Tuesday, 6 September 2016

और अरबों पानी मै

आज  समाचारपत्र मैं पढ़ा गणपति तैयार  किसी ने सजी १० फूट ऊँची प्रतिमा किसी ने पंद्रह फूट ऊँची १० लाख की प्रतिमा हर शहर मैं एक दुसरे को नीचा दिखाते गणपति को ऊँचा उठाते हैं  अरबों रूपये की प्रतिमाये बनती हैं क्या पैन  होता है रंग बिरंगे जहरीले रसायनों से गणपति चमकाए जाते हैं  उनकी जोर शोर से पूजा की जाती है  फिर उसे नदी समदर  मैं बहा आते हैं पानी को जहरीला बनाते हुए पहले यह केवल महाराष्ट्र का उत्सव था वह भी मिटटी की मूर्ती का जो घुलनशील होती थी व् चूने से ओउती होती थी जो पानी साफ ही करता था  एनी प्रदेशों मैं गणेश चतुर्थी मानते थे पर बहुत छोटी सी मिटटी की डली रखकर। लेकिन अब श्रद्धा  का नहीं ये अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा दिखने का उत्सव हो गया है यह गणपति श्राद्ध हो गया है कैसे एक साधक अपने आराध्य को कह सकता है की अब घर से जाओ होगी पूजा
नेता भी जब विसर्जन करने वाली लाखों की मूर्ती के सामने हाथ जोड़ कर खडे होते हैं तब अपनी सोच पर दुःख होता है की मैं कैसे जो हथ्जोद रहा है उसे आराधक मान लूं वह तो वोट को हाथ जोड़ रहा है 

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