बड़ी छोटी मछली
अब मछलियां बगुले के झांसे में नहीं आने वाली थी। वह उसकी जात पहचान गई थी। ‘हूँ! खड़ा है आंख बंद किये एक टांग पर खड़ा रह बच्चू तू क्या, समझता है कि हम झांसे में आ जायेंगे। मछलियाँ हंसती व भगत बन बगुले के आस पास भी नहीं फुदकती थी। एक आंख से देखती और डुबकी लगा कर दूर ही दूर किलोल करती रहती और जैसे ही उसकी टांग हिलते अथाह जल राषि में गायब हो जाती। बगुले परेषान हो गये। वे छिप कर भी बैठे पर पत्थर की ओर में बैठे पर मछली मछली। खबर पहुंच जाती और उस के आस पास भी मछलियाँ नहीं फटकती थी परेषान बगुलो ने रूप बदले नये रूप बनाये अंत में तेजी से झपट्टा मार कर मछलियों को पकड़ने लगे। पहले तो भूख लगने पर ही मछलियों के लिये घात लगाते थे परंतु जब उन्हें मछलियाँ मिलना मुष्किल हो गया तो मौका पाते ही पकड़ लेते और पहाड़ी पर सूखने रख देते जिससे जब जरूरत हो खा सके क्यों कि आगे मिली न मिली।
यह देख मछलियाँ परेषान हो गई सांस लेने तो ऊपर आना ही पड़ता था कभी कभी बेहयानी में कोई बगुले के आस पास ऊपर आती वह झपट लेते।
मछली मछली आपस में सलाह करने लगी कि क्या किया जाय अंत में तय पाया गया कि एक मछलियों की आम सभा बुलाई जाय। बड़ी बड़ी मछलियों को मुखिया बनाया क्योंकि वे सषक्त थी तालियों की गड़गड़ाहट के बीच में बड़ीर मछलियों ने अपनी पूंछ और फन हिलाकर अभिवादन स्वीकार किया और उनकी समस्या सुनी।
मछलियों की सुरक्षा के कदम उठाये जाने चाहिये। इस प्रकार तो मछली की जाति का नामानिषान मिट जायेगा। जल प्रदूशण, मनुश्य घात आदि खतरे तो वैसे ही सर पर घूमते रहते हैं बगुले और परेषान कर रहे है इनसे निजात पाना आवष्यक है। नारे लगाये गये मछली आस्तित्व अमर रहे। मछलियों को जीने का हक मिले। मछली जात जिंदाबाद। बगुले हाय हाय!
बड़ी मछलियों ने प्रस्ताव रखा कि केकड़ों ने बगुले से बदला लिया था उनसे सहायता मांगी जाये तो मछलियाँ सहम गई पर एक मत से सबने हामी भरी ओर केकड़ों के अध्यक्ष के पास जाकर सहायता मांगी। जब बगुलों को ज्ञात हुआ कि केकड़ें मछलियों के साथ आ रहे है तोवे सहम गये उन्होंने बड़ी मछलियों को वार्ता के लिये बुलाया।
बगुले बोले, मछलियाँ हमारा भोजन है हम उनके बिना जीवित नहीं रह सकते हमारा पेट भरा रहेगा फिर कोई परेषानी नहीं है।
इस समस्या का हल तो निकालना ही चाहिये नहीं तो हम सब ये तलाब छोड़ कर गहरे तलाब में चले जायेंगे और अन्य जीवों से मदद लेकर तुम लोगों के आस्तित्व को खतरे में डाल देंगे।
बगुले खिलखिला कर हंस पड़े नादान न बनो तुम बड़ी मछलियाँ ही जब छोटी मछलियाँ निगल लेती हो तो हमारे उन्हें खा लेने में क्या हर्ज है। तुम लोग निरोध घूमो तुम्हें कुछ नहीं होगा पर छोटी मछलियाँ तो कीड़े मकोड़े हैं उनके बढ़ने में क्या लाभ खूब आराम से घूम सकोगी।
अभिवादन के साथ वार्ता समाप्त हुई। छोटी, मछलियाँ बदस्तूर बगुलों के पेट में जाती रही। जब भी कोई छोटी मछली सिर उठाने की कोषिष करती, उन्हें डलिया में भर बगुलों के खेमें में डाली के रूप में पहुंचा दिया जाता।
बगुलों से प्रार्थना की अन्य छोटे कीड़ों को खाकर काम चलाए।
उन्होंने बड़े बड़े वैनर बनाये और जलूस निकाला।
बगुले हमारी सहायता करे
हमारा भक्षण करना बंद करे आदि आदि।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-12-2016) को "फकीर ही फकीर" (चर्चा अंक-2547) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'