Monday, 27 May 2013

apraadh aur apraadhi

प्रतिदिन अनेकों अपराध होते हैं और अपराधी पकडे  जाते हैं  चाहे कैसा भी  अपराध करे उन्हें चंद रुपयों  के बदले जमानत मिल जाती है फिर वह खुले आम अगला अपराध करने के लिए तैयार हो जाता है  एक अपराध की सजा चन्द दिन की जेल है तो दुसरे  अपराध की सजा  चंद  दिन की जेल ही तो होगी और वैसे भी  जेल अपराधियों का  प्रशिक्षण शिविर  ही तो है वहां अपराधी प्रवरर्ती के व्यक्ति  और चतुरता से अपराध करना सिखाते  है अपनी कमी व  दुसरे  की कमियों  को दूर करके और भी वीभत्स  अपराध  करने के लिए तैयार हो जाते है  नादानी मैं किये अपराधों मैं लम्बी जेल होती है लेकिन महिलाओं  के साथ कैसा भी कांड करले चाँद दिन मैं छूट  जाते है . मौज करले फिर बार बार जिंदगी तो मिलेगी नहीं  दूसरे  की परवाह  मत कर अपने मजे को आँख कान बंद कर लूट .
 बीस बीस  पैसे करके  तुम
रुपया एक बचालो
हम महलों की बात करें
तुम कुटिया  एक छ्वालो
देश हमारा हमको  प्यारा
खालो खालो  खालो
सौ  रूपये जब हो जाये तो
हमको देदो दान
अनशन और उपवास करो
वह करता है कल्याण
लेकर के खडताल हाथ मैं
गालो गालो गालो
भूखे नंगों की टोली है
भारत की पहचान
देश हमारा हमको  प्यारा
खालो खालो  खालो 

fandoos

बुद्धिजीवी  समस्याओं  का  समाधान करते हैं  और बुद्धिमान उन्हें रोकते हैं

जंगल मैं शेरों  से भिड़ने की तुलना मैं उनका समर्थन करना कहीं ज्यादा आसान  होता है  बस इतनी ही वजह है है जो सारे बुद्धिजीवी  सरकार का समर्थन करते हैं

हमारे यहाँ  इसे तमाम बुद्धिजीवी  हैं जो कॉमन सेंस का इस्तेमाल करने से डरते हैं

किसी चीज के बिलकुल दुरुस्त होने पर संदेह करना  तो बुद्धिजीवियों  और लेखकों का  काम ही है




Monday, 20 May 2013

lash bolti nahin

जवान  लड़की  चीखती रहती है  दस पंद्रह दुर्योधन सीत्कार लेते  चीरहरण  करते है और सब रस ले ले कर उसके शरीर पर हाथ फेरते हैं कोई कृष्ण तो क्या आता हजारों की भीड़ आँख फेर कर चली जाती है कान भी बंद नहीं करती  आवारा किस्म के लड़के अपनी विकृत मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं और  भीड़ यह देखती है मानव कैसे बर्बर हो जाता है मानव जंगली था परन्तु शायद जंगल में ऐसी घटक मानवता देखने को नहीं  मिली होगी .मानवता मैं सडांध  फ़ैल  गई है पडौस  मैं पूरा परिवार चार पांच दिन सड़ता  रहता है मालुम तब पड़ता  हैजब खड़ा  होना मुश्किल हो जाता है  ये मानव शरीर नहीं सम्बन्ध सड़ते हैन.लद्कि सन्नाटे मैं बड़े अपार्टमेंट मे चीखती है चिल्लाती है पर किसी की आँख नहीं खुलती  या खुली आंख बंद कर लेते है कसकर  साथ ही कान भी
तड़प तड़प कर  वहां से टकराकर व्यक्ति दम तोड़ देता है पर सब जल्दी मैं हैं या कौन झंझट मोल ले निकल चलो जो बोले सो कुण्डी खोले यदि रुकता है  या अस्पताल ले जाता है तो रुकने वाला  जेल की हवा खाए या  कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाए क्योकि पुलिस वाले उसी को धर लेंगे वो भी क्या करें करें उन्हें भी गूद्वार्क के लिए कोई चाहिए चल तू आया तू ही सही  इंसानियत क्या करेगी जब इंसानियत भगवान् समझे जाने वाले  के दर पर काम नहीं करती है तो पुलिसवालों  की तस्वीर तो वैसे ही धूमिल है .अस्पताल के गेट पर बुखार से बीमारी से  भर जाता है पर उसे एक गोली दवा  की डॉक्टर  नहीं देने को तैयार कौन दे अस्पताल मैं आता है  पैसे सब मिलकर खाते  हैं तो खर्च भी सब मिल कर करें  .इंसानियत तो मर चुकी है उसकी लाश  धो रहे हैं लाश पर कोई असर नहीं होता . 

