Tuesday, 25 March 2014

chunabi nata

जब तक वोटर वोट न देदे तब तक उससे नाता है
तू ही भइया  तू ही चाचा  तू तो मेरी माता  है '
उसके  साथ सड़क पर चलना  तब तक ही बस भाता है ,
फिर तो उसका रास्ता केवल संसद तक ही जाता है।
गले लगाए बड़े प्रेम से घर जाकर फिर नहाता है।
धुले हुए कुर्ते को भी फिर बार बार धुलवाता है।
इसके बाद गांव  का रिश्ता  तस्वीरों मैं पाता है
बिना काम  के करे कमाई स्विस बैंक मैं खाता है.

Thursday, 13 March 2014

purush soch

सत्ता की उंचाइयों  पर बैठे  समाज का मान सम्मान प्राप्त व्यक्ति  जब निम्न  श्रेणी  की हरकत करता है  और पकड़ा जाता है छेड़छाड़  या बलात्कार के जुर्म  तब सबसे ज्यादा  शर्म जिसको आती है वह है उसकी पत्नी  . हरकत उसका पति करता है समाज की  आँखों का ब्यंग झेलना उसकी पत्नी को पड़ता है कि वह अपने पति को सम्भाल  नहीं पाई  उंगलिया उसकी ओर  ही उठती हैं कि इसी का आदमी है जो इतनी ओछी हरकत करता पकड़ा  गया।  हर तरह से परेशानी औरत को ही झेलनी पड़ती है। वह घर भी नहीं छोड़  सकती  और घर मैं रहना जैसे काँटों पर बिंधते  रहना है  अपने अंतर्मन की व्यथा किसी से बाँट भी नहीं सकती  बल्कि क्लिंटन हिलेरी की तरह हाथ मैं हाथ दाल कर और खड़े होना पड़ता है दर्द बनता जा सकता है शर्म नहीं  बड़ी उम्र मैं तो जैसे पूरे जीवन कि तपस्या भंग हो जाती है  क्या पुरुष मैं सोचने समझने की  शक्ति है ही नहीं  जिस समय कुर्सी के मद मैं मस्त  अपनी उँगलियों को हिलता है तब सोचता है सब उसके इशारे पाए नाचेगे  क्योकि उसके पास सत्ता है वह ऊपर चढ़ने की सीढ़ी  है  तो लालच देने भर कि जरूरत है  वह यह नहीं सोचता कि इससे उसका घर  हिल जायेगा  उसके दिल मैं न घर का न समाज का खौफ होता है वह सोचता है ओरत को अपनी इज्जत का ख्याल रहता है वह किसी से नहीं कहेगी उसकी हरकत को सहन करेगी  क्योकि सहन करना औरत का धर्म है घर की स्त्री तो उसकी जागीर है वह जैसे चाहेगा  उपयोग करेगा उसके लिए औरत वस्तु है औरत धरती की तरह सहनशील है उस पर फावड़ा चलाओ  या कुल्हाड़ी  उस पर महल बनाओ या शराबखाने  सब उस को सहना  है पर यह नहीं सोच पता  वह दुर्गा भी है काली भी जिसके हाथ मैं भाला है