Wednesday, 26 August 2020

हमे आने वाले दुखों से बचा ले

 




न जाने क्यूँ जब भी

रात के अंधरे को चीरती 

एम्बुलंेस की भागती 

हूटर बजाती

आवाज आती है

वह हूटर की नहीं

समय की आवाज होती है

वह भागता है

पीछे पीछे दौड़ने लगती हैं

अनेकों बिलखती आंॅखें

कांपते दरवाजे को पकड़

खड़ी पत्नी डरता मन

पता नहीं लौटेगा सिंदूर

भगवान का नाम लेती माँ 

मुझे उठा लो मेरी उम्र

मेरा जीवन बच्चे केा दे दे

अपनी लाठी को थामे

शून्य में ताकते पिता

हिलने लगती है हाथ की लाठी

जो नहीं जानते खोने का अर्थ

हकबकाये खड़े उनींदे बच्चे

मुखौटों पर प्रश्नचिन्ह

एक तैरता सवाल

अगर कुछ हो गया

तो हमारा क्या होगा

अपनी रोटी का सवाल

फीस का सवाल

आगे के जीवन का सवाल

जिनकी डोर लिपटी है

आने वाले दुःखों की पोटली

खोल खोल कर बैठ जाते हैं

भूल जाते हैं 

दर्द पीड़ा मरीज की

गले में नाक में घुसी

नलियांे का जाल तंत्र

आक्सीजन का मास्क

अंग अंग में लगी सुईयाँ

स्वार्थ झांकने लगते हैं 

तहखाने से

खाली होते डिब्बों से

आलमारी के कौने से

दराजों के अंदर से

और पसार लेते हैं पांव

प्रार्थना में जुड़ जाते हैं हाथ

ईश्वर हमें आने वाले दुख से बचाले

ईश्वर हमें बचा ले 


 

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 27 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बेहतरीन रचना

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  3. सचमुच अब ईश्वर ही हमें इस दुठ से बचायें यही प्रार्थना है सबकी....बहुत ही मुश्किल वक्त से गुजर रहा है संसार... समसामयिक हालातों पर बेहतरीन सृजन।

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