Tuesday, 24 January 2023

basant

 कब आयेगा बसंत


समाचार पत्र के 

मुखपृष्ठ पर

काले सफेद रंगों में

तस्वीर है फूलों की

आज बसंत है

अरे आया बसंत है

खिड़की खोल देती हूं

बसंत आओ देखूं बसंत

नहीं रंगे हैं वस्त्र

विदेष में बसे बच्चों को 

उत्साह से बताना चाहती हूं

आज आया है बसंत

पर यह उनका आज नहीं है

वे सोये हैं वर्फ की चादर में

सिकुड़े सिमटे गर्म घरों में

मोटे कोट और मोटी जीन्स में 

आया होगा बसंत मेरे गांव में

मां ने रंगी होगी साड़ी

भाई की टोपी कमीज

बहन का सलवार कुर्ता

बबूजी का रूमाल

नानी सजा रही होगीथाल में

ब्ेार गुड़िया गुड्डा रेवड़ी

सरस्वती जी की तस्वीर

धेवते ध्ेावतियों के लिये

चैपाल पर जुड़े होंगे फगुनिये

बंध रहा होगा होली का ढंाटा

ढोलक की थपक थपक थाप

हल्दी  लगेे हुए माथ 

बुजुर्गो के आषीषों के हाथ

नृत्य की झमक झमक झंकार 

सजे होंगे थापे द्वारद्वार

देवता के चरणों में गुलाल

मीठे चावल का भोग

 मचा होगा ष्षोर 

आज आया है बसंत

मैं ढूंढती हूं टीवी में बसंत

केवल कवियों की कविता में

और कहीं नहीं दिखा बसंत

वे ही सीरियल बहस

पंडितजी का समय चक्र

ष्षेयर बाजार के उतार चढ़ाव

ढूंढने लगती हूं बसंत

अपनी आलमारी में

मिलजाये कोई पीली साड़ी

कुछ देर ही सही मनालूं बसंत

कुछ देर ही सही मना लूं बसंत।


Sunday, 22 January 2023

bhakt aur bhakti

 ऽ अब कुछ ऐसा लगता है तीर्थस्थल तीर्थ कम पर्यटन क्षेत्र अधिक बन गये हैं। चलो वृन्दावन, मथुरा चार  धाम बालाजी आदि। संमवतः पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये मंदिर मूर्तियों  का विस्तार हो रहा है। भीड़ है कि हर जगह बढ़ रही है।लेकिन सबसे अधिक दुविधा दर्षन से नहीं भक्ति के ढोंग करने से है । 

अखबार में पढ़ा अपने बच्चों के नाम देवी देवताओं पर रखें ।रखे तो बहुत समय से नाम भगवान के नाम पर ही रखे जाते हैं यं तो अब ही हो गया है कि अब विदेषी नाम अधिक पसंद किये जाने लगे हैं भगवान् के नाम पुराना फैषन हो गया है हां यदि कोई अलग सा नाम होता है जैसे सान्वी लक्ष्मी जी का तो उसे पसंद कर लिया जाता हे नहीं तो पाष्चात्य नामों की ओर रुझान हो गया है ।वैसे भगवान् के नाम पर नाम रखने की कहने का तात्पर्य तो है कि हमारे मु।ह से इस बहाने भगवान् का नाम निकलेगा । लेकिन तब का क्या जब बच्चे को मारेंगे और अबे तबे करके बुलायेंगंे,- राम के बच्चे कहां मर गया आने में इतनी देर क्यों लगा दी। मुरारी तू मानेगा नहीं पिटेगा क्या ,षिव जरा ग्राहक को जूते दिखा ग्राहक को पहना ठीक से तब कहां होगी भावना।

अब नया फैषन आया हे कपड़ों  पर देवी देवताओं की तस्वीरों की छपाई करना उनके वस्त्र पहनना फिर उसे धोना कूटना फट जाये तो पोंछा बनाना कितनी भावनात्मक भगवान् की आराधना है ।पहले रामनामी दुप्पट्टा पहना जाता था अब भी पहना जाता है लेकिन पहले उस दुप्पट्टे को पहनने वाला स्वयं धोता और सुखाता था पहले जब इसका प्रचलन था तब वह जमुना या गंगा जल से धोया जाता था और ष्षौच आदि के समय उतार दिया जाता था उसकी पवित्रता का ध्यान रखा जाता था लेकिन अब भक्ति भी फैषन हो गई हैजिस प्रकार से भक्ति व्यवसाय हो गई है उसी प्रकार भक्त भी व्यावसायिक हो गया है। भक्ति तो तिरोहित हो गई है ।


