भारतीय संस्कृति में जीवन में सोलह संस्कार मनाये जाते हैं अर्थात सोलह बार परिवारीजन उसको होने का एहसास और वे हैं उसके लिये अभिव्यक्त करते रहते हैं कि आप हमारे हैं । भरतीय संसक्ृति में उत्सव त्यौहार और संस्कार सबका नियमन केवल पारिवारिक रिश्तों को एक दूसरे को जोड़े रक्षने के लिये हैं और इसमें विवाह सर्वाघिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जीवन का एक ऐसा मोड़ है जहॉं जिन्दगी बदल जाती है नये जीवन का आरम्भ होता है इसके लिये जन्मदाता भी अपने जीवन की संचित पूंजी न्यौछावर कर देते हैं
एक पुत्री का पिता धन जोड़ता है कि बेटी को अच्छे सुपात्र को सौंपे और सुखमय जीवन हो इसके निये अपनी निधि अर्पण करता है मॉं भी बेटी के लिये जोड़ जोछ़कर रखती है । अगर नये गहने न गड़वा सके तो अपने गहने देदेती है और अपने खाली होने पर भी उसे संतोष रहता है कि बेटी को दिये ।यदि बेटी का पिता समर्थ है जो करोड़ों रूपये विवाह में खर्च करता है । शाही खर्च कि दुनिया देखे कि कैसा विवाह किया है । लड़के वाला भी अपना वैभव दिखाने के लिये खर्च करता हैलेकिन जब करोड़ों फूंक कर कुछ ही दिन में बेटी वापस आजाती है और एक वाक्य बोल देती है कि मैं नहीं रह सकती ।या तब भी वर पक्ष असन्तुष्ट हे और दो प्राणी नयी जिन्दगी के लिये एक पथ पर जाने की जगह दो अलग अलग पथ पर चल पढ़ते हैं तो सर्वाधिक नुकसान किसका होता है ।
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2016) के चर्चा मंच "आदिशक्ति" (चर्चा अंक-2482) पर भी होगी!
ReplyDeleteशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'