हमारे यहाँ एक लहर सी चलती है। कभी दलित विमर्श कभी नारी विमर्श और इसी के साथ सब जुट जाते है उसके उठान के लिए नारी पर विमर्श के लिए अब रपे के मामले भी उतनी तेजी से बढ़ रहे हैं। बेटी बचाओ अभियान चल रहा है हर भाषण पत्र पत्रिकाओं मैं भ्रूण हत्या की बात चल रही है कोख मैं बेटी मारने को हत्यारा कहते हैं और पर बेटी को नोचने खसोटने को उसे जिल्लत मैं जीने को मजबूर करने को जरा जरा सी बच्चियों को रौंद डालने को लड़के हैं भूल हो जाती है कह कर नकारने को उस माँ से पूछें जिसने अरमानों से उसे पैदा किया की बेटी भी जीने का अधकार रखती है पर क्या कुछ लफंगों की हवस का शिकार बनना उसकी नियति है। रबर की गेंद भी दबने पर दर्द भरी चीख निकालती है जरा जरा सी बच्चियों के घिनोने हत्यारों को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है सौ सौ सवाल लड़कियों से किये जाते हैं और लड़के शान से मूँछों पर ताव देते हैं असली धिक्कार के पात्र हैं