Sunday, 19 May 2013

hasna bhi kala hai

कहते हैं न हँसी शरीर को स्वस्थ रखती है  और आजकल स्वस्थ रहने के लिए जब हमारे पास  घी दूध  दही फल सब्जी  हवा पानी कुछ भी नहीं है  यदि जरा बहुत अभी है  अगर सरकार की ऐसी  ही मेहरबानी चलती रही तो जल्द वह  भी खत्म हो जाएगी  और जो है वह नकली मिलावटी  या इतना महंगा  की उसकी मात्र  खुशबू  रंग देख सुन कर खुश हो लें  इसे मैं अगर हसने  से स्वास्थ  मिलता हो तो तो क्या बुरा है कहीं फ़ोकट मैं आजकल कुछ मिलता है  जबतक इस पर टैक्स  न लगे  इतना हँसो  की हसते  हसते  आँखों में आंसू  आ जाएँये आंसू भी  सांत्वना दे देंगे .
हँसी  भी कई प्रकार की होती है .आँख से हँसा  जाता है कटाक्ष हंसी ,होंट  से हंसा जाता है तिर्यक हंसी ,दांत  से हंसा जाता है  दंत् फटा  हंसी  गालों और गले से हंसा जाता है गल फाड़  हंसी , फिक फिक करे हंसा जाता है फिटकार  हंसी  हाथपैर पटल पटक कर हंसा जाता है वह है जबर हंसी  ,
जिस प्रकार इंसानियत  का अर्थ बदल गया है आजादी का अर्थ बदल गया है  हंसी का भी अंदाज बदल गया है . अब अपने लिए नहीं दुसरे के लिए हंसा जाता है . आँखों से तब हंसा जाता  है जब आपकी वजह से दुसरे का काम बिगड़ जाता है . होंठ तब तिरछे होते हैं जब बताना होता है फन्नेखान तुम नहीं  हम हैं  दांत  से तब हंसा जाता है  जब सामने वाले का  बिगाड़ करके उसे सहलाना भी होता है .गालों से गले से से सामने वाले को प्रसन्न  किया जाता है हो ..हो हो  चिंता  मत करो  हा हा हा   ऐसी पटखनी लगायेंगे की चारो खाने चित होगा [तुम] फिक फिक हंसी फँकने  वाले की बातों  पर आती है फंकाना बंद कर क्यों अपनी  बजाये जा रहा है  पेट  दबा कर तब हंसा  जाता है जब विरोधी कोई गलती कर देता है  बस मिल गया हसने का मसाला .पर जनता  माथा ठोक कर हाथ पैर पीट  कर नेताओं की बातों  को सुन सुन कर हँसती है जब नेता भ्रस्टाचार  हटाने की बात करते हैं तब जनता छाती पीट पीट कर हां हा कर स्वास्थ  लाभ करती है  अब फिर कोई नै योजना  हमारे लिए बनेगी  और उससे जुड़े सारे तंत्र का पेट मोटा हो जाएगा जनता को दुबला होते देख वह  पेट  हिलेगा  की जनता स्वास्थ  लाभ कर रही है .जनता दोनों हाथ उपर उठा कर हा हा  चिल्ला कर बैठ जायेगी अगली सुबह का इन्तजार करने .

Saturday, 18 May 2013

ऱात  दिन आन्दोलन  प्रदर्शन कैंडल मार्च ,आधी  दुनिया सड़क पर लेकिन कोई असर नहीं  वरन मामले बढ़ रहे हैं रेप  गैंग रेप  बालिकाओं  से रेप  के मामले  और भी प्रकाश मैं आ रहे हैं  क्या कारण है  क्या अपराधी इतने बैखोफ हैं  की उन्हें मालुम है सरकार इतनी ढीली है कानून कुछ नहीं बिगड़ पायेगा  कुछ दिन मैं मामला ठंडा  पड़ जायेगा  जो अपराधी हैं उन्हें क्लीन चिट  मिलनी ही है  किसी न किसी रसूखदार की औलाद ही ऐसे  काम करती  कोई न कोई रिश्तेदार ऊँची गद्दी पर बैठा होगा  फिर क्या डर जब सैयां भये कोतवाल फिर डर काहे का .यदि पकड़ा गया अपराधी जनता के हवाले कर दिया जाये  और जनता को उससे निबटने दिया जाये तो खौफ पैदा होगा  लेकिन लड़की या महिला की कोई कीमत नहीं हैं उसके साथ कैसा भी सलूक  हो  हल्केपन से लिया जाता है  लड़कियों को इतने प्यार से शायद इन हरामियों के लिए जन्म दिया जाता है  एक बार इन लुचों से पुछा जाये क्या अपनी बहन बेटी को  इसे वहशियों के सामने फेंक  सकते हैं  उससे ज्यादा वो कसूरवार हैं जो उन्हें बचाने के लिए मानवता की बात करने लगते है तब बस उससे गलती ही होती है  वैसे तो तो जो यह काम करता है जनता है की पकडे गए तो हाल  छूट जायेंगे और दबंग का लेबल और लग जायेगा तो भविष्य  और भी खुला हो जायेगा  कोई फिर दबंग के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत नहीं करेगा  ऊपर से शिकायत करने वाले को पुलिस अधिक परेशान  करती  है  मानवता के संकुचन का कारण पीड़ित की प्रताड़ना है  जानते हुए भी की कौन अपराधी है  मुह  सिल जाते हैं  क्योकि यह जानते हैं की एक भी शब्द  मुंह  से निकल  की फंसेहर तरफ से घेराबंदी  ऊपर से कोर्ट कचहरी के चक्कर काम प्रभावित होता है दबंगों की पहुँच की वजह से नौकरी से और जान से भी हाथ धोना  पड़  जाता है इसलिए मानवता अपने आप भारतीय संस्कृति को छोड़ कर  किसी गुफा मैं तपस्या हेतु चली जा रही  है  

