Saturday, 5 December 2015

Apni bhasha

कितने शर्म की बात है कि हमारे पास  सब कुछ है पर राष्ट्र भाषा नहीं है जन्म से ही बच्चा बोलता है तो अपने जन्म स्थान की बोली बोलता  है उसी मैं अपने भावों को अच्छी तरह समझा पाता   है लेकिन हम इतने दिन गुलाम रहे तो कहने को आजाद हैं आत्मा गुलाम है दूसरों के तलुए चाटने की इतनी आदत हो गई है कि वही  अच्छा लगता है उसके मोह मैं फसे है हम अपने को देसी नहीं सिद्ध करना चाहते हैं। हम भावनाओं की क़द्र  नहीं करते। हम अपना रॉब डालना चाहते है। हिंदी शांत सौम्य भाषा है जब क्रोध आता  है तो  आदमी  अंग्रेजी झाड़कर अपने को सही  साबित करना चाहता है   

Sunday, 29 November 2015

kitney aastik hain hum

,Fksfud yqd vFkkZr~ Hkkjrh; laLd`fr dks n’kkZrh dyk A ;g dyk gj izdkj dh dykvksa esa fn[k jgh gS ]pkgs ?kj dh ltkoV gks] oL= gksa] twrs] pIiy ]fookg dk fueU=.ki= ;k fdlh iwtk ikB dk gks A dgha vkse~] dgha LokfLrd ]dgha cq)]dgha jke] dgha d`".kA lcdk iz;ksx vf/kd ls vf/kd gks jgk gS A dqrsZ ij vius b"V dks Niokrs gSa ]vkSj nwljs fnu lksVs ls ihV ihV dj /kqyokrs gSa A cq) dq’ku doj ij ekSu riL;k jr gSa  A ns[kus okyk eksfgr gS ]okg!A vkSj fQj dqN nsj ckn ihNs nkc dj cSB tkrk gSA isV [kjkc gS rks mUgsa lwa?k Hkh lqa?kk jgk gS A fcLrj ds pknj ij jk/kkd`".k jkl jpk jgs gSa vkSj fQj ml ij cPps dwnQkan epk jgs gksrs gSa A jaxksyh ltkbZ gS vkse~ ]LokfLRkd ]x.kifr lHkh  cuk;s vkSj fQj iSjksa ls [kqan xbZ] fQj >kM+w ls >M+ xbZ A dksbZ vkLFkk ugha dksbZ fo’okl ughaA cM+h cM+h ewfrZ;kWa cuokbZ vkSj tksj ’kksj ls LFkkiuk dj mlesa nso tkxzr djok;s ]mlds vkxs ?kaVs ?kfM+;ky ctk;s A ukps xk;s fQj ukprs xkrs  ikuh esa IkVd  vk;sA x.ks’k th vPNs izFke iwft;r gSa A flj iVd dj jks jgs gksaxs]^firkth ]ekrkth eq>s lcls vafre iwft;r dj nks A* x.kifr th lcesa fpidk fn;s tkrs gSa] pkgs fueU=.k i= gks pkgs fookg dh ihyh fpðh A x.ks’kth lcls Åij fojkteku gksaxs A fQj rkjh[k fudyrs gh dwM+snku esaA cM+h nqxZfr gS cspkjksa dh A lM+d ij iM+s lcds iSjksa ds uhps A Hkh[k ekaxus okys cPps Hkh gkFk esa ]r’rjh ij lkbZa ckck ]’kfu egkjkt guqeku th] nsohth  dh rLohj j[k dkjksa ]LdwVjksa ds ihNs pkSjkgksa ij Hkkxrs jgrs gSa] fQj >V ls tehu ij j[k iSls vaVh esa j[kus yxsaxs A Hkw[k yxh ;k fdlh us dqN [kkus dks fn;k rks QqVikFk ij j[k [kkus yxsaxs fQj >wBs gkFk ls gh Hkkx ysaaxs A dkSu mudh tkfr ns[kdj vkrk gS A mudh ifo=rk cuk;s j[kus okys /keZ ds Bsdsnkj ml le; dgkWa gksrs gSAa    

Friday, 27 November 2015

rice in puja

Why do we usually use rice for religious purpose ?
Rice is white in colour hence considered pure and chaste ,and it even emits a pleasing smell. the water in which the rice is cleaned has curative properties only after cleaning the rice thoroughly .Do we consume  it . rice supplies us with plenty of energy as it is a  nice source of carbohydrates. In married couple the intake of rice increases the sexual drive.

