ऽ बरहमासा जाहरमल का
जिसको बाबू किशन लाल ने अपने बम्बई भूषण प्रैस में छाप कर प्रकाशित किया
इसका प्रकाशन 1913 में हुआ
श्री गणेशायनमः
अथ बारहमासा जाहरमल कृत लिख्यते
छन्द
फनपति सुमिर गनपति मनाय सारद को सीस नबावहीं।।
ग्ुारुदेव देवी पूजि के ऋतु बारहमासी गावही ।।
प्यारी परेखा मत करो परदेश को हम जावहीं ।।
प्यारे पिया घर ही रहौ हम तुम बिना दुःख पावहीं।।
चैत्र
चेती हमारी चाकरी अब चैत में जाना बना।।
एक बरस पीछे आबहीं गढ़बावहीं गहना घना।।
प्यारी हमारी बात सुन हम जांय तू मतकर मना ।।
जाहर जिकर सच्चा कहूं अब नाहिं मेरा ठहरना ।।
ज॰ औरत का
चैत चित चिंता लगाई हो हमारे सांइया।।
गहना न चाहिये घर रहौ पिया मैं तेरी बलि जाइयां।।
चल चिमन में गुल खिले फूलों सेज सजाइयां।।
कर मौज रूपकिशोर प्यारे डालकर गल बाहियां।।1।।
बैसाख मास
बैसाख में सब साख हमारी जाय जो घर रहेंगे।
है राज घर की चाकरी वहां चुगल खोटी कहेंगे।।
मत बर्जा होता हर्ज बढ़ता कर्ज कहां से देयेंगे।।
जाहर जो जिंदगी रहैगी घर आय फिर सुख लेंयगे।।
ज॰ औरत का
बैसाख में कामिन छोडके नहिं जाइये।
तजि चाकरी रहिये घरही व्यौपार करना चाहिये।।
अखतीज आईं रीझ चन्दन घिसू अंग लगाइये।।
गले रूप् किशोर प्याारे सब रैन चैन मनाइये ।।
जेठ मास
जाना जरूरी जेठ में लावेंगे जो तनखा चढ़ी।।
जाये बिना आवे नहीं सब जिंस हमारी वहां पड़ी ।।
इकबार जाने देरी तू मत रोक हमको इस घड़ी।।
जाहर जहां में ज़र बिनामुशकिल मरद की है बड़ी।।
ज॰ औरत का
जाना न चाहिये जेठ में ज्वाला जले है धूप की ।
सह गुलबदन कुम्हलायगा सूखी तरी जल कूप की ।।
जल जाओ ऐसी चाकरी बल जाओ गद्दी भूप की।
घर रहौ रूप किशोर मैं बलि जाऊँ तेरे रूप की ।
अषाढ़ मास ।।
अषाढ़ अभिलाषी लगी बिन गये कारज ना सरे ।।
रुजगार छूटे दूसरे मालिक जरीमाना करे ।।
एक दरस देखे तरस अब बिधर के डर सें जी डरै।।
जाहर जबर फन्दा पड़ा दिल कौन बिधि धीरज धरै।।
ज् औरत का
अषाढ़ अलबेली अकेली छोड़ मती में डरूंगी।
घनघोर के आई घटा चढ़ चढ़ अटा खुश करूंगी ।
बलम विदेशों जरउ तौ बिष खाय के मैं मरूंगी।
त्ुाम बिना रूपकिशोर प्यारे घीरज कहौ का विध धरूंगी।
सावन मास
सावन सवारी लैन को आई हैं अब जाना पड़ा।
मलिक ने वहाँ से खत लिखा द्वारे पै हरकारा खड़ा।
धरि घीर मति दलगीर हो आवैं जलद दिल कर कहा
जाहर जरूरी जायेंगे कुछ काम वहाँ अटका पड़ा।।
जवाब औरत का
सावन सदा ना रहै मन भावन अरज चित लाइये।
त्ुम जाओ मैं जीती रहैं वह राह मुझे बताइये ।।
जोवन जवानीदश दिना जायै पै फिर कहां पाइये।।
संग झूल रूपकिशोर प्यारे अब सुन रीझ तीज मनाइये।।5।।
भादों मास
भादों भजन भगवान का भावन भवन में कीजिये।
कामिनि न मन मैला करो खुशी दिल से जानें दीजिये।
सब सदी सुख नींद के दस दिन दुख सह लीजिये।
जाहर जरा कीजै सबर आसा सों बरसों कीजिये ।
जवाब औरत का
भादों भवन भोजन भजन प्यारे बिना फीका लगे।
भरतार हो करतार सम तुम बिन न कछु नीका लगे ।
