भारत मैं हर चीज की लहर आती है जैसे सागर मैं लहर तट की और दौड़ती है फिर दूसरी लहर तट की ओर आती हैएक के बाद एक लहर आती जाती है। मनोरंजन से प्रारम्भ करें तो सिनेमा मैं आजकल एक से एक भद्दी गालियां बकी जा रहीं है बताया जाता है दूसरी भाषा मैं मतलब शुद्ध है वह भी लड़कियों के मुँह से तो टी आर पी बहुत बढ़ेगी लड़कियां कोई लड़कों से कम हैं वो तो अब हर मामले मैं उनसे आगे हैं जीतनी ज्यादा गलि उठनी ज्यदा सीटी अब थर्ड क्लास मैं सीटी न बजे तब तक सिनेमा क्या और चलेगा भी कैसे फ़िल्म नगरी बंद करानी है क्या उपदेश सुनने तो जा नहीं रहे उनकी शुरुआत करने वालों को हम सम्मान देते हैंउन्हें बड़े सम्मानों से लाद देते हैं लहर गाने की आती है चमेली बाई चली तो एक से एक फूहड़ बाईयाँ आगई मुन्नीबाई और भी जितनी बाइयां सब मटकने लगीं औऱबारातों कि दहन बाण गईं एक धाय धू का गाना आया तो कान फट गए सभी पटाके फोड़ रहे हैं। साहित्य कभी दलित आएंगे तो कभी स्त्री तो उसमे भी जो जितना गन्दा लिख सकता है लिख़ कर नाम कमा रह हैं बहूत बेबाक लिखा है अच्छा है कविताये आजकल बेटियों पर है कल तक माँ ही माँ थी अब भ्रूण हत्या है तो कल बहू आजायेगी क्योंकि बेटी ही बहू बनती है पर बहू बनते ही मूँह बिगाड़ खलनायिका बन जाती है आजकल तो बहू हर सीरियल मैं रो रही है और बेटिया माँ के साथ मिल कुचक्र रच रही हैं आंसुओं की धार बांध जाएगी पर क्या मजाल रूमाल की जरूरत पड जाये भगवान जी की लहर चल जाती है कभी हनुमान जी कभी देवी जी कभी शनि महाराज और आजकल साँईंबाबा की अब पीछै पड़े हैँ साई के क़ि क्योँ इतनें पूजे जा रहे हैं।लहर तो आनी जांनी है कब आजाय कब लौट जाएं भगवान करे आपकी ओ बाप रे अब आपकी कहने से गलत समझेंगे तुम सबकी ऐसे ही लहर चले और निकल पड़े
Monday, 21 April 2014
Monday, 14 April 2014
hamen gidgidana ata hai
आम जनता का काम केवल और केवल गिड़गिड़ाना है हे देवो के देव हमारे परम पिता हमारे नेता आप तो पांच साल मैं एक बार गिड़गिड़ाते हैं बाकी समय तो जनता ही गिड़गिड़ाती है हम तो रोज गिड़गिड़ाते हैं न लकड़ी है न कोयला न कंडे न बिजली अधिकतर जमीन के मालिक आप नेता बनते ही हो जाते हैं या आपके गुर्गे अर्थात बड़े ग्रुप जिन्होंने पैसा लगाया ही इसी शर्त पर होता है उनके बड़े बड़े मॉल कारखाने इंडस्ट्री खड़ी हो जाती हैं हमारे पास तो आपके घरों के आसपास फुटपाथ पर खड़ी की छोटी सी छबरिया है किसी न किसी पेड़ के नीचे या बस्ती मैं एक कमरे मैं घुसे दस जान . पेड़ को तो आपके कारिंदे काट ले जाते हैं आपके अफसर उसकी टहनियां काट कर पेड़ के नाम पर आपकी किसी घोषित बंजर जमीन पर गढ़वा देते हैं जो तीस्ररे दिन सूख जाता है पर आपका बृक्षारोपण समारोह हो जाता है
Tuesday, 8 April 2014
pyar
चार लकीरें चिंता की
जब गहरी होती जातीं हैं
इच्छा कि बनती तस्वीरें
धुंधली पड़ती जाती हैं
मुस्कानों के बीज जरा से
बोकर तो देखो
होंठों पर मुस्कान किसी के
दे कर तो देखो .
