Friday, 28 June 2013

desh ki ankhen nam thi

उस दिन सूर्य  पश्चिम  से निकला था
सूरज की आंख  झुकी  झुकी  सी थी
धूप भी ढली ढली सी थी
साथ लेकर जो जा रही थी  कांधे  पर
  किसी  की आंख का नूर किसी का श्रृंगार
एक हाथ  से छीना  था बचपन का  प्यार
दूजे हाथ में  थी  बहन की मनुहार
माँ के आँचल को भिगोया था उसने
इसलिए धुप की आंख जली जली सी थी
पूरब से ढले चाँद ने देखा
सारे शहर की आंख नाम थी
सूरज के कंधे पर इतना बोझ  था
 मौत को मिली थी इतनी बद दुआएं
जितनी उठा सके  वो कम थी
इसलिए उसकी बाहें गली गली सी थी
उस  दिन सूर्य 

Thursday, 27 June 2013

rain hui chahun des

हिमालय फिर क्रोध से कांप रहा है .उसकी धरती पर निरंतर वार .वह सहता रहा सहता रहा  जब सहन शक्ति ख़तम होगी तो उसने बस एक बार  पलक टेढ़ी की है  मात्र एक पलक  . न जाने कितनी झीलें हैं जो शीतल  थी उबलने लगी हैं  सूखने लगी है  इन्सान के लालच ने शिव के निवास को पिघला दिया  उसकी बदहाली  पर ही तो आसमान रोया .हिमालय भी तो पूरे देश का है लेकिन उसके  हिस्से कर इंसान  जुट गया उसे ही काटने  उसे ही बाँट लिया  ये तेरा हिस्सा ये मेरा हिस्सा  तेरे हिस्से में  मैं नहीं बोलूँगा मेरे हिस्से मैं तू पैर भी नहीं रखेगा  अब यदि अख़बार टीवी वाले न्यूज़ देना बंद कर दें  तो देश को पता भी नहीं चलेगा की क्या हो गया उसके परिजन कहाँ गायब हो गए  कोई हलचल नहीं  होगी और अपनों को रो कर चुप हो बैठ जायेंगे  पर मानवीय  संवेदनाये आम आदमी से नहीं जा सकती  पहले यदि किसी प्रदेश मैं विपत्ति  आती थी तो पूरा देश एक हो जाता था  ये धाम तो पूरे भारतवर्ष को संजोये हुए था  तब भी वह केवल उत्तराखंड का है और कोई  कुछ नही  करेगा जो करेगा उत्तराखंड की अनुमति से करेगा  अब यह तो है ही अगर मेरी पार्टी का है तो वह सब कर सकता है  चाहे राहत शिविर के भूखे प्यासे लोगों को कांपते हुए  बहार रात  बितानी पड़े  हाँ  दुसरे पार्टी का  देखे भी नहीं  कहीं लोग  उससे कुछ बुरे न कर दें या उनका पर्दा फाश न हो जाये  हम चाहे डूब जायेंगे और जनता को डुबो देंगे पर तुझे बचने नहीं देंगे . सैलाब की क्या है  अच्छा है लाखों की जनता कम हुई  सरकार के ह्रदय मैं कोई हलचल नहीं हुई  गाद केदारनाथ पर नहीं पड़ी  गाद पूरे देश पर स्वार्थ की पड  गई है  गृहमंत्री जिन के हा थो मैं पूरा देश सोंप दिया आठ दिन बाद गर्दन हिलाते कह रहे हैं  आपस मैं तालमेल मैं समय लग गया  केवल गर्दन हिल देना कितना आसन है पर अपनों को खोने से जो पत्थर पड़ता है उस बोझ को उठाना आसान नहीं है यह दर्द दिल वाला ही जनता है  हाँ इस बात पर ज्यादा परिचर्चा है  की लाश कौन उठाये  टांग तेरी सीमा मैं है धड दुसरे की सीमा मैं  पड़ा रहने दो  चार आंखे दूर आसमान से  सुरम्य हिमालय की कल कल बहती नदियों को देख गई कितना सुन्दर हिमाच्छादित स्थान है  रोद्र रूप तो उन्होंने झेल जो उसके साथ बह गए  समझ नहीं आया क्या बिगाड़ा नदी हैं पेड़ हैं पहाड़ है  इतनी ऊंचाई से जंगलो मैं झाड़ियों मैं चींटी की तरह दिखेंगी नहीं नहीं तो विपत्ति की भयावहता कहाँ समझ आएगी .चलो भी  सैर कर दुनिया  की  जानिब  दो चार बांध और बन जायेंगे  तो इन इलाकों पर भी कब्ज़ा  हो जायेगा .चल खुसरो घर आपने रेन (रैन नहीं )हुई चंहु देस अच्छी फसल होगी  

