एक अदृश्य सत्ता के सामने हम नत मस्तक है हर धर्म मानता है कि कोई शक्ति है जो कण कण मैं व्याप्त है हिन्दू धर्म मैं हम उस सत्ता को भगवान कहते हैं क्या भगवान है प्रश्न उठता है हमारा अस्तित्व भगवन से है या भगवान् का आस्तित्व है भगवान है यह हमने कहा है भगवान् ने तो कभी आकर नहीं कहा कि वह है इसलिए भगवान् के निर्माता हम हैं और इसीलिए हम रोज एक भगवान् का निर्माण कर रहे हैं कभी वो भगवान् हमें जेल के अंदर मिलता है कभी कलकत्ते मैं ढूढ़ने जाते हैं पता लगता है वह कहीं मैदान मैं है और अगर कभी जरा कम देर के लिए मैदान मैं टिकता है तो हम तुरंत भगवान् के पद से उतार देते हैं कुर्सी खिसकाने मैं हम माहिर हैं। हिन्दू धर्म के भगवान् अगर अजन्मे हैं तो अमर भी हैं एक भगवान् चन्द्रमा कि कलाओं के साथ आये मस्त मस्त आश्रम बनवाये लेकिन अब इस दुनिया को छोड़ गए प्रवचन मिल जायेंगे एक भगवान् पुट्टपर्थी मैं थे कहा जाता था कि उनकी उम्र किसी को नहीं मालुम लेकिन हमारे देखते देखते वो बूढ़े हुए और मर गए छोड़ गए अरबों रुपये लूटते सेवकों को भगवान् निर्लिप्त है तभी सोने पर सोता है एक लम्बी सूची है भगवानों कि हिन्दू धर्म मैं वैसे भी ३३ करोड़ देवी देवता हैं अपने अपने भगवान् अलग अलग धर्म के अलग भगवान् इस हिसाब से औसत प्रति दो व्यक्ति एक भगवान् है तो रोज हम भगवान् बनाते हैं नए भगवान् का निर्माण करते हैं फिर उसका कुछ दिन बाद नाम मिटा देते हैं। अजर अमर अनादि अनन्त के आस्तित्व का एक अदना सा आदमी निर्माता है।
Monday, 11 November 2013
Thursday, 7 November 2013
samaj seva
एक भव्य कार्यक्रम हुआ और सम्पन्न हो गया बड़े पुण्य के कार्य के लिए कार्यक्रम हुआ शहर के प्रसिद्ध समाजसेवी उपस्थित थे बड़े धार्मिक गुरु भी उपस्थित थे क्योंकि अभिनेत्री नृत्यांगना उनकी प्रिय शिष्या है भव्य मंच भव्य साज सज्जा और इतना भव्य कार्यक्रम तो सारा प्रशासन तो होगा ही शहर की सभी नामचीन हस्तियां तो उपस्थित होंगी ही पास से एंट्री थी तो यदि पास नहीं तो शहर का नामी व्यक्तित्व नहीं इसलिए उनको अपनी उपिस्थिति दिखाना जरूरी है काम भी तो बहुत नेक था सुदूर अशिक्षित अविकसित सभ्य समाज से दूर इंसानो के भले के लिए . सबने नृत्यांगना की कला को देखा और सराहा और धन्य हुए और ध न्य हुए वे दूरस्थ प्राणी नयनसुख मिला आत्मा बाग़ बाग हुई तो लहरें सुदूर् वासियों को जरूर पहुंची होंगी कवि निदा फाजली ने कहा तो माँ के लिए है पर सटीक बैठती है
मैं रोया परदेस मैं भीगा (माँ ) समाजसेवियों का प्यार
दिल ने दिल से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
