कितने शर्म की बात है कि हमारे पास सब कुछ है पर राष्ट्र भाषा नहीं है जन्म से ही बच्चा बोलता है तो अपने जन्म स्थान की बोली बोलता है उसी मैं अपने भावों को अच्छी तरह समझा पाता है लेकिन हम इतने दिन गुलाम रहे तो कहने को आजाद हैं आत्मा गुलाम है दूसरों के तलुए चाटने की इतनी आदत हो गई है कि वही अच्छा लगता है उसके मोह मैं फसे है हम अपने को देसी नहीं सिद्ध करना चाहते हैं। हम भावनाओं की क़द्र नहीं करते। हम अपना रॉब डालना चाहते है। हिंदी शांत सौम्य भाषा है जब क्रोध आता है तो आदमी अंग्रेजी झाड़कर अपने को सही साबित करना चाहता है
Saturday, 5 December 2015
Sunday, 29 November 2015
kitney aastik hain hum
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Friday, 27 November 2015
rice in puja
Why do we usually use rice for religious purpose ?
Rice is white in colour hence considered pure and chaste ,and it even emits a pleasing smell. the water in which the rice is cleaned has curative properties only after cleaning the rice thoroughly .Do we consume it . rice supplies us with plenty of energy as it is a nice source of carbohydrates. In married couple the intake of rice increases the sexual drive.
Rice is white in colour hence considered pure and chaste ,and it even emits a pleasing smell. the water in which the rice is cleaned has curative properties only after cleaning the rice thoroughly .Do we consume it . rice supplies us with plenty of energy as it is a nice source of carbohydrates. In married couple the intake of rice increases the sexual drive.
Tuesday, 17 November 2015
bhavnaon ka samman
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से तात्पर्य यह तो नहीं कि आप किसी की भावनाओं से खिलवाड़ करें। ध रम कोई भी हो उसका विरोध करना हो तो शालीनता से करना तो ठीक दयानंद सरस्वती महान समाज सुधारक हुए थे पर कभी बेहूदे ढंग से विरोध नहीं किया
samman lottana
अदना सी लेखिका हूँ , कुछ सम्मान भी मिले हैं पर उन्हें लौटाना मैं समझ ही नहीं पा रही हूँ। देश मैं लेखक
भुखमरी से मरे क्यों किसी की आत्मा ने आवाज नहीं उठाई कि अपने सम्मान मैं से एक प्रतिशत भी राशि उनके लिए देदे तब क्या उनकी अंतरात्मा सो रही थी। कलाकार जब तक कला को विस्तार देता रहता है तब तक उसे मान मिलता है। जहाँ इन्द्रिया अशक्त हुई कोई नहीं पूछता है। तब जब बिना इलाज बिना दवा के एक तरह से सामाजिक हत्या होती है तब उनके हृदय से कोई आवाज क्यों
Monday, 26 October 2015
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मेरे घर की ऊँची दीवारों के बीच
खिड़की से झांकता है जीवन
आ जाता है पंख फड़फड़ता पखेरू
कोई तितली आ बैठती है शीशे पर
दिख जाता है बालक
मुस्कराने लगती है जिदगी
धूप का टुकड़ा आता है अंदर
हवा दस्तक देती है खिडकी पर
तब कुछ पल को लहराता है जीवन
पेड़ की डाल पर गाता है पंछी
झूम उठती है डाली,
संग संग आता है जीवन।
Tuesday, 6 October 2015
fisal gai to kya
किसी ने सच ही कहा हैः
जिव्हा ऐसी बाबरी, कर दे सरग पाताल,
आपन कह भीतर गई, जूती खात कपाल।
सच ही है जरा सी चीज है पर चिकनी ऐसी कि झट फिसल जाती है। कितना ही पकड़ो, पकड़ ही नहीं आती है। दिमाग में जो चल रहा होता है पट से आ जाता है। लाख चेहरे पर, जुबान पर पहरे लगाओं लाख गा गा कर मर जाओ, पर्दे में रहने दो, पर पर्दा है कि उठ ही जाता है। यह तो वैज्ञानिक सच है कि किसी की भी जीभ एक सी नहीं होती जैसे हाथ के निशान अलग अलग होते हैं जीभ भी अलग अलग होती है तब ही तो जुमले भी है कि अलग अलग निकलते रहते हैं।