हर मिलने वाले कि चिंता
कुछ कुछ कम हो जाये
दुःख कि आग रही तो जग की
धरती जलती जाए
प्रीत प्रेम की बारिश बस
बरसा कर तो देखो
जब गहरी होती जातीं हैं
इच्छा कि बनती तस्वीरें
धुंधली पड़ती जाती हैं
मुस्कानों के बीज जरा से
बोकर तो देखो
होंठों पर मुस्कान किसी के
दे कर तो देखो .
हर मिलने वाले कि चिंता
कुछ कुछ कम हो जाये
दुःख कि आग रही तो जग की
धरती जलती जाए
प्रीत प्रेम की बारिश बस
बरसा कर तो देखो
kaliyan kam hai
सूर्य धुंधला धुंधला सा है
चाँद कि रौशनी नम है
तारों का नूर भी कहीं ज्यादा
और कहीं कम है।
टूट कर रोया था चाँद रात को
फूलों पर आंसू कि बूँद शबनम है।
लड़े थे कांटे भी खरोंचा था बहुत
तब भी गुलाब पर कलियाँ कम हैं।
धोकर डाले थे वस्त्र अपने तन के
अमावस के अँधेरे मैं कुछ तो दम है
चाँद कि रौशनी नम है
तारों का नूर भी कहीं ज्यादा
और कहीं कम है।
टूट कर रोया था चाँद रात को
फूलों पर आंसू कि बूँद शबनम है।
लड़े थे कांटे भी खरोंचा था बहुत
तब भी गुलाब पर कलियाँ कम हैं।
धोकर डाले थे वस्त्र अपने तन के
अमावस के अँधेरे मैं कुछ तो दम है
Monday, 7 April 2014
mahila Divas
महिला दिवस आया और बीत गया सयुक्त राष्ट्र संघ ने नारा दिया "महिला की बराबरी सबकी तरक्की "लेकिन महिला कि तरक्की कितनी। धीरे धीरे महिलाओं मैं बदलाव आ रहा है वह बदल रही है पर किस लिए क्या अपने अधिकारों के लिए या जागरूकता के लिए ,क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ महिलाओं के लिए हर वर्ष कोई भी एक नारा दे देता है। लेकिन क्या नारा है यह तक एक से एक बोलने वाले वक्ता महिला के लिए काम करने वाले नहीं जानते हैं तव कैसे महिला सशक्तिकरण के लिए प्रचार प्रसार कर सकते हैं। वेसे देखा जाये तो बर्बरी किस बात की अगर महिला सशक्त है तो वह पुरुष से कहीं ज्यादा काम करती है तब बराबरी से अधिक मान मिलना चाहिए ,महिला दो घरों की नींव है वह पिता के घर कि नींव है तो पति के घर की भी नींव है क्यों महिला के विवाह के साथ दहेज़ समस्या जुडी हुई है ,वह दूसरे घर जाती है उसका घर संभालती है उस घर कोजीवन देती है घर को वंशबेल देकर गुलजार करती है तब फिर क्यों दहेज़ साथ लाये जब वह एक महिला को खाना नहीं खिला सकता उसे घर का दर्ज नहीं दे सकता इतना निकम्मा है तो विवाह का अधिकार नहीं है क्या यह क्रय विक्रय का खेल है अगर औरत को दासी मान रहे हो तो दास पैसे देखाएर खरीदा जाता है दहेज़ देकर स्त्री पुरुष को उसके घर को खरीदती है और उसे कोई अधकार नहीं कि वह अपने माँ बाप के पास रहे वह खरीदा गया है उसे ससुराल मैं रह कर काम करना चाहिए। दहेज़ लेकर विवाह करनेवाला निकृष्टतम व्यक्ति है पति पत्नी रथ के दो पहिये हैं फिर दहेज़ लेने देने का कोई काम ही नहीं।
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