Saturday 2 April 2016

kursi

पहले कहा  जाता था  कि  कुर्सी के  ऊपर  कच्चे धागे  से तलवार  बंधी  रहती है  लेकिन टूटकर वह तलवार  अब हाथ मैं आ गई है और जिसे कुर्सी मिल गई है वह हर तरह से मजबूत हो जाता है  दो पैर के स्थान पर छ  पैर वाला हो जाता है  और हाथ मैं तलवार उसे दबंग बन देती है  और छात्रावस्था  मैं जब पहले शिक्षा ही केंद्र मैं रहती थी  अब कुर्सी पाना केंद्र हो गया है  कुर्सी के बल पर शक्ति और शक्ति के बल पर  सब कुछ आसानी से मिल जाता हे धन बल शोहरत  तब पढ़ने की क्या आवश्यकता है पढ़ने के लिये तो मेहनत करनी पड़ती है लेकिन कुर्सी के बाद तो जेब से बस नोक ही बाहर करनी पड़ती है  सब कुछ हाजिर     

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-04-2016) को "कंगाल होता जनतंत्र" (चर्चा अंक-2302) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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