Tuesday, 18 June 2013

bhartiya sanskrati

अगस्त क्रांति मथुरा से  पकडनी थी , जरा सा आगे बढ़ते ही जाम की स्थिति उतर कर देखा दूर दूर तक वाहनों की  लम्बी कतार  ड्राईवर  ने तुरंत मोड़ कर सर्विस लेन पर  गाड़ी उतार ली  जैसे जैसे गाड़ी बढती रहत की सांस आती जा रही थी  नहीं तो निश्चित था ट्रेन निकल जाएगी आगे एक ट्रक पलट गया था  ड्राईवर और क्लीनर  घायल थे उन्हें पटरी पर लेटा  दिया गया था ट्रक हटा कर रास्ता चालू करने का प्रयत्न  किया जा रहा था एक मिनट रुक कर स्थिति देखी  अरे  घायल    इन्हें  पहले कोई  हॉस्पिटल क्यों नहीं पहुंचा  रहा  चलो  आगे  हॉस्पिटल है इन्हें छोड़  देते हैं  कर्त्तव्य का भाव जग  उठा  . पागल हो अभी  अगर ट्रेन नहीं पकडनी है तो  पडो चक्कर मैं  पहले तो पुलिस मैं मामला दर्ज होगा  तुम लेकर गयी  तो तुम्हारा बयां होगा तुम्हे पुलिस इतनी आसानी से जाने नहीं देगी हो सकता है तुमने ही मारा  हो  पता लगा अम्बुलेंस के लिए फोन  कर दिया है पर वह भी जाम खुलेगा तब ही तो आएगी  और अस्पताल  वाले भी  भारती नहीं करेंगे  आसानी से  मैं और शायद सभी जल्दी मैं थे लाख लाख शुक्र है गाड़ी मिल गई  रस्ते मैं एक स्थान पर फालसे लिए  पता नहीं कौन जमाने का  ठेलेवाला  था  जो कागज मैं फालसे दे रहा था प्लास्टिक थैले नहीं थे  उस अखबार मैं एक पुरानी खबर और चित्र था एक ट्रेन दुर्घटना का  एक महिला सीट से दबी थी और एक आदमी  उसकी चूड़ी उतर रहा थाखबर मैं था  चूड़ी उतार कर वह भाग गया महिला को नहीं निकला . बस कांड तो हो कर ही चूका है  आधी दुनिया चीख कर रह गई कुछ  नहीं हुआ  रोज खबरें रहती है  बैखोफ हैं यौन  अपराधी  यह सब भारतीय संस्कृति का हिस्सा है जिसका गौरवमय अतीत है एक भब्य आयोजन से  बापस आते ही खबर मिली अमेरिका मैं बेटी दामाद  व् धेवती की कार  दुर्घटना ग्रस्त  हो गई  कार ने पांच  छ पलते खाए बेटी बेहोश दामाद ने गाड़ी से निकल कर देखा एक गाड़ी सहायता के लिए रुक गई  उन्होंने उससे प्रार्थना की एम्बुलेंस के लिए तो उस व्यक्ति ने बताया  मेरी पत्नी कर रही है तब तक गाड़ी के सेंसर  से भी आवाज आने लगी अम्बुलेंस  से डॉ  हिदायत दे रहे थे उन्हें क्या  उपचार करना है दो मिनट मैं  अम्बुलेस  वहां थी  पाच मिनट मैं पुलिस पहुच गई  अम्बुलेंस उन्हें लेकर हॉस्पिटल चली और पुलिस ने उनका एक एक सामान  बटोर कर यहाँ तक की चिल्लर भी उन तक सुरक्षित  पहुँच दिया  इश्वर  का बहुत बहुत धन्यबाद  जो इसी भीषण दुर्घटना से सब उबार गए  .किस सभ्यता संस्कृति को हम मानवीय  कहेंगे  हाँ धन्यबाद के समय भारतीय ईश्वर  ही मेरे सामने थे    

