Sunday, 22 January 2017

नया क्या वास्तव मैं नया है

नया वर्ष आ गया , फिर से हम अपनी अपनी दीवारों से कलैंडर उतार देंगे क्या वास्तव में कुछ नया होता है ,,।फिर नई तारीखें आयेंगी एक  साल पुरानी तारीख नई होकर झड पुंछ कर चमकेगी पर वही रहेगी कदन वही रहेगा वैसे ही़ । मौसम भी तो वही आता है पर कुछ बदलता नहीं है । एक नया संकल्पलेते हैं कि हम आने वाले वर्ष दुनिया बदल देंगे । चाहते हैं कि हमारे लिये संकल्प को निभायें दूसरे । हम अपने को नहीं बदलेंगे । वही 26 जनवरी आयेगी ,बड़े बड़े नेता अफसर देष भक्ति के गीत गायेंगे और नहीं बता पायेंगे कि यह गणतं़त्र दिवस है या स्वतंत्रता दिवस , झंडे का कौन सा रंग ऊपर रहता है और किसलिये ये रंग लिये गये हैं वे एक ही रंग जानते हैं वह है सत्ता का रंग और उसके लिये वे फिर से देश बेचने के लिये तैयार हो जायेंगे ।
      बसंत के आते ही बेटियों को शिक्षित करने के लिये  हम बेचैन हो उठेंगे क्योंकि ,क्योंकि सरस्वती शिचा की देवी है तथा देश को शिक्षित करना हतारा कर्तव्य है । लेकिन शिक्षा के लिये आवंटित पैसे को  समाज के लिये नहीं अपने घरों को भरने के लिये बेचैन हो उठते हैं लाखों बच्चों के नाम स्कूल में लिख जाते हैं पर स्कूल खाली  शिक्षक नदारद और कागजों में सब मौजूद बच्चे सड़क पर और शिक्षा की कीमतें बढ़कर जमीनी कारोबार करती रहती हैं ।
      होली के साळा सद्भाव का पाठ पढ़ाते हैं बुरार्द की होली जलती है और अधिक सांप्रदायिकता फैल जाती है । अब जरा जरा सी बात पर एक दूसरे के धर्म आहत हो जाते हैं । समाज में बबाल फैलाना है तो कही भी कुछ अपमानजनक लिख दो या मांस उछाल दो  । बवाल तैयार चाहे जितना उपद्रव करालो हमारी युवा शक्ति बेकार है ही  दिशा हीन है कुठित दमित भावनाऐं सामने उछाल मारती हैं । उनका उपयोग कुचक्र रचते हुल्लड़बाज । कही गाय का मसला तो कहीं पैगम्बर के लिये कहना कोई मंदिर में गाय काट देगा ।इसलिये कि वर्तमान सरकार को गाली दे सके और अपना वोट बैंक तैयार कर सकें और समान लूटकर बेगुनाहों को उनके न किये गये गुनाहों की सजा दें ।
     शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित हर वर्ष करेंगे पर नये नये शहीद समाने आयेंगे । देष को आजादी दिलाने के लिये जान गंवाने वाले अब शहीद नहीं हैं अब देश के लिये लड़कर जान गंवाने वाले अब शहीद नहीं हैं हॉं भमल से सीमा लांघने वाले शहीद हैं या उपद्रव कर जेल गये लोग शहीद हैं ।
      पर्यावरण दिवस मनायेंगे जोर शोर से पेड़ लगाते फोटो खिचायेंगे किर भूल जायेंगे कि वह डाली कहॉं सूख रही है । चुपचाप पेड़ काटकर बिल्डिंग बनवायेंगेगणेशजी की पूजा करेंगे ,देवीजी के आगे नाचेंगे दशहरा मनायेंगे जमुना गंगा को प्रदूषित कर प्रसन्न हो रहे हैं हमने देवता मना लिये अब हमारा कौन बिगाड़ कर सकता है ।दो अक्तूबर के साथ तहखानों में पड़ी गांधीजी की तस्वीर चमकायेंगे ।उनकी बातों को दोहरायेंगे ।उनके बताये मार्ग पर चलने के लिये प्रतिज्ञा करेंगे फिर भूल जायेंगे अगले वर्ष तक के लिये ।
   रावण जला रहे हैं उसने सीता का अपहरण किया लेकिन सीता को आहत नहीं किया यहॉं अबोध कन्याऐं लड़कियॉं, महिलाऐं दुंर्दान्तों के हाथों दुंर्दशा प्राप्त कर मार दी जाती हैं जैसे किसी रबर के खिलौने को तोड़ा मरोड़ा और फैक दिया ।उन्हें कुछ नहीं होता सुघारने के नाम पर पुरस्कृत किया जाता है ।
    नव भोर की आशा में फिर कलैंडर बदलता है लेकिन परिस्थितियॉं और अदतर होती हैं बात असहिष्णुता भेदभाव जातपॉंत मिटाने की स्त्रियों के उन्नयन की भ्रष्टाचार मिटाने की करेंगे । अपना देना पड़े तो गाली देंगे और लेना पड़े तो अधिकार । चाहेंगे पल भर में दुनिया बदल जाये साफ हो स्वच्छता हो क्योंकि कहा गया है पर हम खुद कुछ नहीं करेंगे गंदगी फैलायेंगे और गाली देंगे कि सफाई नहीं हुई ।
    पाकिस्तान को धोखेबाज कहकर गालियॉं देंगे पर अपने देश के गद्दारों को कुछ नहीं कहेंगे जो असली भितरघाती हैं । लंका रावण की वजह से नहीं गिरी विभीषण की वजह से नष्ट हुई। धिक्कार तो ऐसे लोगों को है । 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-01-2017) को "होने लगे बबाल" (चर्चा अंक-2584) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. एक रस्म है जिसकी अदायगी कर देते हैं एक जनवरी को ...

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