Tuesday, 3 October 2017

देवी देव मनाएंगे

सच हम  भी न कुछ अजीब हैं न  त्यौहार के नाम पर  कितना बिगा ड़ते हैं हर त्यौहार बेचैनी लेकर अता  है जी घबडाता है  नव दुर्गा के नाम पर होने नदियों को प्रदूषित किया  उनमे जहर घोला  अपने देवी देवताओं को बहा कर अपमान किया  अब हम  नो दिन  सयम से रह लिए अब तुम जाओ अब फिर हमे वहशत भरी जिंदगी जीने दो जिसे हम पूजते हैं उसको पैरों टेल रोंदते हैं यह हमारी श्रद्धा है  देवी के आगे पूरी हाला का ढेर लगते जाएंगे  उस पर पानी आदि डालते जायेंगे  पुजारी उसे सरकता जायेगा और सुबह मंदिर की सफाई के साथ कूड़े के ढेर पर पड़ी होंगी इतनी दुर्दशा के साथ कि देवी तो क्या ढोर भी नहीं छूटे है  पानी मैं मूर्तियों पर लगा जहरीला रंग घुलता है फिर हम सर्कार को गली देते हैं कि पीला पानी आरहा था  मन करने पर की नदियों मैं मूर्ती मत  फैंको आस्था का सवाल आ जाता है जो पानी की सफाई के लिए गली दे रहे थे अब आस्था के लिए रोने लगते हैं
  कन्या पूजा करते हैं बच्चियों का झुण्ड बिना नहाये प्लास्टिक की थैलिया लेकर  सुबह ही निकल पड़ती हैं थैलों का वजन नहीं उठ पाता  तो कहीं किनारे पूड़ियों को पटक पैसे और सामान लेकर जाती हैं अष्टमी के दिन मैंने  जैसे ही लिफ्ट मैं कदम रखा देख कर सिहर गई कोने मैं पूरी हलुआ पड़ा था दस पंद्रह लड़कियों का झुण्ड सुबह ही अपरमेन्ट मैं घुस गया था दोसो घरों मैं से काम से काम सौ फ्लैटों से आवाज आई थी गॉडर्ड  लड़कियों को भेज दो  एक एक कर उनके पेट और बड़े बड़े थैले भर गए  इतना घर ले जाकर भी क्या होगा सभी छोटे भाई  लाएंगे अभी तो और घरों से आवाज आरही थी पैसे साथ लाये थैले मैं अलग से डाले तश्तरी बिस्कुट या अन्य सामन भरा पूरिया लिफ्ट कोने मैं उंडेली और पहुँच गए दुसरे फ्लैट मैं कोई कोई बच्ची टी आठ साल की   पांच साल ढ ऊँगली पकडे थी और साल भर की गॉड मैं अब सबका सामान कैसे उठ ले तब जो वास्तु सबसे काम उपयोगी है व्ही टी फिकेगी  यह हमारी आस्था है पता नहीं इससे कौन सी देवी प्रसन्न हुई और कौन सी नाराज अन्नपूर्ण तो जरूर गुस्सा हुईहोंगीं 

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