता अवष्य
आजाद हैं पंछी कहीं भी उड़े
सीमा का कोई बंधन नहीं
बसेरा बनाना है किसी भी झाड़ पर
उसका देना कोई किराया नहीं
बरगद पर बैठे या पाकड़ पर सोये
किसी ने भी उसको हटाना नहीं
सभी वृक्ष उनके लिये हैं चंदन
नीम हो या बरगद उनका है घर नंदन
इतना सा कोना कि ठिक जाय घर उनका
बहुत जल्दी वह वक्त आयेगा जब इंसान के मायने बदलने होंगे ष्षैतान की कसम ,हैवान की कसम,भगवान् के मायने बदलने हांेगे।
चुनाव में जीतकर आते ही स्वच्छ छवि वाले नेता जी सारी बुराइयां धारण कर लेते हैं,अच्छा अच्छा सब विपक्ष धारण कर लेता है ।
कुर्सी पर बैठे नेता का धर्म ईमान होना चाहिये, बेईमान होने का विपक्ष को देते है,विपक्षबेई मान होने का बोझ ले लेंगे ।