ततैया और मधुमक्खी
ततैया और मधुमक्खी दोनों मित्र संग संग रहते थे लेकिन जहाॅं ततैया का स्वभाव खराब और कठोर था, मधुमक्खी बहुत मधुर स्वभाव की थी वह ततैया को अधिकतर टोकती कि इतने बुरे ढंग से सबसे व्यवहार मत किया करो । ततैया कहता,‘ तुम नही जानती मधुमक्खी बहन जमाना शक्तिशाली का है जो कुछ कहते नही उनकी कोई सुनता भी नही है।’
‘होगा, लेकिन जबर्दस्ती किसी का खाना पीना छीनना जरा भी अच्छा नही लगता।’ एक दिन दोनों एक गुलाब के पौधे पर बैठे थे। पौधा पराग से भरा था उन्हें प्यास लग रही थी। आस पास कहीं पानी नही था उन्होंने वही पराग पी लिया। पराग बेहद मीठा ठंड़ा था । उसे पीकर उनमें अदभुत् शक्ति जाग गई। अब तो उन्हांेने निश्चय कर लिया कि रोज पानी की जगह पराग ही पिया करेंगे। ततैया को जब भी प्यास लगती वह उड़ता किसी भी फूल पर जा बैठता और उसके डंक चुभो देता और पराग पी जाता मधुमक्खी टुकुर टुकुर देखती रहती । वो न माॅग पाती न डंक चुभा पाती। एक दिन वह चमेली के फूल से बोली ,‘बहन प्यास लगी है जरा सा पराग दोगी?’ तो चमेली बोली,‘ ऊपर से पी सकेा तो पी लो पर बहन डंक मत चुभाना तुम्हारा साथी ततैया तो आता है जब जबरस्ती लंबा सा डंक चुभा कर पराग चुरा ले जाता है’ मधुमक्खी दौड़ी दौड़ी गई और दो खोखली पतली नलियाॅ ले आई अपने मुॅह में लगा कर रस पीने लगी। उस दिन उसे इतना रस मिला कि उसका पेट एकदम भर गया उसने ततैया से कहा कि जब रात को फूल बंद हो जाते है तब रस नही मिलता दिन में एकत्रित करलें तो दोपहर में भी फूलों का रस सूख जाता है। सुबह और शाम को ही रस मिलता है क्यों न इकठ्ठा कर लिया करें ।’ उसने छोटे छोटे घड़े बनाने शुरू कर दिये और उनमें रस भर देती अपने संगी साथी भी उसी काम में लगा लिये क्यांेकि फूल कहते कि रस लेलो नहीं तो बेकार जायेगा ततैया ने भी कटोरे बनाना शुरू किया। लेकिन उसके डंक को देखते ही फूल डर जाते और उनका रस सूख जाता उसके कटोरे खाली ही रह गये जबकि मधुमक्खी के हजारों घडे़ भर जाते हंै।