हर मनुष्य के मन मैं सेवा भाव अवश्य उत्पन्न होता है वह जब अपनी सेवा कर कर कर ऊब जाता है या जब ईश्वर से अपनी सेवा और करवानी होती है तो दान पुण्य मैं लग जाता है कभी कभी विवशता भी होती है अपना शनीचर उतारने के लिए दान कर वह शनीचर दुसरे के सर चढ़ाना है इसके लिए मंदिर या कोई भिखारी ढूँढा जाता है पितर शांत करने हैं भूखों को भोजन अन्न वस्त्र दान करने होते हैं ऐसी अब मैं बढ़ते आधारहीन माता पिता भी है पहले बच्चे अनाथ होते थे अब माँ बाप अनाथ होते हैं ऐसे ही दान दाताओं से चल रहे वृद्धाश्रम मे मैं कभी श्रम कर आती हूँ धार्मिक पुस्तकें चाय चीनी साबुन आदि छोटी जरूरी वस्तुएं दे आती हूँ जब कुछ की आँखों दान की वस्तुएं लेने मैं नमी छा जाती है क्योंकि कभी उन्होंने भी ददन किये थे क्या वे ही दान उन्हें वापस मिल रहे हैं
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