Tuesday, 17 November 2015

bhavnaon ka samman

अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता से तात्पर्य यह तो नहीं  कि  आप किसी की भावनाओं से खिलवाड़ करें। ध रम कोई भी हो उसका विरोध करना हो तो शालीनता से करना तो ठीक दयानंद सरस्वती  महान समाज सुधारक हुए थे  पर कभी  बेहूदे ढंग से विरोध नहीं किया 

samman lottana

अदना  सी  लेखिका हूँ , कुछ  सम्मान भी मिले हैं पर उन्हें लौटाना मैं समझ ही  नहीं पा रही हूँ।  देश मैं  लेखक 
भुखमरी  से मरे क्यों किसी की आत्मा  ने आवाज नहीं उठाई कि अपने  सम्मान मैं से एक प्रतिशत भी राशि  उनके लिए  देदे  तब क्या उनकी अंतरात्मा सो रही थी।  कलाकार  जब तक  कला को विस्तार देता रहता है तब तक उसे मान मिलता है। जहाँ इन्द्रिया  अशक्त हुई कोई नहीं पूछता है। तब जब बिना इलाज बिना दवा के एक तरह से सामाजिक हत्या होती है तब उनके हृदय  से कोई आवाज क्यों      

Monday, 26 October 2015

eq> ij n;k djks balku

eq> ij n;k djks balku

eafnj esa ?kaVs ctrs gSa
efLtn esa gks jgh vtku
pkjksa vksj iqdkjs gk gk
ns ns ns ns gs HkxokuA

dksbZZ dgrk y{eh ns nks
dksbZ dgrk vklu
dksbZ dgrk Nk;k ns nks
dksbZ d"V fuokjuA

vYykg Hkh esjs gh HkkbZ
ysfdu muesa gS prqjkbZ
dgka gS tUur dSlh tUur
nsrh ugha fn[kkbZ A

iSxEcj gSa ou esa vVds
bZlk :i esa Økl ij yVds
,sls esa cl n;k fn[kk,sa
dSlh tqxr fHkM+kbZA

ysfdu esjh eqf'dy dSlh
fn[krs gkFk vusdksa
vius lc gkFkksa ls nkrk
fQjik viuh Qsadks A

pank dks Hkh tk ?kj Hkstk
ftlls lc gks tk;s va/ksjk
czãk th us d`ik djh
vksj nsus cSBs igjk A

Mj tk;saxs 'ks"kukx ls
mldk iyax cuk;k
lkxj es tk fNidj ysVk
ij ekuq"k dks pSu u vk;k

tyk tyk dj fn;s vufxur
eq>dks ?ksj fy;k Fkk
lksus] dh esjh bPNk dks
mlus <sj fd;k Fkk


mB tkvks cl cgqr lks fy;s
ns nks ge dks nku
nks nks ns nks dh vkoktsa
QksM+ jgh Fkh dkuA

ysfdu blls T;knk eqf'dy
y{eh dks ysdj gS vkbZ
ns nks ns nks y{eh ns nks
djrs ns ;gh nqgkbZA

viuh iRuh dSls ns nw¡
dSlk rw uknku]
vius ?kj dks lwuk dj yw¡
lksp tjk balku A

n'kZu ls ;fn gks tk;s
rks ?kj ?kj y{eh tk;s
lkS lks rkys yxk yxk dj
djrs vUrZ/;ku A





jpuk }kjk
MkŒ 'kf'k xks;y
lIr_f"k vikVZesaV
th 9 CykWd 3 lSDVj 16 ch
vkokl fodkl ;kstuk] Hkkjrh; efgyk cSad ds ikl

vkxjk 281010 eks 9319943446


मेरे घर की ऊँची दीवारों के बीच
 खिड़की से झांकता है जीवन
आ जाता है पंख फड़फड़ता पखेरू
 कोई  तितली आ बैठती है शीशे पर
 दिख जाता है बालक
मुस्कराने लगती है जिदगी
धूप का टुकड़ा आता  है अंदर
हवा दस्तक देती है खिडकी  पर
 तब कुछ पल को लहराता है जीवन
पेड़ की डाल पर गाता है पंछी
झूम उठती है डाली,
संग संग आता है जीवन। 

Tuesday, 6 October 2015

fisal gai to kya

किसी ने सच ही कहा हैः
जिव्हा ऐसी बाबरी, कर दे सरग पाताल,
आपन कह भीतर गई, जूती खात कपाल।
सच ही है जरा सी चीज है पर चिकनी ऐसी कि झट फिसल जाती है। कितना ही पकड़ो, पकड़ ही नहीं आती है। दिमाग में जो चल रहा होता है पट से आ जाता है। लाख चेहरे पर, जुबान पर पहरे लगाओं लाख गा गा कर मर जाओ, पर्दे में रहने दो, पर पर्दा है कि उठ ही जाता है। यह तो वैज्ञानिक सच है कि किसी की भी जीभ एक सी नहीं होती जैसे हाथ के निशान अलग अलग होते हैं जीभ भी अलग अलग होती है तब ही तो जुमले भी है कि अलग अलग निकलते रहते हैं।
संजय निरुपम की जीभ फिसल कर बोली स्मृति ईरानी को ‘ठुमके लगाने वाली’ ‘बड़ा दुःख है। स्मृति ईरानी के कई सीरियल देखे, पर  ठुमके लगाते नहीं देखा, पता नहीं लोग कहां कहां ठुमकेवालियों को देख आते हैं कैसे इतने अनुभव कर लेते है भाई लोग। छत्तीसगढ़ के भाजपा के वरिष्ठ सांसद सचेतक रमेश बैस आदिवासी आश्रम में दर्जन भर नाबालिग बच्चियों के साथ अनाचार की घटना पर 9 जनवरी को बोले, बराबरी या बड़ी उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार तो समझा जा सकता है 

Friday, 25 September 2015

laugh

He I am a photographer .I have been looking a face like you.
She : I am a plastic surgeon.I ' he been looking for a Face like you. 



