मुझे साहित्य मंडल परिवार श्री नाथ द्वारा से निमंत्रण आया वे मुझे या कहिये मेरी साहित्य यात्रा को सम्मानित करना चाहते थे श्री नाथ द्वारा जाने का सौभाग्य मिल रहा है सोच कर ही प्रसन्न हो गया श्री नाथ जी का प्राकट्य मथुरा मंडल के गोवेर्धन मैं हुआ था जब वे बालक थे तभी उन्होंने गोवेर्धन उठाया था उसी स्वरुप का प्राकट्य हुआ था मथुरा मैं कृष्ण की आराधना बाल रूप मैं ही की जाती है और उन्हें वहां लाला कहा जाता है घुट्नु चलते बालक का स्वरुप एक हाथ मैं माखन का गोला वही स्वरुप मन मैं रहता है सोचा चलो अपने लाला को देख आएं अब कैसा है श्री नाथ जी मैं तो लाला के नाम के आगे श्री नाथ लग गया है वह बड़ा हो गया होगा संध्या ६ बजे पहुंचे और दर्शन करने गए उस दिन श्याम घटा थी केवल उनका मुखमण्डल दिख रहा था सच मैं ऐसा लगा कन्हैया शैतानी से देखते हुए ऊ ऊ ऊ कर रहा जैसे सर्दी से कांप रहा है और यशोदा माँ की गोदी मैं दुबक कर अपना केवल मुख दिख रहा हो। सच मैं लाला बहुत नटखट है कितना भी बडा हो जाये बाल लीला तो करता ही रहेगा
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