Sunday, 18 May 2025

यक भितरघाती

 बहुत  दुःख बहुत  क्रोध  आता है  जब चंद चांदी के टुकड़ों के लिए कोई  अपने देश को बेचने के लिए तैयार होता है ऐसे लोगों को धिक्कार है  अपनी मट्टी अपना वतन  इससे उपर भी कुछ हो सकता है एक वे महिलाएं सोफिया और व्योमिका जो अपनी जान कुर्बान करने को तैयार हैं और एक ओर जो एश आराम के लिए दुश्मन देश  को सूचना दे रही है  सोफिया व्योमिका को सलाम है 

Friday, 16 May 2025

papa ki pari laghu katha

 

Ikkik dh ijh

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Monday, 5 May 2025

Horla By gai the maupassant

 होरला

           लेखक - गाई द मोपासा


   8 मई , ओह कितना खुशनुमा दिन है। आज मैंने सारा दिन घर के सामने घने छायादार चनार के पेड़ के नीचे घास पर लेटे लेटे बिता दिया। इसका मेरे पूर्वजों से संबंध है ,गहरी और जमी जड़ें किसी भी व्यक्ति को अपनी मिट्टी से बांधे रखती हैं ,यह धर मुझे बहुत अच्छा लगता है। खिड़की से बगीचे के किनारे बहती सीन नदी, दूसरे किनारे पर ऊँची सड़क,,इधर से उधर जाती नावंे दिखाई देती हैं ।

12 मई , मुझे पिछले कुछ दिन से बुखार आ रहा था । कह नहीं सकते कब रहस्यमयी मनोचेतनाऐं हमारी खुशियों को अवसाद में बदल देती है, हमारे आत्मविश्वास को हताशा में । तरंग ,अदृश्य तरंगे अनजान शक्तियों से संचरित हमारे चारों ओर घूमती हैं और उनकी रहस्यमय उपस्थिति हमें प्रभावित करती हैं । मैं प्रसन्न बहुत अच्छी मनोस्थिति के साथ जागा ।

मैं पानी के किनारे गया और कुछ दूर जाकर सहमा सा घर लौट आया , एक ठंडी लहर मेरी खाल पर से गुजर रही थी जो मेरा मनोबल गिरा रही थी। आसमान का रंग, या आसपास के वातावरण का रंग था , जो बार बार अपना रंग बदल लेता था, कुछ भी छुए, बिना जाने, जो कुछ भी हम करते हैं ,बिना वर्गीकरण किये तीब्रता से आश्चर्यजनक अव्यक्त प्रभाव हमारे स्नायुतंत्र पर पड़ता है उसके माध्यम से हमारे विचारों को प्रभावित करता है फिर हृदय को।

इस अव्यक्त की रहस्यमयता कैसी है ,हम अपनी इंद्रियों से नहीं व्यक्त कर सकते।  बहुत नजदीक है या बहुत दूर वह शांत प्रकृति को संगीत भरा कर देती है हमारी सूंघने की शक्ति जो कुत्ते की सूंघने की शक्ति से कम है हमारी स्वाद ग्रंथि जो शराब की उम्र नहीं बता सकती।

17 मई, मैं अपने चिकित्सक से मिला ,क्योंकि मैं सो नहीं पा रहा था। उसने बताया मेरी नाड़ी तेज चल रही है।  किसी विशेष बीमारी का कोई लक्षण नहीं मिला  ।

25 मई , मेरी दशा कुछ अजीब सी हैं । रात आते आते किसी अघटित का भय हावी हो जाता है ,मुझे नींद का डर ,अपने बिस्तर का डर सताने लगता है। 

दस बजे के करीब अपने कमरे का ताला खोलता हूँ मैैं डर जाता हूँ । मैं अपनी दराजें देखता हूँ ,पलंग के नीचे झांकता हूँ । एक असहजता की भावना मेरे रक्त में दबाब बढ़ा देती है । संभवतः स्नायुतंत्र गड़बड़ा जाता हैै। तब मैं बिस्तर पर जाता हूँ मैं नींद का इंतजार करता हूँ जैसे फांसी की सजा पाया व्यक्ति जल्लाद का इंतजार करता है। मेरा शरीर लिहाफ के अंदर कांपने लगता है । मैं नींद के आगोश में चला जाता हूँ 

 संभवतः दो और तीन घंटे ।,मुझे महसूस होता है कोई मेरे निकट आ रहा है मुझे छू रहा है । वह मेरे बिस्तर पर आ रहा है ।मेरी छाती पर झुक रहा है । मेरी गर्दन अपने हाथों में ले रहा है और अपनी पूरी शक्ति से दबा रहा है जिससे मेरा दम घुट जाय।

