दीपावली की सफाई हो रही है सब अपने अपने घरों से कूड़ा निकाल रहे हैं पूरे साल भर का एकत्रित कूड़ा जो कुछ जमा किया था अब निष्प्रयोजन लग रहा है वह कूड़े मैं फिक रहा है रद्दी वाले ठेल भरकर ले जा रहे हैं उनमें सबसे ज्यादा होती हैं किताबें जिनके लिए घर मैं न स्थान है न जरूरत फिर बढ़ रहा है कूड़े का अम्बार जरा भी चौड़ी सड़क है वाही रखा है नगर पालिका का कूड़ेदान जोखाली है और सड़क पर हथठेला आता है कूड़े की ढेरी लगा जाता है कूड़े पर नहीं उसके पास इस प्रकार सड़क घिरती जाती है है और उन मैं दिख रही हैं विगतवर्ष की टूटी हत्री गुजरिया आदि साथ ही पिछली दीपावली के ग्रीटिंग कार्ड्स शादी के कार्ड्स सब पर छपे हैं लक्ष्मी गणेश या गणपति जो अब कूड़े के ढेर पर थे वैसे यदि किसी हिन्दू से जमीन पर भगवन की तस्वीर रखने या उस पर पैर रखने के लिए कह तो दो आपके पुरखे टार जायेंगे पर अब गाय आकर हटा हटा कर मुह मार कर खाने योग्य अयोग्य चीज ढूढ़ रही थी कुत्ते भी बार बार आकर टांग उठा रहे थे शायद हमारी आस्था केवल पूजा घर तक सीमित है यही दुर्दशा नवदेवी पर देखी मंदिर मैं अष्टमी नवमी के दिन हलुआ पूरी चने देवी के आगे ढेर लगे थे उन पर फूल सिन्दूर अगरबत्ती की राख सब गिर रहा था पुजारी सबकी ढेरी कोने मैं लगा रहा था पुजारी के लिए तो अलग थाल था जो बड़े बड़े भगोने भर रहे थे अकेले देवीजी को कैसे खिल दे हर मंदिर मैं सभी देवी देवता रहते हैं अच्छा दूकानदार हर वैराइटी का माल रखता है जिसे कोई दिन कोई पर्व खाली न जाये लिहाजा हलुआ पूरी उनके लिए भी है इतने अन्न की बर्बादी जहाँ जिस देश मैं भूख के लिए चूहे खाने पडें उसी देश मैं असली घी की पूरी हलुआ कूड़े पर हो क्योंकि प्रातकाल सब को बोरी मैं भरार कर जमुना मैं विसर्जन के लिए भेज दिया इसे कहते हैं अन्न धन और आस्था का कूड़ा होना।
Monday, 21 October 2013
Thursday, 17 October 2013
kala yeh bhi hai
हमारे घर के पीछे बस्ती है , बस्ती जो हर एक की आवश्यकता है फ्लैट दुकान कोठी फैक्ट्री कुछ भी आपका हो लेकिन प्रारंभ वहीं से होता है उनके जागने के साथ शहर जगता है और पूरे शहर मे हलचल शुरू होती है वहां देश का भविष्य भी कूदता फादता रहता है उन पर समय ही समय है क्योंकि सरकारी स्कूल सबको नहीं कुछ को जाना होता है और वह भी केवल मिड डे मील के समय बाकी समय क्या करें पर कला उनके पास भी होती है . बस्ती है तो मंदिर होगा ही मंदिर है तो उसमें प्रति दिन उत्सव भी होंगे ही इन छोटे छोटे बच्चों को हर उत्सव मैं भाग लेते देखा है टीवी मैं देख देख कर अभिनेता अभिनेत्र्यों को मात करते डांस करते देखा है लेकिन साथ ही देखा है कल्पना को साकार करते। पान मसाले के डिब्बों बना झाड़ पाउच से बने पंखे मंदिर की सजावट के लिए पन्नियों और बड़े पाउच क़तर क़तर कर डोरी पर चिपका कर पूरी बस्ती झालरों से झिल मिल कर दी पहले सजाया देवी का दरबार फिर जलाया रावण धूमधाम से। दो दिन इन बच्चों की कला देखी किस तरीके से चार वर्ष से लेकर दस बारह वर्ष तक के लड़के लड़कियां रावण का निर्माण कर रहे थे फलों की पेटियों को पीट कर फंटिया बने उनमे से ही कीलें निकाल कर ईंट से कीले सीधी की फिर अख़बारों को लपेट कर फटीयों को जोड़ जोड़ कर सात फुट ऊँचा रावण बना लिया सूखी टहनियों और फलों की पेटियों में काम मैं ली जाने फूस लपेट कर हाथ बनाये बांस चीर चीर कर चेरा बनाया कितने प्रसन्न थे बच्चे न हाथ काटने का दर न ईंट लगाने का दर न सड़क का इन्फेक्शन का डर न कूड़े का संक्रमण केवल उत्साह उत्साह और उत्साह और उल्लास जलते हुए रावन की अग्नि की दहक मैं दमकते चेहरे थाली लोटे को बजा कर संगीत की धुन निकालते चेहरे कला का अप्रतिम रूप थे वे कहते छोटे छोटे चेहरे
