Friday, 30 December 2022

nav varsh

  नया वर्ष आ गया , फिर से हम अपनी अपनी दीवारों से कलैंडर उतार देंगे क्या वास्तव में कुछ नया होता है ,,।फिर नई तारीखें आयेंगी एक  साल पुरानी तारीख नई होकर झड पंुछ कर चमकेगी पर वही रहेगी कदन वही रहेगा वैसे ही़ । मौसम भी तो वही आता है पर कुछ बदलता नहीं है । एक नया संकल्पलेते हैं कि हम आने वाले वर्ष दुनिया बदल देंगे । चाहते हैं कि हमारे लिये संकल्प को निभायें दूसरे । हम अपने को नहीं बदलेंगे । वही 26 जनवरी आयेगी ,बड़े बड़े नेता अफसर देष भक्ति के गीत गायेंगे और नहीं बता पायेंगे कि यह गणतं़त्र दिवस है या स्वतंत्रता दिवस , झंडे का कौन सा रंग ऊपर रहता है और किसलिये ये रंग लिये गये हैं वे एक ही रंग जानते हैं वह है सत्ता का रंग और उसके लिये वे फिर से देश बेचने के लिये तैयार हो जायेंगे ।

      बसंत के आते ही बेटियों को शिक्षित करने के लिये  हम बेचैन हो उठेंगे क्योंकि ,क्योंकि सरस्वती शिचा की देवी है तथा देश को शिक्षित करना हतारा कर्तव्य है । लेकिन शिक्षा के लिये आवंटित पैसे को  समाज के लिये नहीं अपने घरों को भरने के लिये बेचैन हो उठते हैं लाखों बच्चों के नाम स्कूल में लिख जाते हैं पर स्कूल खाली  शिक्षक नदारद और कागजों में सब मौजूद बच्चे सड़क पर और शिक्षा की कीमतें बढ़कर जमीनी कारोबार करती रहती हैं ।

      होली के साळा सद्भाव का पाठ पढ़ाते हैं बुरार्द की होली जलती है और अधिक सांप्रदायिकता फैल जाती है । अब जरा जरा सी बात पर एक दूसरे के धर्म आहत हो जाते हैं । समाज में बबाल फैलाना है तो कही भी कुछ अपमानजनक लिख दो या मांस उछाल दो  । बवाल तैयार चाहे जितना उपद्रव करालो हमारी युवा शक्ति बेकार है ही  दिशा हीन है कुठित दमित भावनाऐं सामने उछाल मारती हैं । उनका उपयोग कुचक्र रचते हुल्लड़बाज । कहीे गाय का मसला तो कहीं पैगम्बर के लिये कहना कोई मंदिर में गाय काट देगा ।इसलिये कि वर्तमान सरकार को गाली दे सके और अपना वोट बैंक तैयार कर सकें और समान लूटकर बेगुनाहों को उनके न किये गये गुनाहों की सजा दें ।

     शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित हर वर्ष करेंगे पर नये नये शहीद समाने आयेंगे । देष को आजादी दिलाने के लिये जान गंवाने वाले अब शहीद नहीं हैं अब देश के लिये लड़कर जान गंवाने वाले अब शहीद नहीं हैं हाॅं भमल से सीमा लांघने वाले शहीद हैं या उपद्रव कर जेल गये लोग शहीद हैं ।

      पर्यावरण दिवस मनायेंगे जोर शोर से पेड़ लगाते फोटो खिचायेंगे किर भूल जायेंगे कि वह डाली कहाॅं सूख रही है । चुपचाप पेड़ काटकर बिल्डिंग बनवायेंगेगणेशजी की पूजा करेंगे ,देवीजी के आगे नाचेंगे दशहरा मनायेंगे जमुना गंगा को प्रदूषित कर प्रसन्न हो रहे हैं हमने देवता मना लिये अब हमारा कौन बिगाड़ कर सकता है ।दो अक्तूबर के साथ तहखानों में पड़ी गांधीजी की तस्वीर चमकायेंगे ।उनकी बातों को दोहरायेंगे ।उनके बताये मार्ग पर चलने के लिये प्रतिज्ञा करेंगे फिर भूल जायेंगे अगले वर्ष तक के लिये ।

   रावण जला रहे हैं उसने सीता का अपहरण किया लेकिन सीता को आहत नहीं किया यहाॅं अबोध कन्याऐं लड़कियाॅं, महिलाऐं दंुर्दान्तों के हाथों दंुर्दशा प्राप्त कर मार दी जाती हैं जैसे किसी रबर के खिलौने को तोड़ा मरोड़ा और फैक दिया ।उन्हें कुछ नहीं होता सुघारने के नाम पर पुरस्कृत किया जाता है ।