मैं सपने में लकवाग्रस्त हो रहा हूँ । मैं चिल्लाने की कोशिश करता हूँ लेकिन आवाज नहीं निकलती । मैं हिलना चाहता हूँ लेकिन हिल नहीं पाता । जोर से सांस लेता हूँ जिससे जो मुझे दबा रहा है ,मेरा दम घोट रहा है उसको उठाकर फेंक सकूँ ,लेकिन,मैं नहीं कर पाता।

और तब मैं एकाएक जाग जाता हूँ , कांपता हुआ पसीने से भीगा हुआ।

2 जून, मेरी दशा बिगड़ रही है , कभी कभी जंगलो की ओर घूमने निकल जाता हूँ । मैं सोचता हूँ कि ताजा रोशनी मंद शीतल ,जड़ी बूटियों की खुशबू लिये हवा मेरी नसों में नया खून भर देगी मेरे दिल को नई ताकत मिलेगी। मैं चौड़ी सड़क पर मुड़ जाता हूँ ,सहसा कंपकपी भर गई  । मैंने कदम बढ़ा दिये जंगल में अकेला हूँ । यह एहसास आते ही डर गया । एकाएक मुझे लगा मेरे पीछे कोई है वह मेरे कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। मैं पलटा मुझे कुछ नहीं दिखाई दिया । ंमैं सीधा चला फिर उल्टा और जंगल के बीच में पहुंच गया। 

3 जून, मुझे कुछ दिन कहीं यात्रा पर निकल जाना चाहिये।

2 जुलाई , मैं वापस आ गया, बिल्कुल ठीक बहुत खुशनुमा यात्रा रही । मैं मौन्ट सैन्ट मिशेल गया कैसा सुदर दृश्य था । एक असाधारण बड़ी घाटी मेरे सामने थी । दो पहाड़ियों के बीच जो छुटपुटे में खोती जा रही थी,साफ सुनहरे आसमान में एक अलग सी पहाड़ी ।  सूर्य गायब हो गया ,अग्नि की लपट सी लिये आकाश में उस बलुई पहाड़ी का आकार उभरा उसकी चोटी पर एक प्रतीक चिह्न था।

भोर होते ही मैं वहाँ गया, मैंने देखा वह चर्च  था।  गहरी और संकरी सड़क चढ़कर विशाल चर्च की इमारत तक पहंुचा जो ईश्वर के लिये पृथ्वी पर बनाई गई थी इतनी बड़ी जितना कस्बा  ।

जब मैं चोटी पर पहुंचा तो मैने पादरी को देखा, हम उठती लहरों को देखते हुए बातें  करते रहे। 

तब मुझे पादरी ने कहानियाँ ,, आख्यान सुनाये कस्बे के आदमियों ने जो पहाड़ी थे कहा कि रात में कोई भी बालू पर आवाजें सुन सकता है । तब एक ने दो बकरियों को मिमयातें सुना। ‘असंभव ’ आदमियों ने कहा, यह केवल समुद्री पक्षियों की चीखें हैं जो कभी बकरी के मिमियाने की आवाज लगती है तो कभी आदमियों के रोने कलपने की । लेकिन स्वर्गीय मछुआरों ने कसम खा कर कहा था कि उन्होंने एक एक भेड़पालक को घूमते देखा था उसका सिर उसके लबादे में छिपा था । उसके पीछे एक बड़ा सा बकरा आ रहा था जिसका चेहरा मनुष्य का था और उससे छोटी बकरी जिसका चेहरा औरत का था दोनों के लम्बे सफेद बाल थे । दोनों झगड़ते बदजुवानी में बात करते चल रहे थे  और एकदम दोनों रुक गये और जोर-जोर से पूरी शक्ति से मिमियाने लगे।

‘आप इस पर विश्वास करते हैं? ’ मैंने पादरी से पूछा। ‘मैं नहीं जानता’,,‘अगर धरती पर अन्य जीव भी हमारे समानान्तर हैं यह क्यों है कि हम अभी तक नहीं जान पाये, यहां देखो, हवा प्रकृति में सबसे शक्तिशाली है । वह आदमी को गिरा देती है ं बड़ी बड़ी इमारतें धराशायी कर देती है पेड़ों को जड़ से उखाड़ देती है । जो गरजती है क्या तुमने उसे कभी देखा हैं? 

