Thursday 19 September 2013

apna nash kar rahe hain hum

इतिहास गवाह है सबसे अधिक युद्ध  धर्म के नाम पर हुए हैं मानव ने अपने को बाँट तो अनेक धर्म मैं है  लेकिन सब धर्मों का स्वरुप एक  है कहीं भी विनष्टि की शिक्षा नहीं दी जाती है  पर मानव ने हर धर्म का अंत विनाश  मान लिया है हम देवी देवताओं को प्यार से घर लाते  उनकी पूजा करते हैं फिर विसर्जन कर देते हैं  अब भगवन बहुत  हुआ अब अप मिलो मिटटी मैं हमे मुक्त करो अब पूरे साल  हम मनमानी कर  फिर आप  को मन लेंगे आप हमारे को माफ़ कर देना  साथ ही विनाश की ओर  एक कदम और बढ़ा देते है नदियों को प्रदूषित करके  मेरे गणपति तुझसे छोटे नहीं हो सकते  तरह तरह के चमकदार रंगों से  रंग कर  अपने पीने वाले  मैं मिला देते हैं  जिसकी हमने पूजा की है उसे  पानी मैं विसर्जन कैसे किया जा सकता है  हर कदम हमारा विसश की ओर ही है स्वयं अपने विनाश की ओर.बृज मैं बहुत उत्सव हैं  देवी  देवता भी रखे जाते थे लेकिन केवल छोटी सी मति की डली  के रूप मैं  और उसे घर मैं तुलसी के पोधे  से उठाया जाता और वहीँ मिला दिया जाता था  यमुना मैं जहर नहीं घोला  जाता था
रहती थी मैं मस्त गगन मैं खेल कराती थी  पेड़ों से
अब तो एसी  की गर्मी मैं जलाता रहता है  मेरा तन
जब तक बह पाऊँगी बह लूंगी जीलो जीलो जीलो
कालिदी  थी स्याम रंग की मन से रंगी हुई थी
देख देख कर अपने जल को दुःख से भरी  हुई थी
कहती है  जब तक मुझमें जल पीलो पीलो पीलो
गंगा जल तो बात दूर की  अब पानी भी भूलो
फिर तो है बस काली  कीचड  पीलो पीलो पीलो

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