Tuesday, 11 June 2013

aazaadi

साढ़े तीन साल बाद  अग्रवाल दंपत्ति  अमेरिका से वापस  आये  पांच  वर्षा पहले पुत्र  अमेरिका चला गया था  वहीं  पढ़ाई  करके वहीँ नौकरी  कर ली  अब  दो वर्ष पूर्व  उसने  अपना निवास बना लिया था  और पत्नी को लेकर चला गया था  .पहले बच्चे के जन्म के  समय  उसे माँ की आवश्यकता  हुई तो  माँ बाप को टिकेट  भेज कर बुला लिया ' छ  माह रह सकेंगे बच्चों के  संग  अच्छा  लगेगा
एअरपोर्ट से बाहर आते ही उनकी नाक सिकुड़  उठी ," अमेरिका की सड़कें  हैं क्या फर्राटा  भारती हैं  एक दम चिकनी ' क्या मजाल जरा भी जाम लग जाए  जाम  जैसी चीज तो वहां है ही नहीं  ट्रेफिक  जैम  था किसी ने युटर्न  ले लिया उसमें देर  लग गयी  और जाम की स्थिति आगई  पुलिस  वाले से झिकझिक चल रही थी
अरे क्या कर रहा है बगल से लेले  'उन्होंने ड्राईवर से कहा
'नहीं और जाम लग जाएगा  सिंगल  रोड है  न मित्र जो लेने आये थे उन्होंने कहा
अरे यार  क्या करें  घर की जल्दी पड़ी  है  निकाल तू 'उन्होंने बेताबी से कहा 'और किसी पान वाले पर  रोकियो पान मसाला तम्बाकू खाए जुग  बीत  गया    बस वहां यही खराबी है  पान मसाला नहीं मिलता  ले गया था सब झपट लिया  पर प्रदूषण नाम का भी नहीं है कोई हॉर्न भी नहीं बजा सकता  यहाँ देखो कैसी चिल्ल  पों  मची है  एक टुकड़ा भी सड़क पर डाल  दो न जाने जुर्माना लेने प्रगट हो जाते हैं  आप पुलिस  वाले को कुछ दे भी नहीं सकते  देने का प्रयास किया तो  अन्दर  ' अमेरिका  की बातें बताते उनकी छाती  गर्व  से  फूल  रही थी।
 अरे  ड्राईवर रुकना गरम मूगफली  मिल रही है दस रुपये की लाना ' और लेकर छील छील कर सबको देने लगी  साथ ही बोली 'अरे भाईसाहब  वहां तो कुकर  मैं सीटी भी नहीं लगा  सकते  कुछ तल  नहीं सकते जरा कुछ  तलने लगती बहू  कहती अलार्म बज जायेगा  कभी कभी  खिड़कियाँ बंद कर  तला भुनी जरा सी करते  ब्रेड खा कर थक गए पर हवा  एकदम शुध है  वहां सांस लेने  मैं आनंद  तो था  यहाँ तो ऐसा  लग रहा है चारो ओर     धुआं ही  धुआं  है  . सुनो वो गरम कचौरी  बन रहीं है  लेलो
अब आते ही एकदम मत खाओ पेट खराब हो जायेगा  जरा यहाँ के खाने की  आदत पड़ने दो  वहां शुद्ध  खाया है न
'पर आप तो  छ  माह के लिए गए  थे  मित्र हो हो कर  हसते बोले बहू ने निकाल दिया या  उनका काम पूरा हो गया .'अरे नहीं बहू बेटा तो बहुत कह रहे थे  पर अकेले  बॊर  हो जाते बच्चे तो सुबह ही चले जाते  ' अरे भाई साहब  सब काम अपने हाथ से करने पड़ते  मैं तो बर्तन माजते  तंग आगइ   पत्नी ने शीशा खोल और  छिल्के  का  थैला बाहर फैंक दिया  अरे  यहाँ  आजादी  है यार वहां तो बंदिशे  बहुत हैं यह कहते हुए  दरवाजा खोल और पिच्च  से थूक दिया 