4 जुलाई ,मैं दोबारा बीमार हो गया मेरे रात्रि के स्वप्न लौट आये थे। पिछली रात को मुझे लगा था कि कोई मुझ पर झुका हुआ है और मेरे होठों के बीच मेरा जीवन चूस रहा है। हाँ वह मेरे गले से जोंक की तरह चूस रहा था मैं उठ गया़, मैं हिल भी नहीं पा रहा था ।

5 जुलाई,  क्या मैंने अपनी अक्ल खो दी है । जो रात में हुआ उसके विषय में सोचता हूँ तो मेरा दिमाग घूम जाता है। प्यास महसूस होने पर आधा गिलास पानी पिया ,देखा पानी की बोतल मुँह तक भरी हुई है। फिर मैं बिस्तर पर चला गया वही भयानक निद्रा । इस बार और भयानक झटका लगा। 

मैंने अपने आपको देखा छाती में खंजर घुसा हुआ है । सांस उखड़ रही है खून से लथपथ सांस नहीं ले पा रहा हूँ । मरने ही वाला हूँ और समझ नहीं पा रहा हूँ क्या यह मैं ही हूँ ।

होश ठिकाने आने पर मुझे फिर से प्यास लगी । मैंने मोमबत्ती जलाई और पानी की बोतल के पास गया । मैंने उसे उठाया वह खाली थी।  मैं एकदम इतने खतरनाक हद तक डर से जकड़ गया कि मुझे बैठना पड़ा । मैं भय और आश्चर्य से जड़ हो रहा था । पारदर्शी कांच की बोतल पर नजरें गड़ा दी । किसी ने पानी पी लिया था लेकिन किसने? मैं नींद में चलने लगा हूँ , दोहरी जिंदगी जिसके विषय में हमें पता ही नहीं होता है । हमारे अंदर दो व्यक्ति हैं या अजनबी, अनजान और अदृश्य । उन क्षणों में जब हमारी आत्मा जड़ हो रही है हमारे शरीर पर हावी हेा जाती है ,वह उसकी आज्ञा मानने लगती है ।

6 जुलाई , मैं पागल हो रहा हूँ फिर मेरी बोतल का पानी रात में कोई पी गया । कौन हो सकता है? हे ईश्वर! मुझे कौन बचायेगा ?

6 जुलाई को बिस्तर पर जाने से पहले मैंने जरा सी शराब, दूध, पानी, बै्रड और कुछ स्ट्रोबरी अपनी मेज पर रखदीं ,लेकिन कोई सारा पानी पी गया  ,थोड़ा सा दूध, लेकिन शराब ब्रैड और स्ट्रोबरी को छुआ भी नही।

सात जुलाई को भी वही अनुभव दोबारा हुआ और आठ जुलाई को मैंने पानी और दूध नहीं रखा, कुछ भी नहीं छुआ गया।

अंत में नौ जुलाई केा मैने केवल दूध और पानी मेज पर रखा, मैंने बोतल को सफेद मलमल के कपड़े में लपेट दिया और अपने हाथ अपने होठ अपनी दाढ़ी को पेंसिंल के बुरादे से मल लिया और सो गया।

गहरी नींद ने मुझे आगोश में ले लिया ओर चौक कर जागा। मैं हिला भी नहीं चादर पर पेंसिंल के बुरादे का कोई निशान नहीं था । मैं मेज पर गया मलमल का कपड़ा ढक्कन पर कसकर बंधा था। मैंने डोरी खोली, मैं भय से कांप उठा, सारा पानी पी लिया गया था और दूध भी ! आह दिव्य ईश्वर तुम दिव्य हो मुझे शीघ्र ही पेरिस चले जाना चाहिये।

12 जुलाई,  पेरिस  चौबीस घंटे में ही मेरे दिमाग को शांत कर देगा। कल कुछ व्यापारिक काम और लोगों से मिलकर कुछ अच्छा लगा, जैसे मेरी आत्मा को शीतल हवा मिल गयी । मैंने शाम प्रांसिस नाटक घर में बिताई। अलैक्जेन्डर ड्यूमास के अभिनय और कल्पना शक्ति ने मुझे पूरी तरह ठीक कर दिया। शायद एकाकीपन दिमाग के लिये बहुत खतरनाक है

14 जुलाई , स्वाधीनता दिवस के जलूस में सड़कों पर बच्चों की तरह खुश होता आतिशबाजी और झंडे देखता चल रहा हूँ ,वैसे सरकारी तौर पर एक निश्चित दिवस पर खुश होना कहाँ की समझदारी है ? भेड़ो के झुंड की तरह भीड़ चल रही है ,अभी विद्रोह में बदल सकता है । हम ऐसे ही है ,खुश हो जाओ तो खुश हो जायेंगे । अगर कोई कहेगा जाओ पड़ोसी से लड़ो, तो लड़ने लगेंगे ,कहेगे सम्राट को वोट देा तो सम्राट केा वोट दे देंग,े अगर कहेंगे जनता को वोट दो जनता केा दे देंगे।

