एक बार काका कालेलकर ने गांधीजी ने अहिंसा के बारे में तरह तरह के सवाल पूछे। इस पर वे नाराज हो गये,और बोले ‘मान लिया कि तुम्हें अहिंसा मुझसे प्राप्त हुई ,लेकिन जब तुमने उसे अपना लिया,तो वह तुम्हारी हो गई। अब हर बात में,हर क्षेत्र में मुझसे पूछ पूछकर अहिंसा के स्वरूप का निर्णय मत करो ।’
अहिंसा को जीवन में उतारने का प्रयोग मैं अपनी सारी जिंदगी कर रहा हूं,और मुझे उसका साक्षात्कार एक ढंग से हो रहा है। जब तुम अपने जीवनानुभव के बल पर अहिंसा के निजी प्रयोग करोगे,तब तुम्हें शायद दूसरा ही दर्शन होगा । अहिंसा है तो एक सार्व भौम जीवन सिद्धान्त,लेकिन उसके रूप अनेक हो सकते हैं। और वे सब रूप अहिंसा के ही सच्चे स्वरूप माने जायेंगे। सवाल पूछकर मेरी अहिंसा विशेष स्पष्टता से समझ जाओगे ,और उसी का प्रचार करोगे ,तो वह तुम्हारी अहिंसा नहीं होगी। अहिंसा को तुमने पूर्ण हृदय से स्वीकार किया है। अब अपने ही ढंग से ,जीवन द्वारा अहिंसा की उपासना करो