Saturday, 25 June 2016

neta bantey hi

नेता होते ही सुबह से शाम तक उद्घाटन आदि करने का कार्यक्रम प्रारम्भ हो जाता है या लोगो की सिफारिशों का कार्यक्रम उनका ताँता कुर्सी इतनी अहम हो जाती है कि  अहम का विशाल तम्बू उनके चारो ओरे बन जाता है और वे सड़क से उठकर सबसे उच्च पद पर आसीन हो जाते हैं वह सब किसके कारण  यह हम जन साधारण की वजह से कि अपने चेहरे चमकाने के लिए उनसे जान पहचान है यह बताने के लिए उनसे ही उद्घाटन करवाएंगे तो क्या हम नेता इसीलिए बनाते है सुबह से रत तक कार्यक्रमों मैं भाग लेंगे तो जनता का काम कब करेंगे
नेता बनते ही घर की टूटी ईंट सोने की हो जाती है  आम जनता की वजह से मेरा काम कैसे भी करदो अब इसमें किसकी पहुँच कितनी है कितनी ऊपर है यही अहम बच्चों में भर जाता है जो उनके विनाश का कारण बनता है वे शिक्षा से अधिक गुंडागर्दी मैं लग जाते है क्योंकि जब धमकी से उनके आगे सब नत है और सब कुछ प्राप्त हो रहा है  तो उन्हें पढ़ने या काम करने की क्या आवश्यकता है एक फ़ोन घुमाया नेता पुत्र  चाबी उँगलियों पर घुमाते  थानेदार की ओरे व्यंग से मुस्कराते शिकायत करने वाले को फिर धमकी देते बहार फिर दूने जोश से अपराध मैं लिप्त हो जाते हैं स्वय अपने बच्चों के विनाशक हैं ये तथाकथित महापुरुष। 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-06-2016) को "अपना भारत देश-चमचे वफादार नहीं होते" (चर्चा अंक-2385) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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