Sunday, 7 July 2019

बच्चों को नमन

मेरी नानी का  घर मथुरा शहर मैं ही था शहर का आखरी कोना ये मैं ६० वर्ष पूर्व की बात बता रही हूँ  अब वः आखरी कोना नहीं है उसके बाद तो  शहर का बुत विस्तार हो गया है  तब ओह बहुत  सुंदर जगह थी घर के सामने बड़ी सी खुली जगह  उसके तीन ओरे माकन  एक ओरे मंदिर फिर यमुना का घाट दूसरी तरफ पक्की सड़क पार करते ही शहर आ जाता था  मतलब यह है  कभी शहर और गाँव के बीच बहुत खेत थे  लेकिन शहर ने अब बढ़ कर गाँवो को समेत लिया है  गाँव शहर का ही हिस्सा हो गया है लेकिन बस्ती अभी पुराने ढंग की बसी है उसके बाद खेत ही खेत थे शहर भी यमुना नदी भी है पर खेत नहीं हैं।
घर के एक दरवाजे से निकलते तो किसानों के घर थे गाँव के बच्चे थे अ उनके खेल भी अलग थे उनके खिल्लोने भी खुद बनाये होते थे दो  पान  मसाले के डिब्बों  मैं तली मैं छेद  कर के धागा बांध कर    सीधे दूर खड़े हो कर फोन की तरह बात करते थे अ तब बच्चे फोन का मतलब भी नहीं जानते थे लगता है सदियों पहले बच्चे न जाने क्या क्या अविष्कार कर लेते थे वैसे पान मसाला तो तब प्रचलन मैं नहीं था पर टीन  के डिब्बे होते थे  बच्चों की दुनिया को नमन है  

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-07-2019) को "जुमले और जमात" (चर्चा अंक- 3391) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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