Thursday, 11 April 2019

फूल सुन्दर तो हैं पर अभिशप्त भी हैं

 फूल इश्वर प्रदत्त  एक ईएसआई संरचना है जिसे देखते ही आँखों को तृप्ति का एहसास होता है  अदभुत सोंदर्य है इन फूलों मैं  सकल प्रकृति ही एक ईएसआई परिकल्पना है कि रचयिता  के लिए  दोनों हाथ अपने आप जुड़ जाते है लेकिन सोचिये नीला असमान झुक कर शांत बहती नदी से पानी  पीने  आ जाता है पीछे  सूर्य कहता है जरा सा पानी मैं पीलूँ इन्द्रधनुष अपनी प्रत्यंचा लिए  रखवाली कररह हो  ऐसे  मैं एक फूल नदी किनारे आजाये सच है की निगाहें सब से हट कर फूल पर टिक जाएँगी हम फूल को इतना मान देते हैं कि इश्वर  के  अर्पण के लिए वाही केवल योग्य वास्तु है  उसे  उनके शीश पर अर्पित कर देते हैं .
लेकिन सुन्दरता उसके जीवन का अबिशाप बन गई है  खिलने भी नहीं पता है उसे तोड़ कर देवता को चढ़ा देते हैं दुसरे क्षण वह पैरों मै  कुचल जाता है  किसी को मन देना होता है फूलों की माला  बने उसे पाने  गले मैं पहुँच भी नहीं पति है माला कि पहनने वाला उतर कर  रख देता है सभा की समाप्ति पर एक पेसील भी लोग उठा ले जायेंगे पर माला  अकेली पड़ी बंद हुए सभागार मैं अपना दम तोड़ देती है .कोई भी बड़ा आयोजन हो लोग अपनी श्रद्धा  दिखने के लिए बड़े से बड़ा हजारों रुपये खर्च कर बूके  लता है लेने वाले को उसे देखने की फुर्सत नहीं होती  वो कोने मैं ढेर बनते जाते हैं कार्यक्रम समाप्ति पर un ढेर मैं से दो दो चार चार अपने मित्रों को दे देता है दो चार घर लेजाता है बाकि पड़े अपने लानेवाले के टैग के साथ आयोजन स्थल पर पड़े अपनी किस्मत को रो रहे होते है काश हम सुन्दर न होते कम से कम दल पर खुली हवा मैं सांस तो ले लेते सुन्दरता खुशबू  सारी  अच्छाई उसकी अभिशाप बन जाती है
कहने का तात्पर्य है कृपया फूलों पर रहम करो और फूलों की माला पहनना बंद करो आजकल तो नकली मॉल असली से ज्यादा सुन्दर बन रहा है उसे  काम मैं लो नकली फूलों की लोग ज्यादा इज्जत करेंगे उसे उठा कर भी ले जायेंगे क्योंकि वह कुछ दिन काम भी करेंगे 

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