जो बोयेगा वह काटेगा।
सेानू के घर के सामने कच्चा आंगन था जिसे उसकी माॅं गोबर से लीप देती थी । एक दिन उसके कोने मे नन्हा सा पौधा उगा। दो नन्ही नन्ही पत्तियों को देखकर वह बहुत खुश हुआ। वह प्रतिदिन उसे बढ़ते हुए देखता जरा सा बड़ा होते ही उसने उसके चारों ओर बाड़ा सा बना दिया। उसमें पानी देने लगा अभी मालूम नही था कि वह किस चीज का पेड़ है। उसने माॅं को दिखाया तो बोली,‘ लगता तो पपीते का पेड़ है सोनू के दोस्त अचल के पिछवाड़े कच्चा स्थान पड़ा था जहां घर का कबाड़ा डाला जाता था। सोनू के घर पर पपीते का पेड़ उगा है सुनकर देखने गया।
छः महीने मंे पेड़ करीब तीन हाथ लम्बा हो गया था। अचल का मन भी उत्साह से भर उठा उसके घर की कच्ची जमीन तो सोनू से तिगुनी ह,ै दो दो गज की दूरी पर यदि पेड लगाये तो करीब चैबीस पपीते के पेड़ लग जायेंगे । साल सवा साल मंे पपीते का पेड़ फल दे देता है, एक पेड़ पर आठ पपीते भी लगे तो पपीतांे का ढेर लगा जायेगा।
सारी रात उसे स्वप्न मंे भी फलांे से लदे पेड़ नजर आने लगे। सुबह उठते ही वह कच्ची जगह को देखने गया। हाॅं, चैबीस पेड़ तो लग ही जायंेगें। लेकिन कूड़ा कबाड़ा बहुत पड़ा है केवल चार छः पेड़ लायक ही जगह खाली है चलो आज तो स्कूल का काम करना है शाम को सारा समय सोनू के पेड़ को देखने मंे ही लग गया कल से थोड़ा थोड़ा उठाना शुरू कर दूॅंगा।
उसने उसमें से लोहा लंगड एक तरफ छांटना शुरू किया लेकिन शीघ्र ही थक गया और बोरियत होने लगी। कल करूंगा। दो तीन दिन थोड़ा थोड़ा काम करने पर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। बरसात आने मंे अभी तो दिन है हो जायेगा । वह कभी कभी जाकर जगह को देखता।
सोनू अचल की योजना से बहुत प्रसन्न था उसके पेड पर सफेद पीले मकरंद भरे फूल आने लगे थे साथ ही उसने कुछ दूरी पर एक नीबू का पेड भी लगा दिया था वह अचल के घर के ढेर से पेडों की कल्पना से रोमांचित हो उठा था काश उसके पास भी ज्यादा जगह होती । बस एक फूल का पौधा और लगा सकता है । जगह ही नहीं है पर वही सही, गुलाब का पौधा लगायेगा उसने अचल से कहा पपीता का पौधा तो बीज डालने से बन जाता है । अभी पपीते के बीजों को खाली जगह बोदे। ‘अरे! नही सारा काम एक बार मे हो जायेगा नर्सरी से अच्छे पौधे लाकर लगायेगें ’ अचल ने लापरवाही से कहा।
‘‘तो इसकी सफाई कब करवायेगा?‘‘ सोनू का जोश कम नही हुआ था।
‘‘कबाडा वाला आयेगा उसे लोहा लंगड बेच दूंगा ,तब काम करूं क्यांेकि कुछ सामान ऐसा है मम्मी बेचने नही दे रही हैं, कहती हैं काम आयेगा।’
‘तब तक जितनी जितनी जगह है उतने ही पौधे बो दे’ सोनू बोला ।
‘नहीं, नहीं, एक साथ ही करुंगा ’ लापरवाही से अचल ने कहा
तीन महीने बाद एक दिन दो सुनहरे पीले रंग के पपीते लेकर आया और अचल को दिये एकदम मीठे जैसे दशहरी आम। उफ ! डेढ साल बीत गया अभी तक उसने एक पौघा भी नही लगाया जबकि सोनू का पेड़ फल देने लगा ।
पहली बरसात ही मंे अचल ने खाली जगह पर तीन पौधे रोप दिये।
सामयिक और सशक्त।
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