छटवीं शताब्दीके मनीषी और फारस के वजीर आज़म अब्दुल कासिम इस्माइल और 1,17,000 ग्रन्थों से भरे उनके पुस्तकालय का किस्सा बड़ा मनोहर हे। इतिहासकार बजाजे हैं कि यात्रा भ्रमण की बात ही छोड़ दें, वह युद्धकाल में भी अपनी प्रिय पुस्तकें साथ रखते,जहां जाते उनका पुसत्कालय चार सौ ऊंटों पर लद कर उनके साथ जाता और ऊट थे कि उन्हें वर्ण क्रम से बंध कर चलने का प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार किताबी कारवां के साथ सफर कर रहे पुस्तकाध्यक्ष अपने स्वमी का इशारा पाते ही उनकी मनचाही पुस्तक निकाल कर पेश कर देते थे ।
पुस्तकों का जन्मदाता चीन है चीन में 868 में सर्वप्रथम पुस्तक प्रकाशित हुई थी। हीरक पुत्र नामक पुस्तक आज भी ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित है। पुस्तक प्रेमियों ने पुस्तको को तरह तरह से सजाया बनाया। बर्मा में संगमरमर की प्लेटों से तैयार की गई एक ऐसी पुस्तक हैे जिसका वजन 728 टन लंबाई एक मील 1.6। यह पुस्तक पाली भाषा में लिखी गई है। इसे संत यूनाखान्नी ने लिखा है।
आस्ट्रेलिया में खुदाई के दौरान सैंकड़ो ग्रन्थों से संबंधित लाखों ईटंे जिन पर अक्षर खोद कर लिखा गया मिली है। अर्थात ईटों की किताबें लिखने वाले भी क्या करें किसी न किसी पर तो लिखना ही था। भारत में तो भोजपत्रों पर लिखा जाता था। कागज था ही नही। आस्ट्रेलिया में खोद कर लिख दिया। पुरातत्ववेत्ताआंे के अनुसार यह संग्रह करीब साढे़ चार हजार वर्ष पुराना है। उŸारी श्री लंका में अनुराधापुर गॉंव मे ख्ुादाई के समय पुरातत्व वेत्ताओं को दो किलोग्राम सोने की आठ पत्तियॉं प्राप्त हुई है। संस्कृत भाषा में अंकित आठ पत्तियों की कीमत 15 लाख रूपये ऑकी गई है। अफगानिस्तान के एक अमीर व्यक्ति ने फारस के शहंशाह को एक पुस्तक भेंट दी थी जिसमें 169 मोती, 133 लाल व 111 हीरे जड़े हुए थे। दुनियॉ की सबसे नन्ही किताब जापान में प्रकाशित हुई है। बंद किये जाने पर इस किताब का आकार दियासलाई की सींक के समान हो जाता है खोले जाने पर इस किताब के दो पन्नों की लंबाई और चौड़ाई साढे़ चार मिली मीटर होती है। इस किताब का नाम हाब्कनिन हरूशु है ।