    नव भोर की आशा में फिर कलैंडर बदलता है लेकिन परिस्थितियाॅं और अदतर होती हैं बात असहिष्णुता भेदभाव जातपाॅंत मिटाने की स्त्रियों के उन्नयन की भ्रष्टाचार मिटाने की करेंगे । अपना देना पड़े तो गाली देंगे और लेना पड़े तो अधिकार । चाहेंगे पल भर में दुनिया बदल जाये साफ हो स्वच्छता हो क्योंकि कहा गया है पर हम खुद कुछ नहीं करेंगे गंदगी फैलायेंगे और गाली देंगे कि सफाई नहीं हुई ।

    पाकिस्तान को धोखेबाज कहकर गालियाॅं देंगे पर अपने देश के गद्दारों को कुछ नहीं कहेंगे जो असली भितरघाती हैं । लंका रावण की वजह से नहीं गिरी विभीषण की वजह से नष्ट हुई। धिक्कार तो ऐसे लोगों को है ।


Wednesday, 28 December 2022

भोजन भट्ट महान

 


 भोजन भट्ट महान् 


मथुरा तीन लोक से न्यारी और उसके प्रसि( चैबे अपने आप में निराले  भोजन भट्ट महान हैं। भांग पीकर दो ढाई किलो रबड़ी चट कर जाना बायें हाथ का खेल है उनके ऊपर अनेकों चुटकुले बनते हैं। बहुत प्रसि( चुटकुला है  वैसे हम चुटकुला ही मानते हैं पर सुनाने वाले सत्य घटना ही बताते हैं  ।

एक दूसरे प्रदेश का व्यक्ति मथुरा तीर्थ करने गया उत्सुकता से उनके भोजन के विषय में भी सुनी हुई बातों को आजमाना चाहा और एक चैबे से शर्त लगा बैठे कि ढाई किलो रबड़ी एक बार में खाकर दिखाये। वह चैबे नया लड़का सा बोला ,‘अभी आया ’थोड़ी देर बाद आकर,‘ बोला ठीक है मुुझे शर्त मंजूर है।’ दोनों हलवाई की दुकान पर पहुँचे। ढाई किलो रबड़ी तुलवाई गई और उस चैबे ने चकाचक रबड़ी खाकर पेटपर हाथ फेरा और शर्त के रुपये जेब के हवाले किये। तो उस व्यक्ति ने पूछा, ‘भई तुम शर्त मंजूर करने से पहले तुम कहाँ गये थे कोई पाचक वगरैह खाने गये थे क्या।’

चैबे शरमाता बोाल, नही अभी तक कभी इतनी रबड़ी एक साथ खाई नही थीं सो खाकर देखने गया था कि खा सकता हूँ या नहीं।

एक बहुत दुबला पतला मरियल सा साधु सा दिखने वाला व्यक्ति जो केवल कमर पर एक मैली सी धोती बांधे था बालों की जटा बनी हुई थी हमारे दरवाजे पर आ खड़ा हुआ,‘ भूखा हूँ कुछ खाने को मिल जायेगा क्या?’

मेरे पिताजी को साधु-सन्यासियों को खिलाने में सदा आनन्द आता रहा था। मेरी बहन की शादी होकर चुकी थी। बारात सुबह बिदा हुई थी। रात का बहुत भोजन बचा था साथ ही उत्तर भारतीय दावत का समस्त सामान कचैड़ी, लड्डू आदि सभी पर्याप्त मात्रा में थे। पिताजी ने तुरंत उन साधु की पत्तल लगवाई और हाथ जोड़ कर बोले,‘ महराज जी प्रेम से पाओ।’ ‘बच्चा! वह साधु मुस्कराया और बोला, खिलाने मंे घबड़ायेगा तो नहीं?’ ‘अरे महाराज क्या बता करते हैं... ’पिताजी ने उपेक्षा से कहा, मन में सोचा डेढ़ पसली का आदमी और ऐसे कह रहा है न जाने कितना खायेगा।और हम सामान लाते लाते थक गये पिताजी उनकी पत्तल में सामान रखते जा रहे थे वह व्यक्ति 91 तर पूरी, चवालीस कचैड़ी, पचपन लड्डू खाने के साथ दो किलो के करीब रायता दो किलो करीब सभी सब्जियाँ चट कर गया और पिता से बोला अभी और श्र(ा है क्या? 