संजय निरुपम की जीभ फिसल कर बोली स्मृति ईरानी को ‘ठुमके लगाने वाली’ ‘बड़ा दुःख है। स्मृति ईरानी के कई सीरियल देखे, पर ठुमके लगाते नहीं देखा, पता नहीं लोग कहां कहां ठुमकेवालियों को देख आते हैं कैसे इतने अनुभव कर लेते है भाई लोग। छत्तीसगढ़ के भाजपा के वरिष्ठ सांसद सचेतक रमेश बैस आदिवासी आश्रम में दर्जन भर नाबालिग बच्चियों के साथ अनाचार की घटना पर 9 जनवरी को बोले, बराबरी या बड़ी उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार तो समझा जा सकता है
जिव्हा ऐसी बाबरी, कर दे सरग पाताल,
आपन कह भीतर गई, जूती खात कपाल।
सच ही है जरा सी चीज है पर चिकनी ऐसी कि झट फिसल जाती है। कितना ही पकड़ो, पकड़ ही नहीं आती है। दिमाग में जो चल रहा होता है पट से आ जाता है। लाख चेहरे पर, जुबान पर पहरे लगाओं लाख गा गा कर मर जाओ, पर्दे में रहने दो, पर पर्दा है कि उठ ही जाता है। यह तो वैज्ञानिक सच है कि किसी की भी जीभ एक सी नहीं होती जैसे हाथ के निशान अलग अलग होते हैं जीभ भी अलग अलग होती है तब ही तो जुमले भी है कि अलग अलग निकलते रहते हैं।
संजय निरुपम की जीभ फिसल कर बोली स्मृति ईरानी को ‘ठुमके लगाने वाली’ ‘बड़ा दुःख है। स्मृति ईरानी के कई सीरियल देखे, पर ठुमके लगाते नहीं देखा, पता नहीं लोग कहां कहां ठुमकेवालियों को देख आते हैं कैसे इतने अनुभव कर लेते है भाई लोग। छत्तीसगढ़ के भाजपा के वरिष्ठ सांसद सचेतक रमेश बैस आदिवासी आश्रम में दर्जन भर नाबालिग बच्चियों के साथ अनाचार की घटना पर 9 जनवरी को बोले, बराबरी या बड़ी उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार तो समझा जा सकता है
Friday, 25 September 2015
laugh
He I am a photographer .I have been looking a face like you.
She : I am a plastic surgeon.I ' he been looking for a Face like you.
He : Will you go out with me this saturday.
She : Sorry ! I'm having a headache this weekend.
He : Go on, do not be shy ask out
She : okay, get out.
He :Darling, I want to dance like this for ever.
She :Why do not you ever want to improve
He I would go to the ends of the earth for you .
She: But would you stay there.
Thursday, 17 September 2015
nari sashaktikaran
नारी सशक्तीकरण
नारी सशक्तीकरण के रूप में महिलाओं ने ऐसा वातावरण तैयार किया है जो स्वयं उन्हें कंदराओं में धकेल रहा है । वह खुली हवा में सांस लेने के लिये उड़ी लेकिन उड़ान में वह आंधी से बंजर जमीन की ओर गिर रही है । एक ऐसे तर्क के साथ कि वह कुछ भी करने के लिये स्वतंत्र है ,लेकिन स्वयं के लिये तोड़ी दीर्घा में यदि वह देखे तो स्वयं उसके अपनी कोई परिभाषा नही हैं। उसने अपने चारों ओर अनेकों वलय खड़े कर लिये है और उन्हें वह एक एक कर न तोड़ कर एकदम से आक्रामक ढंग से तोड़ने को आतुर है जिसमें अच्छे बुरे को सुख दुःख को एक किनारे कर बस बाहर आना है वह अपने आपको स्त्री नहीं कहना चाहती है।
लेकिन क्या वह अपने को पुरुष समकक्ष कह कर हर उस बात से इंकार कर सकती है जिसमें प्रतिब.ध्द
हैं। क्यों महिलाएं अपने आपके लिय आरक्षण मांग रही है ? क्या महिला होने के नाम पर ? क्यों नहीं पुरुषों के साथ खड़ी होकर उसी पंिक्त में आगे बढ़ना चाहती ? क्यों अपने लिये एक नई पंक्ति चाहती है जहां उन्हें प्राथमिकता मिले क्योंकि वे स्त्री हैं
