Saturday, 5 December 2015

Apni bhasha

कितने शर्म की बात है कि हमारे पास  सब कुछ है पर राष्ट्र भाषा नहीं है जन्म से ही बच्चा बोलता है तो अपने जन्म स्थान की बोली बोलता  है उसी मैं अपने भावों को अच्छी तरह समझा पाता   है लेकिन हम इतने दिन गुलाम रहे तो कहने को आजाद हैं आत्मा गुलाम है दूसरों के तलुए चाटने की इतनी आदत हो गई है कि वही  अच्छा लगता है उसके मोह मैं फसे है हम अपने को देसी नहीं सिद्ध करना चाहते हैं। हम भावनाओं की क़द्र  नहीं करते। हम अपना रॉब डालना चाहते है। हिंदी शांत सौम्य भाषा है जब क्रोध आता  है तो  आदमी  अंग्रेजी झाड़कर अपने को सही  साबित करना चाहता है