16 जुलाई , मैंने कुछ देखा वह मुझे बहुत परेशान कर रहा है । मैं अपनी चचेरी बहन मैंडम सबले के यहां गया वहॉं डा॰ पेरेन्ट जो स्नायुतंत्र विशेषज्ञ है वशीकरण द्वारा रोग का निदान करते हैं से मिला।

हमे उसने प्रकृति के रहस्य की ओर इंगित करते हुए कहा ,‘  जबसे मनुष्य ने सोचना प्रारम्भ किया, अपने को रहस्यों से घिरा पाया है जिन्हें वह बता नहीं पाता।

जब तक बुद्धि प्रारम्भिक अवस्था में होती है अदृश्य आत्माऐं उसके चारों और घूमती रहती है। जब वे उन्हें महसूस करने लगता है तब अलौकिक शक्ति का एहसास होता है। तब परियाँ, बौने भूत-प्रेत मैं कहूॅं तो भगवान का आस्तित्व ,वह किसी भी धर्म से आया ,सतही लेकिन बहुत ही वेबकूफी भरा अविश्वासनीय आविष्कार मनुष्य के दिमाग में उत्पन्न हुआ । बाल्तेयर ने कहा है, वह सत्य है भगवान ने मानव अपनी कल्पना से बनाया लेकिन मानव ने वापस भगवान को अपने सिक्के में ढाल लिया। मैसमर और कुछ अन्य व्यक्तियों ने हमें अलग रास्ते पर डाल दिया है । मेरी बहन जो जरा सहज ही विश्वास नहीं करती मुस्कराई डॉ॰ पेरेंट उससे बोले,‘ ‘क्या आपको मैं नींद की अवस्था में पहुंचा दूँ मैडम’

‘हाँ, अवश्य ।’

वह एक आराम कुर्सी पर बैठ गई डॉ॰ उसकी आंखों में एकटक देखने लगा। मैने देखा मैडम सबले की आंखों भारी होने लगी , दस मिनट में वह सो गई । ‘उसके पीछे जाओ,’ डाक्टर ने मुझसे कहा मैं उसके पीछे चला गया डाक्टर ने एक विजिटर कार्ड उसके हाथ मे दिया,‘ यह एक दर्पण है तुम्हें इसके अंदर क्या दिखाई देता है ? 

‘वह हाथ के सफेद कागज को ऐसे देख रही थी जैसे दर्पण हो।  डाक्टर ने मैडम सेबल से कहा ,‘जब तुम आठ बजे सुबह उठोगी , चचाजाद भाई को अपने होटल में बुलाओगी उससे 5 हजार फ्रैंक मांगोगी  जो तुम से तुम्हारा पति मांगेगा । ’

फिर उसने उसे जगा दिया । अपने होटल लौट कर मैं सोने चला गया और  सुबह करीब साढ़े आठ बजे मुझे मेरे नौकर ने जागाया उसने कहा, ‘मैडम सबले आप से तुरंत मिलना चाहती है।’

मैं जल्दी से तैयार हुआ और उसके पास गया।

वह कुछ चिढ़ी सी बैठी थी ।  उसने चेहरे से जालीदार आवरण हटाये बिना कहा, ‘भाई मुझे तुम्हारा सहयोग चाहिये।’

‘क्या?’

‘मैं बताना तो नहीं चाहती पर बताना पड़ा ,मुझे पंांच हजार फ्रैंक चाहिये।’

मै हकला उठा ,मुझे लगा कहीं वो मुझे डॉ॰ पेरेंट से मिलकर वेबकूफ तो नहीं बना रही है ।  उसे ध्यान से देखने पर मेरा शक उड़ गया । वह दुःख से कांप रही थी । मैं जानता था कि वह बहुत अमीर है । मैंने कहना जारी रखा,‘क्या तुम्हारे पति के पास पांच हजार फ्रैंक नहीं है ’ ।वह एक क्षण हिचकिचाई जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो, तब बोली ,‘हाँ निश्चय ही उसने लिखा भी था।’

मैंने स्पष्ट कहा, ‘मेरे पास इस समय तो पांच हजार फ्रेंक है नहीं, प्यारी बहन ’ । वह कुछ बुदबुदाई,‘ओह मैंने अनुरोध किया था , मेरा काम कर दो। मैं तुमसे भीख मांगती हूँ ,तुम्हें नहीं मालुम मैं किस कष्ट से गुजर रही हॅंू। मुझे आज ही पैसे चाहिये।’

मुझे उस पर दया आई  ,‘ठीक है तुम्हें कैसे न कैसे मिल जायेंगे ,मैं कसम खाता हूँ ।’

 ‘ओह! धन्यवाद’

जब वह चली गई तब मैं डॉक्टर  के पास गया उसने मेरी बात सुनी और मुस्कराता रहा।

4 अगस्त , मेरे नौकरों में झगड़ा हो गया उन्होंने बताया कि रात अलमारी में रखे गिलास टूट गये। झाड़ पोंछ वाले ने रसोइये पर इल्जाम लगाया । उसने बर्तन धोने वाली पर इल्जाम लगाया । कौन अपराधी है? जो भी है चालाक है ,कौन बतायेगा ?

