आनंद प्राप्त करने के लिए बहार के साधनों मैं भटकने वाला आनंद के बदले दुःख ही प्राप्त करता है
निर्मल आनंद प्राप्त लिए तो अंदर झांकना आवश्यक है ा इन्द्रियां अंतर्मुखी हों तो आनंद प्राप्त होगा और यदि वे बहिर्मुखी होगी तो सुख दुःख मैं पड़ेंगी
अर्थात बहार के साधनों मैं आनंद है ही नहीं इतना निश्चित है मन जब अंतर्मुखी होता है तभी वह चैतन्य परमात्मा का स्पर्श कर सकता है और जब चेतन प्रभु का स्पर्श होता है तभी अनिर्वचनीय आनंद प्राप्त होता है
निर्मल आनंद प्राप्त लिए तो अंदर झांकना आवश्यक है ा इन्द्रियां अंतर्मुखी हों तो आनंद प्राप्त होगा और यदि वे बहिर्मुखी होगी तो सुख दुःख मैं पड़ेंगी
अर्थात बहार के साधनों मैं आनंद है ही नहीं इतना निश्चित है मन जब अंतर्मुखी होता है तभी वह चैतन्य परमात्मा का स्पर्श कर सकता है और जब चेतन प्रभु का स्पर्श होता है तभी अनिर्वचनीय आनंद प्राप्त होता है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-09-2017) को "वक़्त के साथ दौड़ता..वक़्त" (चर्चा अंक 2716) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'