Friday, 13 April 2018

bhookh se maut

इस धर्म और संस्कृति के  यदि किसी महानगर  मैं भूख  से मोत होती है केवल उस  व्यक्ति की  चल फिर नहीं सकता  इतना अशक्त है कि घर से बाहर  नहीं  निकल सकता  मैं आदिवासी या पिछड़े इलाके  लिए  कह  हूँ जहाँ गरीबी इतनी है कि एक समय खाना क्या कुछ भी  नहीं है परिस्थितियां  विषम भी हो है हम भरे पैट वाले नहीं जान सकते पर  मैं महानगर मैं भूख से मौत किसी अशक्त बीमार और यदि  अकेला है तब  ही   है
मैं एक महानगर की ही बता रही हूँ जहाँ एक व्यक्ति की भूख से मोत शीर्षक से    समाचार पत्र भर गए प्रशासन के लिए और सरकार  को घरने के लिए विपक्ष जुट गया।
मैं हैरान थी कि  यदि विपक्ष को मालूम थी कि भूख से मर रहा है कोई  मानवीयता के नाते नाते क्या  उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है किसी  पडोसी का धर्म नहीं था

 या वह व्यक्ति इतना निकम्मा था कि वह कुछ     काम  ही  नहीं करना चाहता था
हो सकता है कि उसे अपने आदमी होने  गर्व हो और चाहे मर जाये  काम नहीं करेगा या  वह व्यक्ति जो है  राम   ने पैदा किया है तो दाना भी वही डालेगा
यह इस लिए लिखना पड़ रहा  क्योकि हर शहर मैं लंगर जरूर होते है वैसे जिस व्यक्ति की  मोत से   पत्र भरे उसके घर से कुछ दूर पर मंदिर है जहाँ प्रतिदिन किसी         

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