6 अगस्त ,इस बार मैं पागल नहीं हूँ कोई शक नहीं मैंने उसे देखा।

मैं दोपहर तेज सूर्य की रोशनी में दो बजे अपने बगीचे में गुलाब की क्यारियों के बीच टहल रहा था । मैं जाइंट बैटिले को देखने के लिये रूक गया उस पर तीन बहुत सुंदर गुलाब खिले थे।एक गुलाब की डंडी मेरी ओर झुकी, जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसे झुकाया हो, फिर फूल सीधा हो गया। फिर फूल ने अपने को ऊँचा किया जैसे कोई अपने मुँह तक सूंघने के लिये ले गया हो, वह हवा में खड़ा रहा एक सुर्ख लाल बिंदु की तरह मुझसे तीन गज दूर । हताशा में मैं उसे लेने लपका। मुझे कुछ नहीं मिला वह गायब हो गया था । तब मैं अपने ही प्रति क्रोध से भर गया। मैं डंडी को देखने झुका और मुझे वह झाड़ी पर ताजा तोड़ा हुआ मिला और दो अपनी डंडियों पर थे। अब मुझे विश्वास हो गया था कि दिन और रात मेरे पास कोई अदृश्य आत्मा है जो दूध पानी पर रहती है । वह चीजों को छू सकती है उन्हें ले सकती है उनकी जगह बदल सकती है । वह प्रकृति से मालामाल है । यद्यपि वह हमारी इंद्रियों को नहीं दिखाई देती लेकिन वह है मेरी छत के नीचे रहती है।

7 अगस्त ,मैं शांति से सोया । उसने मेरे जग से पानी पी लिया पर मुझे परेशान नहीं किया। मैंने पागलों को देखा है और बुद्धिमानों को भी देखा है । शांत और जीवन के हर पहलू को अच्छी नजर से देखने वाले ,एकाएक उनके दिमाग पर पागलपन का दौरा पड़ता है और टुकड़ों में बंट जाता है और विशाल भयानक समुद्र की लहरों में जहाँ मेढक है शार्क हैं उनमें उतराने लगता है जिसे पागलपन कहते हैं।

मैं इंद्रजाल में भ्रमित हो रहा हूँ । यही घटना चक्र स्वप्न में भी मायाजाल फैला देता है जिससे हमें कोई आश्चर्य नही होता, क्योंकि हमारे सोचने की शक्ति और नियत्रित करने की ताकत सो जाती है जबकि हमारी कल्पना शक्ति जाग्रत हो जाती है । क्या यह संभव नहीं है कि हमारा सूक्ष्मतंत्र मूर्धन्य मस्तिष्क पर हावी हो गया हो जिसने मुझे लकवाग्रस्त कर दिया हो।

8 अगस्त ,आज बड़ी भयानक शाम थी।  वह मेरे आसपास है मुझे देख रहा है उसने अपने को छिपा रखा है अगर प्रकट होकर अपनी अलौकिक शक्ति दिखा देता वह अच्छा था। 

13 अगस्त ,जब हम पर कोई रोग आक्रमण करता है तब हमारे अंदर की सभी इंद्रिया टूट सी जाती हैं,ै हमारी ऊर्जा नष्ट हो जाती है । हमारी मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं ।

14 अगस्त, किसी ने मेरी आत्मा पर अधिकार कर लिया है और उस पर उसका नियन्त्रण है। कोई मुझसे सब करवा रहा है मैं कुर्सी में गड़ गया हूँ और कुर्सी ने जमीन इतनी कसकर पकड़ ली है कि कोई शक्ति उसे नहीं हिला सकती।

15 अगस्त, लगता है अंदर कोई प्रवेश कर गया है ,, दूसरी आत्मा जिसने नियत्रंण में ले लिया हो ,

6 अगस्त, किसी प्रकार मैं दो घंटे के लिये निकल लिया । एक कैंदी की तरह जिसे एकाएक अपनी कोठरी का दरवाजा खुला मिल गया हो। मैंने गाड़ीवान से घोड़े भगाने के लिये कहा,  और मैं रोन पहुंच गया।