Sunday, 2 June 2013

sarkaari naukari

ए बहूजी  तुम तो इत्ती जगह  जात होई  मेरे लाला के लिए नौकरी लगवाव  दो ' मेरी मनुहार कराती काम वालीबाई बोली
कितना पढ़ा  है क्या काम कर सकता है ,' किसी के लिए कुछ करने का जज्वा  तुरंत बोला  
 बाय दसई  को  सटिफिकेट बनबाय  दियो है  एक हजार लगे वैसे  स्कूल मैं सातवी तो पढो हतो  पास  कर ली  है
तब क्या  नौकरी  लगेगी पास मैं गोदाम है  लगवा दूं  मेहनत का काम  है  कार्टून  उठा उठा  कर रखने होते हैं' अरे  वापे  काम  ही तो ने होत कछु करे  न चाहत  जय लिए कह  रही कि  सरकारी लगवाय दो '
 ये  दसवीं के कागज़ कहाँ  से बनवाये '
चों बन जात हैं  हजार रूपया लगत है  सरकारी नौकरी मैं  दसवीं पास  चाहिए न
सरकारी सरकारी नौकरी  क्या इतनी आसानी  से लग जायेगी
खच  कर दूंगी  वाकी  चिंता मत करो  कई भी जगे  फिट करा दो  अब का करूँ  बिलकुल हर्रम्मा  है  बसे काम ही तो ने हॉत  पिरैवेट  मैं तो काम कारणों पड़ेगो  काम नाय करेगो  तो कल निकार देंगे सरकारी मैं तो एक बार  परमानेंट  है जय  फिर कोई  मई को लाल न  निकार सकत 'नहीं मालुम फिर उसका  क्या हुआ  क्योंकि मैंने मन कर दिया की मैं नहीं  कर पाउंगी तो वह काम छोड़  गई  फिर दिखी भी नहीं
सच है सरकार कई डिब्बे  वाली ट्रेन है  जिसके फर्स्ट सेकंड  थर्ड पर तो ऊपरी  तंत्र  टांग पसार कर सो रहा है  अगर एक भी सीट  खाली  तो मौजूदा व्यक्ति  के परिवार  का बच्चा  ही सही स्टेशन  से चढ़ जायेगा 'स्लीपर पर अफसर बैठे हैं  सो रहे हैं कुछ  डिब्बे जनता के इसमें  ठुस्सम ठुस्सा  हो रही है और सरक यार  सरक यार  दुसरे दरवाजे से गिर जाये  कोशिश करते हैं  और खुद लटक  कर ही सही चढ़  जाते हैं  फिर क्या बस  ठूसना  चाहिए  रेल तो अपने आप  चल रही है  चलती  जायेगी
आराम बड़ी चीज है  मुंह ढक के सोइये
किस किस को याद कीजिये किस किस को रॊयिये

अजगर करे न चाकरी  पंछी  करे न काम
दास  मलूका  कह गए सब के दाता  राम