नारी सशक्तीकरण के रूप में महिलाओं ने ऐसा वातावरण तैयार किया है जो स्वयं उन्हें कंदराओं में धकेल रहा है । वह खुली हवा में सांस लेने के लिये उड़ी लेकिन उड़ान में वह आंधी से बंजर जमीन की ओर गिर रही है । एक ऐसे तर्क के साथ कि वह कुछ भी करने के लिये स्वतंत्र है ,लेकिन स्वयं के लिये तोड़ी दीर्घा में यदि वह देखे तो स्वयं उसके अपनी कोई परिभाषा नही हैं। उसने अपने चारों ओर अनेकों वलय खड़े कर लिये है और उन्हें वह एक एक कर न तोड़ कर एकदम से आक्रामक ढंग से तोड़ने को आतुर है जिसमें अच्छे बुरे को सुख दुःख को एक किनारे कर बस बाहर आना है वह अपने आपको स्त्री नहीं कहना चाहती है।
लेकिन क्या वह अपने को पुरुष समकक्ष कह कर हर उस बात से इंकार कर सकती है जिसमें प्रतिब.ध्द
हैं। क्यों महिलाएं अपने आपके लिय आरक्षण मांग रही है ? क्या महिला होने के नाम पर ? क्यों नहीं पुरुषों के साथ खड़ी होकर उसी पंिक्त में आगे बढ़ना चाहती ? क्यों अपने लिये एक नई पंक्ति चाहती है जहां उन्हें प्राथमिकता मिले क्योंकि वे स्त्री हैं
Tuesday, 28 July 2015
balatkar
बलात्कार जीवन भर की यंत्रणा है अगर इस यंत्रणा को देने वाले को बचाने के लिए माँ बाप थैली भर रूपया लेकर पहुंचे और न्याय करने वाले उस थैली को
Thursday, 16 July 2015
sabse Accha Kya
सबसे अच्छी कहानी वह है
जो मेरी माँ मुझे सुनातीं है '
सबसे मधुर गीत वह है
माँ जब लोरी गाती है
सबसे प्यारी नींद मुलायम गद्दे पर नहीं
माँ की गोद मैं आती है
सबसे अच्छा खाना पांच सितारा
होटल का शैफ नहीं मेरी माँ है
सबसे मीठी आवाज वह है
जब माँ लाडो कह कर बुलाती है
जब भी कोई दुःख आता है
मुझे बस माँ की याद आती है
जो मेरी माँ मुझे सुनातीं है '
सबसे मधुर गीत वह है
माँ जब लोरी गाती है
सबसे प्यारी नींद मुलायम गद्दे पर नहीं
माँ की गोद मैं आती है
सबसे अच्छा खाना पांच सितारा
होटल का शैफ नहीं मेरी माँ है
सबसे मीठी आवाज वह है
जब माँ लाडो कह कर बुलाती है
जब भी कोई दुःख आता है
मुझे बस माँ की याद आती है
Friday, 9 January 2015
balatkaar ek vimarsh
हमारे यहाँ एक लहर सी चलती है। कभी दलित विमर्श कभी नारी विमर्श और इसी के साथ सब जुट जाते है उसके उठान के लिए नारी पर विमर्श के लिए अब रपे के मामले भी उतनी तेजी से बढ़ रहे हैं। बेटी बचाओ अभियान चल रहा है हर भाषण पत्र पत्रिकाओं मैं भ्रूण हत्या की बात चल रही है कोख मैं बेटी मारने को हत्यारा कहते हैं और पर बेटी को नोचने खसोटने को उसे जिल्लत मैं जीने को मजबूर करने को जरा जरा सी बच्चियों को रौंद डालने को लड़के हैं भूल हो जाती है कह कर नकारने को उस माँ से पूछें जिसने अरमानों से उसे पैदा किया की बेटी भी जीने का अधकार रखती है पर क्या कुछ लफंगों की हवस का शिकार बनना उसकी नियति है। रबर की गेंद भी दबने पर दर्द भरी चीख निकालती है जरा जरा सी बच्चियों के घिनोने हत्यारों को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है सौ सौ सवाल लड़कियों से किये जाते हैं और लड़के शान से मूँछों पर ताव देते हैं असली धिक्कार के पात्र हैं
beti ke liye
भोर जब भी मुस्कराती है
ख्यालों मैं तू मुस्कराती है
दुपहरिया का फूल जब भी खिलता है
तेरी बाँहों का एहसास मिलता है
शबनमसे रात जब नाम होती है
रेशमी गुल सी मखमली छुअन होती है
रात मैं आकाश मैं तारे टिमटिमाते हैं
तेरी चाँद मागने की जिद याद आती है
ख्यालों मैं तू मुस्कराती है
दुपहरिया का फूल जब भी खिलता है
तेरी बाँहों का एहसास मिलता है
शबनमसे रात जब नाम होती है
रेशमी गुल सी मखमली छुअन होती है
रात मैं आकाश मैं तारे टिमटिमाते हैं
तेरी चाँद मागने की जिद याद आती है
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