मैंने गाड़ी पुस्तकालय के निकट रूकवाई और डॉ॰ हरमन हैरेस्टस का प्राचीन और आधुनिक निवासियों पर शोध प्रबन्ध मांगा।

17 अगस्त , मैंने एक बजे सुबह तक किताब पढ़ी हैंरेस्टस दर्शनशास्त्र का विशेषज्ञ उसने उन अलौकिक शक्तियों के ऊपर लिखा था जो मनुष्य के चारों ओर घूमती रहती हैं। उसने उनकी उत्पत्ति उनका रहने का स्थान शक्ति, आदि पर विस्तार से लिखा था ,लेकिन जो मुझे पर हावी थी उसके विषय में कुछ नहीं था।

मैं सो गया, ठंडी रात में करीब तीन प्रहर बीत गये ,मैंने अपनी आंख खोली एक अजीब सी उलझन भरी सनसनाहट। पहले कुछ नहीं दिखा फिर लगा मेज पर रखी किताब का पन्ना पलटा । कमरे में हवा जरा भी नहीं आई थी ,दूसरा पन्ना जैसे किसी ने पलटा हो । मेरी कुर्सी खाली थी लेकिन मैं जानता था उस पर वह बैठा पढ़ रहा है। क्रोध से जानवरों की तरह मैं उसे पकड़ने झपटा । उसे मारने के लिये लेकिन कुर्सी पलट गई , कुर्सी मेज हिल गई लैंप गिर गया और बंद हो गया  फिर खिड़की बंद हो गई जैसे कोई जाते जाते बंद कर गया हो।

19 अगस्त, मैं जानता हूँ मैंने रेव्यू डू मोन्डे साइन्टिफिक में पढ़ा है कि एक समाचार आया था पागलपन की महामारी का। यूरोप में मध्यकाल में सैन-पोलो मैं इसी प्रकार की बीमारी फैली थी । डरे हुए निवासी अपना घर छोड़ कर भागे थे । आह हम पर विपत्ति हैं वह आ गया है। मुझे अपना नाम चिल्ला कर बता रहा है , मैं सुन नहीं रहा हूँ । हाँ वह चिल्ला रहा है-मैं सुन रहा हूँ । वह दोहरा रहा है होरेला.. मैंने सुना होरला... वह आ गया है होरला।

ओह गिद्ध ने कबूतर खा लिया। भेड़िये ने मेमने को पकड़ लिया । शेर ने तीखे सींग वाले भैंसे को खा लिया। मनुष्य ने शेर को एक तीर से मार दिया, एक तलवार से बंदूक से । लेकिन होरला मनुष्य को वही बना देगा जो हमने बैल और घोड़े को बना दिया है पालित पशु ,अपना गुलाम, ,अपना भोजन केवल अपनी इच्छा शक्ति से।

हम हैं ब्रह्मांड में बहुत कम, हम और क्यों नहीं हैं? ? क्यों अन्य फूलों फलों वाले वृक्ष हैं । क्यों अग्नि हवा, पानी, मिट्टी के अलावा अन्य पदार्थ हैं। ये केवल चार तत्व हैं, केवल चार ही क्यों जो सब को पाल रहे हैं चालीस क्यों नहीं, चार सौ, चार हजार, सब कुछ कितना निरीह है, अनगढ़, जल्दीबाजी में बनाये गये। ओह हाथी और दरियाई घोड़े को देखो कितने भव्य और ऊँट कितने सौम्य लेकिन तितली एक उड़ता हुआ फूल मैं कल्पना करता हूँ इतनी बड़ी तितली दस संसारों के बराबर ,उसके पंखों की बनावट सुन्दरता रंग और पंखों का हिलना  में बता भी नहीं सकता, मैं एक सितारे से दूसरे सितारे तक उड़ते देखता हूँ रोशनी से नहाते, उड़ते हुए संगीतमय सांसंे लेते और मनुष्य हर्षित उसे देखकर अत्यन्त सुख प्राप्त करता है। 

होरला वह मुझे डरा रहा है वह मुझे इन बेकार बातों को सोचने को मजबूर कर रहा है। वह मेरे अंदर हैं वह मेरी आत्मा बन रहा है मुझे उसे मारना होगा।