Wednesday, 9 October 2013
Nari kya
औरत नरक का द्वार होती है सुनकर पढ़कर जैसे आंख जल उठती है और क्रोध से हाथ पैर मैं कम्पन सा होता है औरत भगवन के बाद का दर्ज प्राप्त है सच भी है भगवन निर्माता है नारी भी निर्माता है और उसे द्वार कहा जाये पर जब सबसे आगे महिलाओं को बिलख बिलख कर रोते देखते हैं की उनके भगवन पर आरोप लगाया गया है तब वास्तव मैं समझ आता है औरत ही औरत को नरक की ओर धकेलने वाली है। औरतों ने अपने को इतना सस्ता और बिकाऊ बना लिया है पुरुष की हैवानियत का पर्दा खुद बन जाती है और उस परदे पर पहरेदारी करके स्वयं लड़कियों को परोसती हैं इसी क्या मजबूरी थी शिल्पी की कि वह हरम की रखवाली कर रही थी क्या मजबूरी है देला दस्सा डोसा की कि वे दलाल बन बैठी उनके लिए पैसा ही शायद सब कुछ है पर कितना पैसा चाहिए किसी को वहां रोटी के साथ एस क्या मिल जाता था जो इतना नीचे गिर जाती थीं।
अधिकांश देखा गया है कथित संतों की सेवायत खूबसूरत जवान लड़कियां होती हैं कोई बड़ी उम्र की कुरूप औरत कभी नहीं मिलेगी कुछ दिन बाद देखोगे तो दूसरी कमसिन लड़की खड़ी पंखा झलती रहेगी चाहे शीशे के पीछे एसी चल रहे होंगे क्या इन्हें संत कहा जा सकता है इन संतों को नीचे गिराने मैं प्रमुख रूप से किसका हाथ है आदम को हव्वा ने ही स्वर्ग से निकाल दिया जब औरत भगवान् मानकर जवान बेइयोन को प्रसाद हेतु संतों के पास भेजने मैं नहीं हिचकिचाते बेटी भोग्य हुई यह सोचकर धन्य होते रहेंगे तो यह संतों का दोष नहीं महिलाओं का स्वयं का दोष है
अधिकांश देखा गया है कथित संतों की सेवायत खूबसूरत जवान लड़कियां होती हैं कोई बड़ी उम्र की कुरूप औरत कभी नहीं मिलेगी कुछ दिन बाद देखोगे तो दूसरी कमसिन लड़की खड़ी पंखा झलती रहेगी चाहे शीशे के पीछे एसी चल रहे होंगे क्या इन्हें संत कहा जा सकता है इन संतों को नीचे गिराने मैं प्रमुख रूप से किसका हाथ है आदम को हव्वा ने ही स्वर्ग से निकाल दिया जब औरत भगवान् मानकर जवान बेइयोन को प्रसाद हेतु संतों के पास भेजने मैं नहीं हिचकिचाते बेटी भोग्य हुई यह सोचकर धन्य होते रहेंगे तो यह संतों का दोष नहीं महिलाओं का स्वयं का दोष है
Saturday, 5 October 2013
awaj suni kya
क्यों भाई फटका , हाँ भाई झटका कुछ सुना , हाँ सुना , सुना सब सुना सब बकवास है फाड़ कर फेंको , अरे ! यह कैसे सुना . हाँ हाँ ले ले सुनाउ किर्र किर्र किर्र हुई आवाज गूंजी चारो ओर.… अन्दर की भी अपनी आवाज होती है सब सुन लेते हैं सो मैंने सुनी अब जब बड़े बड़े बोले मैं बहुत कुछ करना चाहता था नहीं कर पाया तो समझ जाओ वह साफ़ कह रहा है मेरी कुर्सी तो गई . मैंने भी ड्रामों मैं काम किया है खूब किरदार निभाए हैं बहुत चेहरे लगाये हैं पहले लटका फिर फटका फिर झटका और ले पटका और हो गए हीरो समझे क्या
राजनीती के खेल निराले
कुछ उजले कुछ काले काले
अरबों के होते घोटाले
आधे खोले आधे टाले
सहयोगी जो आँख दिखाए
वो जेलों मैं हैं भिजवाये
थोड़ी खाई जिसने रेल
बलि के तो कुछ होंगे बैल
बड़े बड़े जो माल बनाए
या घुडशाला ही खा जाये
घोडा उनका जाकी उनका
पर्ची उनकी परचा उनका
राजनीती के खेल निराले
कुछ उजले कुछ काले काले
अरबों के होते घोटाले
आधे खोले आधे टाले
सहयोगी जो आँख दिखाए
वो जेलों मैं हैं भिजवाये
थोड़ी खाई जिसने रेल
बलि के तो कुछ होंगे बैल
बड़े बड़े जो माल बनाए
या घुडशाला ही खा जाये
घोडा उनका जाकी उनका
पर्ची उनकी परचा उनका
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