भारत मैं नया वर्ष आता भी एक शिशु के सामान है नन्हे शिशु की मुस्कराहट ह्र्दय मैं पुष्प पल्लवित करती है बसंत ऋतू मैं चारो ओरे हरियाली छा जाती है फूल ही फूल खिल जाते हैं धीरे धीरे किशोर होते वह योवन की तरफ बढ़ता है योवन का उल्लास ताप फिर प्रोढ़ अवस्था वर्षा की तरह ताप का शमन होने लगता है बस शीतल वर्ष सा नेह बरसने लगता है . स्नेह की सरसता कापने लगाती है जेसे जेसे अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ता है स्वेट चादर पृथ्वी ओढ़ लेती है उसके केशों मैं सफेदी आ जाती है हाथ पैर कपने लगते हैं और अंतिम साँस ले लेता है और फिर शिशु के रूप मैं जन्म लेता है नया साल छोटे बच्चे के रूप मैं।
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