राम ने अपने साथ जंगल वासियों को जोड़ा था तो स्वाभाविक है कार्यक्रम भी राम को ही समर्पित होगा वैसे भी संस्था उनके हित मैं कभी रामकथा आदि कराती रहती है यह सब उनके हित मैं यहीं शहर मैं होता है कि उन्हें शिक्षा मिल जायेगी हाँ अपने शहर की बस्तियों मैं उससे बुरा हाल है। एक घटना याद आती है विदेश मैं बसे बच्चो ने ने माँ का जन्मदिन मनाया बड़ा सा केक कटा और स्वदेश मैं अकेली बैठी माँ को फोन किया माँ हम तुम्हारा जन्मदिन मन रहे हैं फोन पर माँ को सुनाया माँ हैप्पी बर्थ डे टू यू सबने मिल कर गया सुन सुन कर कल्पना कर रही माँ प्रस्सन्न थी आशीर्वाद दे रही थी कितना ख्याल रखते हैं बच्चे और बच्चे केक के साथ स्वादिष्ट खाना खाते कह रहे थे माँ बहुत बढ़िया खाना है और माँ सुबह कि राखी रोटी एक सब्जी से खा आशीष देती अकेली सो गई
मैं रोया परदेस मैं भीगा (माँ ) समाजसेवियों का प्यार
दिल ने दिल से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
राम ने अपने साथ जंगल वासियों को जोड़ा था तो स्वाभाविक है कार्यक्रम भी राम को ही समर्पित होगा वैसे भी संस्था उनके हित मैं कभी रामकथा आदि कराती रहती है यह सब उनके हित मैं यहीं शहर मैं होता है कि उन्हें शिक्षा मिल जायेगी हाँ अपने शहर की बस्तियों मैं उससे बुरा हाल है। एक घटना याद आती है विदेश मैं बसे बच्चो ने ने माँ का जन्मदिन मनाया बड़ा सा केक कटा और स्वदेश मैं अकेली बैठी माँ को फोन किया माँ हम तुम्हारा जन्मदिन मन रहे हैं फोन पर माँ को सुनाया माँ हैप्पी बर्थ डे टू यू सबने मिल कर गया सुन सुन कर कल्पना कर रही माँ प्रस्सन्न थी आशीर्वाद दे रही थी कितना ख्याल रखते हैं बच्चे और बच्चे केक के साथ स्वादिष्ट खाना खाते कह रहे थे माँ बहुत बढ़िया खाना है और माँ सुबह कि राखी रोटी एक सब्जी से खा आशीष देती अकेली सो गई
Friday, 1 November 2013
de de hai bhagwaan
मुझ पर दया करो इंसान,मुझ पर दया करो इंसान
मंदिर मैं घंटे बजते हैं ,मस्जिद मैं हो रही अजान
चारो और पुकारे हा हा ,दे दे दे दे हे भगवान्
कोई कहता लक्ष्मी दे दे ,कोई मांगे आसन
कोई मांगे छाया दे दे ,कोई कष्ट निवारण
सागर पर है मेरा आसान ,दिखते हाथ अनेकों
अपने सब हाथों से दाता ,किरपा अपनी फेंको
लेकिन इससे ज्यादा दुविधा लक्ष्मी की है आई
दे दो दे दो लक्ष्मी दे दो करते यही दुहाई
अपनी पत्नी कैसे देदूं कैसा तू नादान
अपने घर को सूना कर लूं सोच जरा इंसान
दर्शन से यदि हो जाये तो घर घर लक्ष्मी जाए
सौ सौ ताले लगा लगा कर करते अंतर्ध्यान
मुझ पर दया करो इंसान मुझ पर दया करो इंसान
मंदिर मैं घंटे बजते हैं ,मस्जिद मैं हो रही अजान
चारो और पुकारे हा हा ,दे दे दे दे हे भगवान्
कोई कहता लक्ष्मी दे दे ,कोई मांगे आसन
कोई मांगे छाया दे दे ,कोई कष्ट निवारण
सागर पर है मेरा आसान ,दिखते हाथ अनेकों
अपने सब हाथों से दाता ,किरपा अपनी फेंको
लेकिन इससे ज्यादा दुविधा लक्ष्मी की है आई
दे दो दे दो लक्ष्मी दे दो करते यही दुहाई
अपनी पत्नी कैसे देदूं कैसा तू नादान
अपने घर को सूना कर लूं सोच जरा इंसान
दर्शन से यदि हो जाये तो घर घर लक्ष्मी जाए
सौ सौ ताले लगा लगा कर करते अंतर्ध्यान
मुझ पर दया करो इंसान मुझ पर दया करो इंसान
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