Wednesday, 5 July 2017

दूध बहाया

वेचारिक मतभेद  मानवीय मस्तिष्क की एक प्रक्रिया है  ये मतभेद आवश्यक  नहीं दूसरों के हित की सोचने के लिए हों हर जगह अपना स्वार्थ सिद्ध ही करना  प्रवर्ती है बात राजनीति की हो तब तो  और भी स्वार्थ  सर उठानेलागते हैं जनता के हित की बात करके नेता अपना उल्लू सिद्ध करते हैं  जनता के हित अहित से उन्हे कोई मतलब नहीं होता बस  विरोध करके सामने वाले को परेशां करना ही मंतव्य होता है
 यह क्या है  क्या सोच है विरोध प्रगट करने  के लिए दूध केन के केन  नदी मैं बहा दिए  यह विरोध नहीं अन्न का अपमान है  उन बच्चों से पूछो जिन्हें  दूध देखने को नसीब नहीं यह  घोर  अपराध  मन चाहिए जिस भी कार्य से जनता को पीड़ा पहुंचे ऐसे विरोध अपराध की श्रेणी मैं आने चाहिए। जाम  लगा कर मार्ग रोकने से किसका हित होता है  किसीका नहीं परेशान जनता होती है  आज एक परिवार  उस जाम की वजह से मौत के मुहमैं चला गया  जाम लगाकर नेतागिरी कर ली पर उजड़े जनता के घर। आरक्षण के नाम पर लोगों के घर जलना वहां फूंकना  उनकी बहन बेटियों को परेशान करना ये क्या  क्षमा करने योग्य है। जिस भी  प्रकार से जनता को परेशान करने वाले नेताओं को जनता को भी स्वयं बहिष्कार कर देना चाहिए। जाम लगन वालों को घर से नहीं निकलने देना चाहिए घर मैं वैठो

Monday, 3 July 2017

मैं एक नन्ही कली

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बूके देना बंद करें

फूल  की भी कैसी किस्मत है जिसने नजर डाली बुरी नजर डाली अ उसका सुन्दर होना अभिशाप हो जाता है  उसे पूरी तरह डाली पर खिल कर खुशबू भी नहीं बिखराने देते हैं।  बहुत खुशबू दर फूल है तोड़ लेंगे और एक दो बार  सूंघ कर फेंक  देंगे।  तब क्या फूल की  दशा पर किसी ने बिचार किया।  नेता को खुश करने के लिए कीमती बुके बनवाया  नेता को फुर्सत नहीं की उसकी  ओरे देखे  वह  लेन वाले को भी ठीक से नहीं देखता साथ  मैं खड़े अर्दली को पकड़ा  देता है  और अगले के लिए हाथ बढा देता है  फिर वे एक दुसरे के ऊपर पड़े अपनी किस्मत को रोते है बहुत हुआ दो चार  दो चार सब कर्मचारी बाँट लेते है। या  एक कोने मैं पड़े रहते है भीड़ मैं कुचल जाते हैं अ किसी की वश्गंथ होती है विवाह की  रजत जयंती होती है पांच सौ  छ सौ हजार दो हजार का बुके लेट हैं  एक तरफ रखता जाता है बाद मैं कार्यक्रम की समाप्ति पर करीबी रिश्ते   दारों से कहता है भाई तुम लोग ले जाओ मैं कितने लगाऊँ मन ही मन कहता है  इससे तो नकद देते या गिफ्ट तो कम से कम पार्टी का खर्च तो निकलता  और दुसरे या तीसरे दिन वे फूल गल कर बदबू देने लगते है और कूड़ेदान का सफ़र तय होता है।  जितना अपमान  मान करने के लिए पहनाई जाने वाली फूलमाला का होता है किसी का नहीं पहनाये जाने के साथ ही उतारे जाने की तयारी हो जाती है तुरंत  उतार कर रखदी जाती है  फिर वह मेज पर ही पड़ी रहती है  पहनने वाले चले जाते हैं और मेज पर  थोड़ी थोड़ी दूर पर इसे ढेरियाँ लगी होती हैं जब  सुबह लोटे ले कर चलने वाले छोड़ कर जाते हैं। बूके लेना और देना बंद किया जाना चाहिए