‘जैसा हुकुम करे बाबा’ पिताजी विस्मय से उस पतले दुबले व्यक्ति को देखते बोले।

‘बच्चा रबड़ी और खिलादें तो ईश्वर भला करेगा।’

और कोई व्यक्ति होता तो पिताजी पावभर रबड़ी मंगाते पर उस साधु की तरफ शंका से देखते बोले,‘ महराज जरा बता देते कितनी मंगाऊँ।’ ‘वैसे तो जिजमान तेरी श्र(ा है! पर पूछ रहा है तो दो सेर मंगा दे।’ दो सेर रबड़ी खाकर जब वह 

साधु उठा तो उसका पेट जो पहले अंदर धंसा था बस जरा-सा ऊपर था। वह सब सामान कहाँ गया आश्चर्य से कम से कम पन्द्रह मिनट स्तब्ध खड़े रह गये।




Friday, 23 December 2022

aaina

 साहित्य के आइने पर समय की धूल लग जाती है। समाज को उसकी छवि दिखाने वाला आइना अपनी आभा खो बैठता है अनेक और आइने झांकने लगते हैं।वह आइना पास होते हुए भी दूर और दूर होता जाता है छोटा और छोटा,

कभी आइना था कभी हम थे और समाज था । अब समाज है आइना है हमारा अक्स घुधला गया है ।


Friday, 2 December 2022

insan kitna gir sakta hai

 ऽ जिस राज्य से निकले मजदूर क्या उस राज्य केश्षासनाधिकारियों की या वहां के निवासियों की कोई जिम्मेदारी नहीं थी अच्छे अच्छे हमारे बुरे बुरे तुम्हारे इस नीति की विचारधारा पर नेता चल रहे हैं संवेदनाऐं मृत हैं मानवता है ही नहीं केवल दोषारोपण ही मानवता बन गई है बस टके भर की जीभ हिला दो करना धरना कुछ नहीं । जनता ने प्रषासन को गरियाया खूब लेकिन किस हद तक नीचता जनता ने दिखाई जब दवाओं और सिलैंडर के भाव एकदम बढ़ा दिये एक तरफ इंसान मर रहा था दूसरी तरफ पैसे की मार पड़ रही थी क्या यह सरकार की कमी थी । जहां एक की आवष्यकता थी 100 की जरूरत पड़ी तो क्या सिलैंडर हवा में पैदा हो जाते या आॅक्सीजन प्लांट अलादीन के चिराग की तरह तुरंत हाजिर हो जाते । और आॅक्सीजन प्लांट लग भी जाते तो आवष्यकता समाप्ति के बाद लगाने वाला क्या करता वैसे हर चीजबातों से तैयार नहीं होती क्ष्मता बढ़ाई जा सकती है तुरंत पर नये सिरे से इंडस्ट्री नहीं लग सकती रोम एक दिन में नहीं बन गया था। पर आज भी गरियाना सुनकर विरक्ति होती है इंसान कितना गिर सकता है । भगवान् माने जाने  वाले चिकित्सकों ने भी पाप की गंगा में हाथ धोये।

Thursday, 1 December 2022

समझने को नहीं तैयार हम

 ऽ जब बड़े बड़े पत्रकार जो टीवी पर चर्चाऐं आयोजित करते हैं हैं वे निष्पक्ष नहीं हो पाते और कथन को समझ नहीं पाते या सुनना समझना नहीं चाहते तो पार्टी का  सदस्य तो विपक्ष की बात को तोड़ मरोड़ कर पेष करेगा ही । मोदी जी ने  कभी नहीं कहा  िकवे हर नागरिक के खाते में 15 लाख रु देंगें पर समझ को क्या कहा जाये जब पूरा सुनने से पहले ही उसका मजाक उड़ाना प्रारम्भ कर दिया । उनके ष्षब्द थे विदेषों में भारतीयों का इतना काला धन जमा है यदि विदेषों से सारा काला धन वापस आ जाता है तो हर नागरिक के हिस्से में पन्द्रह लाख आजायेंगे । अब इसमें कहां मोदी जी ने कहा कि वो पन्द्रह लाख देंगे लेकिन लोगों की समझ की बलिहारी है ।

kirch kirch baten

  प््रेम कभी नष्ट नहीं होता,उसके पवित्र चिंगारे सदा प्रकाशित रहते हैं। वह स्वर्ग से आता है स्वर्ग में चला जाता है सौदे

ऽ अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद,बुद्ध या राम जन्म लें, तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता। जब तक अपने अज्ञान को दूर करने के लिये कटिबद्ध नहीं होते। तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकते । इसलिये दूसरों का भरोसा मत करो । राम तीर्थ
ऽ विलास प्रियता महापाप है। कर्तव्यपथ का सदा घ्यान रखो,चाहे सुअवसर हो या कुअवसर । अकबर
ऽ ज्ञान के ठंडे प्रकाश में प्रेम की बूटी कभी नहीं उग सकती । कान्ट