Wednesday, 1 May 2013

juta

भारत  का राष्ट्रीय  व्यंजन क्या है यदि यह प्रश्न किया जाये  तो इसका उत्तर  आएगा आलू का पराठा .अरे चौकिये  मत यदि किसी भी प्रकार के खाने का प्रलोभन   दिया जाता  है  तो यही कहा जाता  है 'आओ आओ  गरम गरम  आलू के  परांठे  बनाए हैं और आने वाला खानेवाला  प्रलोभन छोड़ नहीं पाता .कोई फिल्म देखिये कोई सीरियल यदि खाने का  प्रसंग होगा तो होगा वाह आलू  का परांठा मजा आगया .अब अगर कृष्णलीला  लिखी जाएगी तो कृष्ण गोपियों के  घर जाकर आलू का परांठा चुरायेंगे 'नइ  रामायण मैं शबरी  वन मैं जब गरम करारे आलू के परांठे खिलाएगी तो राम की  आँखों  मैं उसकी निष्ठा के  प्रति स्नेह का दरिया स्वत: बहने लगेगा .बीबी को मिया को रिझाना है रिझाने  से मतलब  कोई काम निकलवाना है वह कहेगी आज आलू के परांठे बनाए है  जैसे दुनिया  का सबसे लजीज  व्यंजन बनाया हो .वाह मजा  आ  गया और उसकी लार टपक जाती है मियां का पेट भरा है तो जहन्नुम  मैं भी ले चलो .पर ये ही परांठे  दुसरे रूप मैं भी प्रचलित हैं है अगर गरम गर्म  तपा  तपा  कर किसी को लगाने  है तो वह है  जूता  जो आजकल सभाऑं  मैं खूब चलते हैं  और खाए भी खूब जाते हैं चुराए भी जाते हैं  कुछ का तो खर्च  भी इसी से चलता है ये मंदिर के आगे  या उठावनियों  मैं मुर्दानियों  मैं गयब हुआ जूतों के मालिकों से पूछो .
वैसे बहुत समय से जूतों की राजनीति चली आरही है  तभी तो भरतजी रामजी की चरण पादुका ले आये . जूता सिंघासन पर ,तब ही से जुटे की राजनीति  चली आरही है .मानेगा बात कैसे नहीं मानेगा जुटे के दम पर मानेगा .तेरी बात तो जुटे की नोक पर है फिर दस नम्बरी हो तो बात ही क्या है  किसी ने सच ही कहा है
बूट दसों ने बनाया ]मैंने एक मजमून लिखा
मुल्क मैं मजमून  न फैला ,और जूता चल गया
अब लो मुशर्रफ तो रिकॉर्ड बनाने जा रहे है  जूते  खाने का .आधुनिक काल मैं  यह अमेरिका के राष्ट्र पति  से प्रारंभ मन जायेगा  और विश्व के सर्वशक्तिमान पर जूता फेंकने की हिम्मत  की उसके सहस का  सम्मान करते हुए उसे विश्व वीरता पदक प्रदान किया जाना चाहिए  जूता खाने से ज्यादा  जूता चलाना मुश्किल है .जूता चप्पल टमाटर अंडे  छुटभैये  नेता  गायक  सबसे ज्यादा  कवि  अपने प्रदर्शन से बटोरते रहे हैं पर पहला जूता फैकने  का असली श्रेय उसी पत्रकार को जाता है उसके बाद तो जूता  फेंकना प्रचलन मैं आ गया  , अब जूता फेंकना  वीरता नहीं प्रचार प्रसार का  माध्यम बन गया है जिस नेता को भाव मिलाना बंद हो जाये  जूता फिकवा दो एकदम मीडिया द्वारा प्रसिद्ध हो जायेगा  यह भी एक नीति है चाणक्य  नीति .