He : Will you go out with me this saturday.
She : Sorry ! I'm having a headache this weekend.



He : Go on, do not be shy ask out 
She : okay, get out.


He :Darling, I want to  dance like this for ever.
She :Why do not you ever want to improve


He I would go to the ends of  the earth for you .
She: But would you  stay there.

Thursday, 17 September 2015

nari sashaktikaran

 नारी सशक्तीकरण

नारी सशक्तीकरण के रूप में महिलाओं ने ऐसा वातावरण तैयार किया है जो स्वयं उन्हें कंदराओं में धकेल रहा है । वह खुली हवा में सांस लेने के लिये उड़ी लेकिन उड़ान में वह आंधी से बंजर जमीन की ओर गिर रही है । एक ऐसे तर्क के साथ कि वह कुछ भी करने के लिये स्वतंत्र है ,लेकिन स्वयं के लिये तोड़ी दीर्घा में यदि वह देखे तो स्वयं उसके अपनी कोई परिभाषा नही हैं। उसने अपने चारों ओर अनेकों वलय खड़े कर लिये है और उन्हें वह एक एक कर न तोड़ कर एकदम से आक्रामक ढंग से तोड़ने को आतुर है जिसमें अच्छे बुरे को सुख दुःख को एक किनारे कर बस बाहर आना है वह अपने आपको स्त्री नहीं कहना चाहती है।
   लेकिन क्या वह अपने को पुरुष समकक्ष कह कर हर उस बात से इंकार कर सकती है जिसमें प्रतिब.ध्द
हैं। क्यों महिलाएं अपने आपके लिय आरक्षण मांग रही है ? क्या महिला होने के नाम पर ? क्यों नहीं पुरुषों के साथ खड़ी होकर उसी पंिक्त में आगे बढ़ना चाहती ? क्यों अपने लिये एक नई पंक्ति चाहती है जहां उन्हें प्राथमिकता मिले क्योंकि वे स्त्री हैं 

Tuesday, 28 July 2015

balatkar

बलात्कार जीवन भर की यंत्रणा है अगर इस यंत्रणा को देने वाले  को बचाने  के लिए  माँ  बाप थैली भर रूपया  लेकर पहुंचे  और न्याय करने वाले उस थैली को

Abdul Kalam Azad ko salam

    

Thursday, 16 July 2015

sabse Accha Kya

सबसे अच्छी  कहानी वह है
जो मेरी माँ मुझे सुनातीं  है '
सबसे मधुर गीत वह है
माँ जब लोरी   गाती है
सबसे प्यारी नींद  मुलायम  गद्दे पर नहीं
माँ की गोद  मैं आती है
सबसे  अच्छा खाना पांच  सितारा
होटल का  शैफ  नहीं  मेरी माँ है
 सबसे  मीठी  आवाज  वह है
जब माँ लाडो  कह कर बुलाती  है
जब भी कोई दुःख आता है
मुझे बस  माँ की याद आती  है 

Friday, 9 January 2015

balatkaar ek vimarsh

हमारे यहाँ एक लहर सी चलती है। कभी दलित विमर्श कभी नारी विमर्श  और इसी के साथ सब जुट जाते है उसके उठान के लिए  नारी पर विमर्श के लिए अब रपे के मामले भी उतनी तेजी से बढ़ रहे हैं। बेटी बचाओ अभियान चल रहा है हर भाषण  पत्र पत्रिकाओं मैं भ्रूण हत्या की बात चल रही है कोख मैं बेटी मारने को हत्यारा    कहते हैं और पर  बेटी को नोचने खसोटने को उसे जिल्लत मैं जीने को मजबूर करने को जरा जरा सी बच्चियों को रौंद  डालने को लड़के हैं भूल हो जाती है कह कर नकारने को उस माँ से पूछें जिसने अरमानों  से उसे पैदा किया की बेटी भी जीने का अधकार रखती है पर क्या  कुछ लफंगों की हवस का शिकार बनना उसकी नियति है। रबर की गेंद भी दबने पर दर्द भरी चीख निकालती है  जरा जरा सी बच्चियों के  घिनोने हत्यारों को  ऐसे ही  छोड़ दिया जाता है सौ  सौ सवाल लड़कियों से किये जाते हैं  और लड़के शान से मूँछों  पर ताव  देते हैं असली धिक्कार के पात्र हैं           

beti ke liye

भोर  जब भी  मुस्कराती है
ख्यालों मैं तू मुस्कराती है
दुपहरिया का फूल जब भी  खिलता है
तेरी बाँहों का एहसास  मिलता है
शबनमसे रात जब नाम होती है
रेशमी गुल सी  मखमली छुअन होती है
रात मैं आकाश मैं तारे टिमटिमाते हैं
तेरी चाँद मागने की जिद याद आती है