29 अगस्त , मुझे उसे मारना है, मैंने उसे देखा है मेरे पीछे एक बहुत बड़ी कपड़ों की आलमारी थी जिसमें दर्पण था जिसके आगे प्रतिदिन में दाढ़ी बनाने के लिये और कपड़े पहनने के लिये खड़ा होता उसमेें सिर से पैर तक देखने की मेरी आदत हो गई थी। मैं उसे धोखा देने के लिये लिखने का बहाना कर रहा था। वह मुझे देख रहा था मैंने महसूस किया, निश्चय ही वह मेरे कंधे पर झुका पढ़ रहा था, मैं उठ खड़ा हुआ मेरे हाथ बढ़े और तेजी से घूमे चारों ओर दोपहर का सा उजाला था लेकिन मुझे दर्पण में अपना अक्स नहीं दिख रहा था । मैंने उस विशाल साफ आईने को ऊपर से नीचे देखा, वह फिर बच जायेगा क्योंकि उसके अदृश्य शरीर ने मेरा अक्स भी अपने अंदर समा लिया है। 

मैं डर गया, तब एकाएक मैं दिखाई देने लगा, धुंधला जैसे पानी मेरे ऊपर से बह रहा है जो हरपल साफ होता जा रहा है, 

30 अगस्त, मैं उसे कैसे मारूँ, जहर दे दॅूं लेकिन वह पानी में मिलाते देख लेगा और तब...और क्या हमारा जहर उस अगोचर जिस्म पर असर करेगा ं ? 

31 अगस्त ,मैंने रोन से एक लुहार लोहे का दरवाजा बनवाने के लिये भेजा, मुझे लोग डरपोक कहेंगे 10 सितम्बर, कल लोहार ने लोहे का शटर और दरवाजा लगा दिया, मैंने सब कुछ आधी रात तक खुला छोड़ दिया यद्यपि ठंड हो रही थी।

एकाएक मुझे लगा वह है , मैं धीरे से उठा और कुछ देर ऊपर नीचे करता रहा जिससे उसे कोई शक न हो और फिर तेजी से मैंने शटर बंद कर दिया, एकाएक मुझे लगा वह बेचैन मेरे चारो ओर घूम रहा है ,अब वह डरा हुआ मुझसे कह रहा है कि मुझे बाहर जाने दे मैंने पीठ दरवाजे की ओर करके इतना खोला कि मैं ही बाहर निकल सकूं मैं इतना लंबा हूँ कि चौखट तक मेरी लंबाई है। मैंने उसे अकेला बंद कर दिया । फिर मैं नीचे उतरा अपने ड्राइंगरूम में गया जो मेरे सोने के कमरे के नीचे था। मैंने दो लैम्प लिये उनका सारा तेल कालीन पर और सोफे पर फैला दिया सब जगह और उसमें आग लगा कर मैं बाहर निकला और ताला लगा दिया। मैं बाहर बगीचों में छिप गया, झाड़ियों के झुंड में । निचली खिड़की पर लपट दिखाई दी, एक लम्बी लाल लपट सफेद दीवार पर दिखाई दी और छत तक बढ़ चली मुझे लगा जैसे दिन निकल रहा है ,तभी दो अन्य खिड़कियों से लपटें निकलने लगीं।  मैने देखा मेरे घर का निचला हिस्सा लाल तपता भट्टी हो गया था लेकिन एक चीख डरावनी तीखी दिल-दहलाने वाली चीख । एक औरत के रोने की आवाज सन्नाटे में गूंज गई । दो दुछत्ती की खिड़कियां खुलीं  ओह मैं नौकरों को तो भूल ही गया मैंने उनकेेे डरे हुए चेहरे देखे ,े।

फिर डरा हुआ मैं गांव की ओर भागा, ‘बचाओ बचाओ! आग! आग! मै कुछ लोगों से मिला जो वहीं आ रहे थे मैं उनके साथ लौटा।

तब तक घर एक जलती चिता में बदल चुका था एक विशाल चिता, जिसमें आदमी जल रहे थे और वह भी जल रहा था। वह वह मेरा कैदी नया मालिक, होरला।

एकाएक सारी छत दीवारों के बीच गिर गई ओर एक आग का ज्वालामुखी आकाश की ओर उढ़ गया, आग की लहर झपटीँ वह उस भट्टी में था, मरा हुआ।मर गया ? शायद उसका शरीर, क्या उसका शरीर नहीं था, पारदर्शी, अनश्वर ऐसे जैसे हमारा नष्ट हो जाता है।

अगर वह नही मरा होगा, हो सकता है केवल समय उन अदृश्य और अव्यक्त लोगों को नष्ट करता हो क्यों ये पारदर्शी अचिन्हित शरीर एक जीवात्मा बन जाती है अगर वह भी बीमारी से दुर्बलताओ से अकाल मृत्यु से डरती है।

