Wednesday, 9 January 2019

krashn ki balleela

मुझे साहित्य मंडल परिवार श्री नाथ द्वारा  से निमंत्रण आया वे मुझे या कहिये मेरी साहित्य यात्रा को सम्मानित करना चाहते थे श्री नाथ द्वारा  जाने का सौभाग्य मिल रहा है सोच कर ही प्रसन्न हो  गया श्री नाथ  जी  का प्राकट्य मथुरा मंडल के  गोवेर्धन मैं  हुआ था  जब वे बालक थे तभी उन्होंने गोवेर्धन उठाया था  उसी स्वरुप का प्राकट्य हुआ था मथुरा मैं कृष्ण की  आराधना बाल रूप मैं ही की जाती है  और उन्हें वहां लाला  कहा जाता है  घुट्नु चलते बालक का स्वरुप एक हाथ मैं  माखन का गोला  वही स्वरुप मन मैं रहता है  सोचा चलो अपने लाला को देख आएं अब कैसा है श्री नाथ जी मैं तो लाला के नाम के  आगे श्री नाथ लग गया है  वह बड़ा  हो गया होगा  संध्या ६ बजे पहुंचे और दर्शन करने  गए उस दिन  श्याम घटा थी केवल उनका  मुखमण्डल दिख  रहा था  सच मैं ऐसा लगा  कन्हैया  शैतानी से देखते हुए ऊ ऊ ऊ कर रहा जैसे सर्दी से कांप रहा है  और यशोदा माँ की गोदी मैं  दुबक कर अपना केवल मुख दिख रहा हो।  सच मैं लाला बहुत  नटखट है कितना भी बडा  हो जाये बाल  लीला तो करता ही रहेगा 

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