दुःख
पापा का चैथा हो चुका था चार दिन में माँ बेटी का जरा सा चेहरा निकल आया था। पापा के बिना की जिंदगी सोच सोच कर सिहर उठती थी। विनय वापस जा चुका था। पन्द्रह दिन बाद वह भी अमेरिका जा रही थी।.. पर मम्मी अब मम्मी को अकेला छोड़कर अमेरिका कैसे जायेगी... ‘क्या करूँ ’, शुभि परेशान हो उठी, अभी मम्मी जायेंगी नहीं अकेली संतान की यह तो बहुत बड़ी मुश्किल है।
‘कोई दिक्कत नहीं शुभि... आस पास के फ्लैट में यही तो आसानी है किसी प्रकार का डर नहीं है.. तू आराम से जा अब आदत तो डालनी ही पड़ेगी... पापा की तेहरवीं के साथ महिने के ब्राह्मण और बरसी भी हो जायेगी तो तुझे दिक्कत नहीं है... मैं करती रहूँगी।’
‘मम्मी... कैसे अकेले छोड़ँंू... पर माँ बहुत अच्छा जाॅब है विनय तो आ नहीं पायेंगे।’
‘बेटी यह तो नियति चक्र है यह तो होना ही था एक न एक तो अकेला रहेगा ही हाँ जाने से पहले जरा एकाउंट बगैरह देख ले लाॅकर में अपना नाम बगैेरह डलवा ले... ’
शुभि ने पापा का बैंक बैलेंस देखा, लाॅकर देखा, एफ डी आर म्युचुअल फंड आदि देखा एकाएक इतनी रकम... मम्मी कितना खर्च कर लेंगी... सब पर दस्तखत करते अपने सौभाग्य पर एकदम से मुस्करा उठी।
बहुत सुन्दर् और सशक्त।
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