अकाल मृत्यु, मनुष्य का भय यहीं से प्रारम्भ होता है बाद में मनुष्य होरला ,उसके बाद वह रोज मरता है हर घंटे हर पल किसी भी दुर्घटना से, उसके बाद वह मनुष्य आता है जो अपनी मौत मरता है क्योंकि उसने अपने पूर्ण जीवन को जिया है।

नहीं, नहीं बिनाशक वह मरा नहीं है तब समझता हँू मुझे अपने को स्वयं को मार लेना चाहिये। 




Thursday, 1 May 2025

jangadna

 


जातीय जन गणना 

चुनाव आने के साथ ही नये नये मुद्दे ढूंढे जाते हैं उसके आधार पर चुनाव जीतने के प्रयास किये जाते हैं। जातीय जनगणना का मुद्दा भी केवल चुनाव प्रेरित है। जातीय आधार पर बने संगठनों को कोई प्रश्रय नहीे मिलना चाहिए। कुछ संगठन जातीय जन गणना के लिये कटिबद्ध हैं इसके लिए वर्तमान साकार को निष्क्रिय व जाति विरोधी बताकर वोट बैंक हासिल रिना चाहती है और वर्तमान सरकार भी जातिगत जन गणना के लिए तैयार हो गई है। परन्तु जाति जन गणना क्यों होनी चाहिए उनके पास कोई जवाब नहीं है,बस यही देश हित में है जाति हित में है ,पर क्यों और कैसे ?

पहले ही मंडल कमीशन ने देश को आरक्षण में बांधकर उसको अकर्मण्यता की ओर धकेल दिया ह ैअब जातीय जन गणना कराकर सब अपने को आरक्षित कोटे में लाकर सरकारी लाभ लेना चाहते हैं अर्थात् बैठ कर रोटी तोड़ोया करोड़ों लोगों की महनत पर टांग पसारकर सोओ । 

पहले लोग कहते थे बेवकूफ मकान बनवाते हैं होशियार उसमें रहते हैं ’ अपनी जमापूंजी लगााकर कोई मकान बनाये इस आशा से कि जीवन का आधार रहेगा । बुड़ापे को सहारा रहेगा लेकिन निष्क्रििय लोगों के हित में कानून बनाये गये किरायेदार मजे में  कुछ पैसे देकर रहता है और बाद में घर उसका  मजे में मकान मालिक बन गये ।मकान बनाने वाले घर से भी गये और पैसे से भी। इसी प्रकार के कानून आरक्षण के हैं । योग्य व्यक्ति जूते चटखाते हैं और अयोग्य व्यक्ति मजे से मेज पर टांग रखकर हााि पर हाथ् रखे बैठे रहते है। काम करना आता नहीं काम करने की जरूरत क्या फोकट मे पैसे पाये जाओ , काम करने के लिए तो एक्सपर्ट रखने चाहिये पर वाह रे आरक्षण । देश को आगे ले जाने के लिए तो ये बैठे नहीं है ।3 फरवरी 1961 को लोहिया जी ने लिखा था कि हर व्रूक्ति आधुनिक होना चाहमा है जाति प्रथा विनाश की तो बात करता है पर उसके पास नई योजना नहीं है ।

आरक्षण के कारण सत्ता में से या नौकरशाही में से ऊंची जातियों को  च्युत रखकर  आरखित कोटे से आसीन कराया जाना चाहिये यह जाति व्यवस्था का ध्वस्त होना नहीं यी देश के गर्त में जाने की व्यवस्था है । क्या 90 95 प्रतिशत वाले प्रतिभाशाली का स्थान 33 प्रतिशत वाला लेगा तो वह अपनी मानसिक योग्यता के अनुसार ही कार्य करेगा ।यह देश कहत के लिए न होकर देश की व्यवस्था को अपाहिज करने की प्रक्रिया है । यह विकास में सबसे बड़ी बाधा है। इस कारण हाड़ तोड़ कामों का अवमूल्यन हो रहा हे। कुर्सीं तोडत्र निकम्मे लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ रही है। यह भारत के जन जीवन की विषमता,अक्षमता और अयोग्यता का मूल कारण है इसलिए आरक्षण का जातीय आधार कैसे देश हित में होना सकता है ।आरक्षण का आधार जाति नहीं जरूरत है जिसे वास्तव में शिक्षा में व्यापार में आरक्षण की जरूरत है उसे सुविधाऐं उपलब्ध कराई जायें जातीयता के आधार पर नहीं । कौन देश के लिये काम कर रहा है कौन कर देकर देश को समृद्ध कर रहा है उसकी सहायता होनी चाहिये निठल्लों को बैठकर खिलाना देश को गर्त की ओर ले जाना है ।