Saturday, 21 January 2023

jab hum hans pade

 गर्मी के दिन थे ,बिजली थी कि बार बार धोखा दे जाती थी,पंखा बैठक का वैसे भी धीमा चलता था आजकल के से पंखे तो थे नहीं  किर्र किर्र करते चलते पर हवा तो लगती रहती थी पर बिजली चले जाने पर बड़ी मुष्किल होती थी ।

हम बच्चों को पंडितजी पढ़ाने आते थे । एक दिन बिजली चले जाने पर मां ने दुछत्ती पर गद्दा लगवा दिया। हवा ठंडी चल रही थी हमें काम देकर पंडित जी ऊंघने लगे। उन्होंने मसनद पर एक हाथ रखकर सिर टिकाया और आधी आधी टांग पसार ली । गदबदे ष्षरीर के पंडितजी की तोंद भी कुछ ज्यादा ही बड़ी थी ,जैसे घड़ा रखा हो , हवा के लिये उन्होंने फतुही ऊपर खिसका ली। हम बड़ी लगन से सवाल कर रहे थे कि धप की आवाज हुई और हड़बड़ा कर पंडितजी चीखे मरा रे। पास की छत से एक बंदर पता नहीं पंडितजी की टुंडी पर बने चंदन के गोल घेरे को क्या समझा कि उसे लेने कूद पड़ा सब चीखे तो छलांग लगा भाग गया, पंडितजी बंदर को नहीं देख पाये थे वो हकबकाये से देख रहे थे कि यह हुआ क्या था ।


Sunday, 15 January 2023

basant

 


     बसंॅत का उपहार


      बसॅंत तुम आये    

      ल्ेाकर मेरे लिये उपहार

      प्रकृति का शंृगार 

      टांॅग दिये झूमर,पहनाये गलहार,

      सूरज ने छीन लिये मुझ से आभूषण

तपती दोपहरी ले गई सुगंध 

किरणों ने पत्तों का पोंछ दिया रंग

हवाओं ने उड़ेल दिये धूल के गुबार 

बसंॅत तुम आये 

       लेकर मेरे लिये उपहार

      सावन ने पहनाई सतरंगी चूनर

      बादल ने छनकाये छनछनछन घूंॅधर

      इठलाई नाची पहन लिया घूमर

      तूफानों ने छीन ली मेरी अभिलाषा

      मौन हुई मेरी मीठी सी भाषा

      रणभेरी सी बज उठी घनघन घन टंकार

      अंग अंग बिखर गया घायल हुए गात

      बसंॅत तुम आये

      लेकर मेरे लिये उपहार ।


      शरद की ठंडी सी बयार ने 

मेरा मन मोहा था

लगाये थे सफेद बूटे मेरे आॅंचल में 

चांॅद की चांॅदनी का बिछाया था बिछौना

      रंग छिटका भी न पाई थी 

हेमंत हो उठा था निठुर 

चुराली मेरे पतों की नरमी

ढकने लगा चाँद तारों को 

      मेरी हरियाली से 

अपने ठंडे पड़ते हाथों को 

छिपा लिया था 

      छीनकर मेरी गरमी

      बसॅंत तुम आये 

      लेकर मेरे लिये उपहार


      शिशिर ने छीेना था जिसे

वर्फीली हवा ने बीना था जिसे 

नोंच कर मेरे पंख 

      भर ली थी अपनी झोली

अपनी सफेद चूनर 

      टाँग दी मेरे माथे पर 

बसंॅत तुम आये 

      लेकर मेरे लिये उपहार  

टांॅग दिये झूमर पहनाये गलहार 

कोयल के गीतों की मादक पुकार 

हौले से छूती तन मकरंदी बयार 

हरा हुआ धरती का मन 

      छाई फूलों की बहार 

तुमने मेरी सूनी डालों को भर दिया

गदरा गई पाकर तेरा साथ

टांॅग दिये झूमर पहनाये गलहार

      बसंॅत तुम आये 

      ल्ेाकर  मेरे लिये उपहार