सौना भला सुख सेज का जाना बुरा फीका लगै।
रुजगार रूप किशोर प्यारे परदेशों में ना काही का लगे ।
आसौज
जब क्वार में त्यौहार आया सुन परी हम जायेंगे।
दरबार पूजेंगे दशहरा नजर वहां दिखायेंगे।
जो वक्त पर पहुच नहीं महाराज वहां रिसायेंगें ।
जाहर न जी में सोच कर जलदी पलट घर आ जायेंगे।
जवाब
आसौज के दिन मौज के परदेश पग पिय मति धरौ।
नौरात हमरे साथ बालम वरत देवी के करौ।
पूजौ दशहरा घर पिया राजा के डर से मति डरौ।
जिन जाओ रूपकिशोर प्यारे पीर विरहन की हरौ।
कार्तिक
कार्तिक करेंगे कूंच मालिक से मिलेंगे जायके।
दिन रैन काटी चैनसे मन राखियो समझाय कै।
सामान सर्दी के करावैं त्यार जल्दी आयकै।
जाडों में जाहर मौज लूटेंगे गले लिपटाय कै।।
जवाब
कार्तिक करौ कुछ दान धर पिया ध्यान श्री भगवान का ।
पूजन दिवाली कौ करौ घर लक्ष्मीनारान का।
हरि भजलू वृंदावन तजि फल मिलै जमुना न्हान का।
जिन जाओ रूप किशोर प्यारे नुकसान मेरी जान का ।
अगहन
मगशिर में मति रोके परी त्यारी करी सब बात सुन
तन यहां अड़ा मन वहां पड़ा अब सोच है दिन रात सुन।
तू दम बदम नाहीं करै मि जायेंगे परभात सुन।
जाहर जलद आजांयगें अब किस लिये घबराय सुन।
जवाब
अगहैन के दिन चैन के माजें मनाय चाहिये।
सुन सर्दमें बेदर्द परदेशों जाना चाहिये ।
रति पति मदन उमगै वदन संग सुख मनाना चाहिये।
नब नारि रूप किशोर सीने से लगाना चाहिये ।
पौष
घन जायतो धन पाइये धनपाय सारी जीविका ।
रहै घर घुसै बेहों गुसे यों जाय मारी जीविका ।
दुख सुखतौ अपना भाग जाती नहीं बिसारी जीविका ।
जाहर जहां में हे सबै जी से प्यारी जीविका ।
जवाब
घन मास में निरआस कर प्यारे हमारे कहां चले ।
जाने न दंूगी सीत में इस सीत में लागोैं गले ।
तुम जिकर जाने का करौ यह बात सुन सुन जी जले।
तन लिपट रूप किशोर जब जाड़े के दिन लागें भले।
माघ
माघ में जाने को नहिं चाहता तुह्मारे साथ से ।
मालिक का मन फिर जायगा डरता हूं में इस बात से।
मन मोह लीना रात से जिस वक्त लिपटी गात से ।
जाहर यह जी में सोच है रुजगार जाता हाथ से।
जवाब
मनमाह में इस चाह में तुम नर हो में हूं नार जी।
बस्तर बसन्ती पहर के नख शिख सजौ सिंगार जी
बन कीर कोकिल बोलते मौरी है अम्बा डाल जी।
ऋतुराज की चल आज रूपकिशोर देख बहार जी ।
फागुन
फागुन फंसाया दिल हमारा क्या परी जादू करा ।
जाने को जी चाहता नहीं नहीं कदम आगे को जाता धरा ।
हुस्न कामनी मन भावनी मिठ बोलनी तें मन हरा ।
जाहर जवानी से दिवानों फाग खेलें रंग भरा ।
ज्बाव
फागुन फिकर मनका गया सुख भया सुन सुन बोलियां।
केशर अगर चन्दन तगर भरलीं गुलालों झोलियां
में मलें तुम मुख रोलियां तुम रंगो हमारी चोलियां
दिल चोर रूप किशोर प्यारे आज खेलों होलियां ।
लोंद
लगा महिना लोंद का लाडू कराये त्यारजी
गाये बधाये द्विज जिमाये भयै मंगल चार जी।
कल्लाद है जल्लाद हे उस्ताद नर की नार जी ।
जाहर रखे बिरमाय रूप किशोर से भरतार जी ।