फूल की भी कैसी किस्मत है जिसने नजर डाली बुरी नजर डाली अ उसका सुन्दर होना अभिशाप हो जाता है उसे पूरी तरह डाली पर खिल कर खुशबू भी नहीं बिखराने देते हैं। बहुत खुशबू दर फूल है तोड़ लेंगे और एक दो बार सूंघ कर फेंक देंगे। तब क्या फूल की दशा पर किसी ने बिचार किया। नेता को खुश करने के लिए कीमती बुके बनवाया नेता को फुर्सत नहीं की उसकी ओरे देखे वह लेन वाले को भी ठीक से नहीं देखता साथ मैं खड़े अर्दली को पकड़ा देता है और अगले के लिए हाथ बढा देता है फिर वे एक दुसरे के ऊपर पड़े अपनी किस्मत को रोते है बहुत हुआ दो चार दो चार सब कर्मचारी बाँट लेते है। या एक कोने मैं पड़े रहते है भीड़ मैं कुचल जाते हैं अ किसी की वश्गंथ होती है विवाह की रजत जयंती होती है पांच सौ छ सौ हजार दो हजार का बुके लेट हैं एक तरफ रखता जाता है बाद मैं कार्यक्रम की समाप्ति पर करीबी रिश्ते दारों से कहता है भाई तुम लोग ले जाओ मैं कितने लगाऊँ मन ही मन कहता है इससे तो नकद देते या गिफ्ट तो कम से कम पार्टी का खर्च तो निकलता और दुसरे या तीसरे दिन वे फूल गल कर बदबू देने लगते है और कूड़ेदान का सफ़र तय होता है। जितना अपमान मान करने के लिए पहनाई जाने वाली फूलमाला का होता है किसी का नहीं पहनाये जाने के साथ ही उतारे जाने की तयारी हो जाती है तुरंत उतार कर रखदी जाती है फिर वह मेज पर ही पड़ी रहती है पहनने वाले चले जाते हैं और मेज पर थोड़ी थोड़ी दूर पर इसे ढेरियाँ लगी होती हैं जब सुबह लोटे ले कर चलने वाले छोड़ कर जाते हैं। बूके लेना और देना बंद किया जाना चाहिए
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-07-2017) को "गोल-गोल है दुनिया सारी" (चर्चा अंक-2656) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मुझे फूल देना इसलिए पसंद नहीं है...मैंने दिया ही नहीं कभी.....भगवान पर भी चढ़ाता नहीं...
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