Thursday, 17 November 2022

avsar

 अमावस के अंधेरे ने मुझे दिया हे अवसर चमकने का

नहीं तो उजालों को तो जरूरत नहीं मेरे उजाले की

Monday, 14 November 2022

bitiya

 बिटिया पायल की रुन झुन

मधुर मधुर घुंघरू की छुनछुन

गीतों की सुरमयी झंकार

बारिष की ष्षीतल सी फुहार

पिता के आंगन की है बहार

मां के चैखट का श्रृंगार

गले का है वो मनहर हार

अधूरा जिसके बिन श्रृंगार

घरों का जोड़ रही वो तार

बिटिया के बिन सूना संसार

बिटिया हे जीवन का सार

सांस सांस का अदभुत् संसार।


Sunday, 13 November 2022

एक किले की आत्मा

 ऽ एक किले की आत्मा


जर्जर  अकेला खड़ा है

विषाल वृक्षों की बाहों में

झाड़ झंखाडों की उंगली थामे

प््रातीक्षा में 

स्ूानी पगडंडियों को देखते हुए

षायद कोई पदचाप कोई आहट हो

फिर गीत संगीत की धुन सुनाई दे

ढोल ताषों की आवाज

 हो रेषमी कपड़ों की सरसराहट

ईष्वर का आव्हान करते

सुखों को दुखों को बयान करते

सूनी दीवारों को आंखें फाड़ देखते 

पत्तों की हल्की जुंबिष

थरथरा देती है मन को

पीछे से आती है आहट

तलवारों की झनकार

छमछम नर्तकियां 

वाह वाह की आहट

खनकते प्याले

जागते रहो के स्वर

सरकती भारी जंजीरें

कन्याओं की चीखें

और पत्थर हुआ आदमी 

समा गये हैं मुझ में 

न जाने कितने रक्त

लहूलुहान नींव में

चारो ओर सन्नाटा

चीखना चाहते हैं

सब कुछ पत्थर है

बस धड़क रहा है सीना

जो कहता है यहां कभी

महान षासक जन्मा था 

वह था वह था ।




Saturday, 12 November 2022

satta ke pujari

 ऽ कुर्सी के लिये कितना अहित करते हैं लोग

जनता जाये भाड़ में उन्हें चाहिये सत्ता भोग।

सड़क पर बैठ कर ईष्वर से प्रार्थना करने वालेां के लिये मैं ष्षत्र लगा कर कह सकती हूं  िकवे कठपुतली की तरह षारीरिक क्रियाऐ ंतो कर लेंगे पर म नही मनसिवाय यह कहने कि क्या मजा आ रहा है जनता को परेषान करने में । ईष्वर चंद लोगों की प्रार्थना सुनेगा या सैंकड़ोंलोगों की जो गसली दे रहे होंगे क्योंकि किसी की ट्रेन छूट रही होगी किसी मरीज लेकर जाना है किसी की परीक्षा छूट जायेगी तो साल बेकार हो जायेगा किसी को काम पर जाना है देर होगी तो पगार कअ जायेगी किसी को दफ्तर पहुचना होता है। हजारों जलती निगाहों को ईष्वर देखेगा या चंद बंद आंखों को जिनमें उसे याद न कर अहित करने का सुख होगा। याद रखो अहित करने की सोचने वाले को पहले अपना अहित झेलना पड़ता है । कर्मों का फल मिलता अवष्य 


Friday, 11 November 2022

पंछी

 आजाद हैं पंछी कहीं भी उड़े 

सीमा का कोई बंधन नहीं

बसेरा बनाना है किसी भी झाड़ पर

उसका देना कोई किराया नहीं 

बरगद पर बैठे या पाकड़ पर सोये

किसी ने भी उसको हटाना नहीं 

सभी वृक्ष उनके लिये हैं चंदन

नीम हो या बरगद उनका है घर नंदन

इतना सा कोना कि ठिक जाय घर उनका


Wednesday, 2 November 2022

kirch kirch baten

  बहुत जल्दी वह वक्त आयेगा जब इंसान के मायने बदलने होंगे ष्षैतान की कसम ,हैवान की कसम,भगवान् के मायने बदलने हांेगे।

चुनाव में जीतकर आते ही स्वच्छ छवि वाले नेता जी सारी बुराइयां धारण कर लेते हैं,अच्छा अच्छा सब विपक्ष धारण कर लेता है ।

कुर्सी पर बैठे नेता का धर्म ईमान होना चाहिये, बेईमान होने का विपक्ष को देते है,विपक्षबेई मान होने का बोझ ले लेंगे ।