टीवी पर परिचर्चा सुनो पांच छ बोलते चले जाते हैं कोई नहीं सुनता है लगता है काक क सम्मलेन हो रहा है बेचारा संयोजक चीखता ही रहता है कितनी गले के दर्द की दवाई खाता होगा बेचारा कोई सुन पाए न सुन पाए उन्हें बोलने से मतलब शायद इस बात का लाभ भी उठाना चाहते हैं की जब किसी की समझ्मै ही नहीं आयेगा तो उनकी बात का विश्लेषण भी नहीं होगा और फिर फालतू की चर्चा से बाख जायेंगे क्योकि कोई एक दुसरे को सुनना ही नहीं चाहता है सब दुसरे उन्हें बेवकूफ लगते हैं टीवी खोल कर बैठे श्रोता गण उन सबको क्या समझते होंगे
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