ऽ शताब्दी पूर्व लड़की को पढ़ाना आवश्यक नहीं माना जाता था और बनिये का बेटा जोड़ गुणा बाकी जान जाये इतना काफी होता था और क्योंकि व्यापार के लिये हिसाब किताब रखना होता था और मसें भीगते न भीगते व्यापार में लग जाता था ब्राह्मण का बेटा शास्त्रों का अघ्ययन करले क्योंकि वह शिक्षक था राजा रहे न राजे इसलिये शिक्षा का स्वरूप बदला। लड़कियों की शिक्षा रामायण से ऊपर हो गई। अब शिक्षा जरूरी हो गई तब बनिये का बेटा मजबूरी में नोकरी करता था ‘हम क्या किसी के नौकर है ’ यह उनका प्रिय डायलाॅग होता था अपने को आदर सममान देने वाला वाक्य होता था जब कि आज व्यापारी इसमें इंडस्ट्रियलिस्ट को छोड़ दे ंतो दयनीय हो गया है जो घिस घिस करके पैसा कमाता है और सर्वाधिक कर दाता भी वही है और सर्वाधिक सताया जाने वाला प्राणी भी वही है । देश के विकास का रास्ता वही है परसबसे उपेक्षित वही है । अब नौकरी पेशा अधिक मौज में है बड़ी बड़ी तनख्वाहें और हर संभव सुख प्राप्त होता है जिन्हें व्यापारी नहीं प्राप्त कर पाता उदाहरणार्थ आज अगर नौकरी पेशा को कहीं जाना है तो वह हवाईयात्रा करना पसंद करेगा लेकिन व्यापारी सोच भी नहीं पाता है आम व्यापारी के लिये हवाईयात्रा दुर्लभ है। हवाई यात्रा में आप देखेंगे चार प्रकार के लोग होते है अधिकारी वर्ग नेता , नौकरी पेशा जो बड़ी कंपनियांें में काम कर रहे हैं या बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट ।व्यापारी आज भी रेल या बस का किराया ही सहूलियत से दे पाता है।
धीरे धीरे शिक्षा का प्रचार प्रसार बढ़ा अब लड़किया भी पढ़ रही हैं और काम कर रही हैं लेकिन डिजिटल होने में भारत को अभी समय लगेगा करीब 70 प्रतिशत आबादी डिजिटल में अपने को सहज नहीं पाती है हमारी मुख्य जनता गांव में रहती है और मोबाइल चलाना सीख लेना अलग बात है उसे डिजिटल होना नहीं माना जा सकता और डिजिटल मनी इधर उधर करना सबये अधिक दु,खदायी है क्यों कि साइबर अपराधी तुरंत पैसा पार कर देते हैं और आम आदमी घोखाघड़ी का शिकार हो जाता है और अपनी मेहनत की कमाई से हाथ धे मलता ही रह जात है जब तक आम आदमी का पैसा सुरक्षित नहीं हो जाता वह डिजिटल नहीं होना चाहेगा ।डिजिटल होती दुनिया के लिये पहले इस प्रकार के डिवाइस आने चाहिये कि बिना उससे पूछे बैंक क्लीयर न करे एक बार कन्फर्म करे कि आप ही पैसा निकाल रहे हैं केवल क्लिक करते ही सीधे इतनी जल्दी पैसा कैसे निकल जाता है जबकि यदि बैंक में जाओ तो कितनी औपचारिकताऐं पार करनी पड़ती हैं एक रुपये के डोनेशन पर 45 हजार पार हो जायें यह कुठाराघात ही है ।अभी पचीस साल पूर्ण डिजिटल होने में लगेंगे । वर्तमान 50 से पार वाले व्यक्ति जब पार लग जायेंगे जब शायद पूर्ण शिक्षा आ जायेगी तब जो नई पीढ़ी आ रही है डिजिटल होगी लेकिन बैंक में पैसा रखना बहुत घातक होगा यदि सुरक्षा नहीं मिलेगी तो बैंक में पैसा नहीं आयेगा और बैंक में पैसा नहीं होगा तो अर्थ व्यवस्था तो चरमरायेगी ही । बहुत ज्यादा नियन्त्रण अवनति की निशानी है देश की अर्थ व्यवस्था चरमराती रहेगी हर व्यक्ति यदि मेहनत करता है तो कुछ अपनलिये केवल रोटी वह भी घिस घिस करके खाना पसंद नहीं करेगा परिवार में भी जहां बच्चों पर कठोर अनुशासन होता है तो बच्चे या तो विद्रोही हो जाते हैं या परिवार से निकल लेते हैं यदि मेहनत करके आदमी एक रोटी खाने बैठे और कह दिया जाये कि तुम पूरी रोटी नहीं खा सकते पौन रोटी देदो एक टुकड़ा खालो क्यों कि उसमें अनेक मद में टुकड़े जाने हैं तो विद्रोह होगा कि पहले अपने टुकड़े खतम करो ।जबकि वह यह देख रही है पहले उसने पूरी रोटी एक देदी है वह घी चुपड़कर सब मिल बांट कर खा गये ।जब कि आज पांचहजार रु में पेरे साल के लिये इंटर नैट मिल जाता है इौर कईफोन पर सब सुविधायें मिल जाती हैं डेढ सौ रुमहिने में अनगिनत फोन कौल है तब सरकार बंदर बांट के ढंग से ही पन्द्रहहजार रु महिना क्यों बांट रही है क्या जनता की आंख मेंक्राोध नहीं उतरेगा कि उसके एक टुकड़े को भी छीन लिया जाता है ।
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