Sunday, 24 March 2024

pustsk prem

 पुस्तक प्रेम

प्राचीन समय में भारत अपनी सभ्यता संस्कृति एवम् समृद्धि के कारण पूरे विश्व में विख्यात था। भारत के विषय मंे एक कौतूहल जिज्ञासा हर उस व्यक्ति के मन में रहती थी जिसे जरा भी मन में सत्य व ज्ञान के प्रति ललक रहती थी। सम्राट हर्षवर्धन के समय भारतीय ज्ञान की खोज मे आये हवेनसांग इतिहास में बहुत प्रसिद्ध हैं। 1631 ई0 में होनान फू से अनेक बाधाओं को पार करके हवेन सांग भारत आया। युवा हवेनसांग भारत की धर्म संस्कृति से बहुत प्रभावित था, उसी की खोज में वह भारत आया था। यहॉं उसने स्थान स्थान पर ज्ञान पिपासा को शांत किया। दो वर्ष बिहार में रहा और एक वर्ष नालंदा विश्वविद्यालय में उसने ज्ञान प्राप्त किया। कई वर्ष भारत में व्यतीत करने के बाद उसने भारतीय साहित्य संस्कृति का अन्य देशांे में प्रचार प्रसार करने के लिये वापस स्वदेश जाने का निश्चय किया। अपने साथ उसने नालंदा विश्ववि़द्यालय के छात्र व धर्म ग्रन्थ आदि लिये और वापसी की यात्रा प्रारम्भ हो गई। 

इन लोगों को जल थल सभी मार्गो से यात्रा करनी थी। सिंधु नदी के पास तक यह यात्री दल आराम से पहूॅंच गया, आगे की यात्रा के लिये तब एक नाव में बैठ कर रवाना हुए। आधी नदी पार किया ही था कि घनघोर घटाऐं और तेज हवाऐं चलने लगी। नाव डगमग हिचकोने खाने लगी, लग रहा था अब डूबी कि तब डूबी। 

एक तरफ तो सबकी जान खतरें में थी ही पर सारे ग्रन्थ भी पानी में डूब जायेंगे यह चिंता अधिक थी। क्या किया जायें। इतने वर्षो की खोज इस प्रकार डूब जायेगी। हवेनसांग निराश हो उठा। सभी एक छात्र बोला यदि नाव में भार कम हो जाये ंतो शायद ग्रन्थों को नष्ट होने से बचाया जा सके। नाव हल्की हो जायेगी उलटने का खतरा कम हो जायेगा। 

शेष

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