Wednesday, 23 January 2013

ओ  काली कमली वाले
तेरे सारे खेल निराले
अब बात समझ मैं आई
क्यों तूने ड्रेस काली  बनाई
गंगा तो तूने  बहाई
लाइन पालिका से डलवाई
जब पानी ही नलों  मैं नहीं  आता
कपडे कहाँ से धुलवाता

ओ काली कमली वाले
अब बात समझ मैं आई
क्यों तूने भस्मी रमाई
पार्वती के नहाने की तो बात आती है
पर तू कभी नहाया यह नहीं बताती
भस्मी से वो तन को साफ़ करते
जो ठन्डे पानी से नहाने से डरते
गैस पर तेरे यहाँ भी कंट्रोल  होगा
गरम पानी कंहाँ  से करते भाई

ओ काली कमली वाले
तेरे काम निराले
अब समझ मैं आया
क्यों तूने चाँद सर पर लगाया
तेरे सारे दोस्त ही निशाचर हैं
काट लें तो मर जाएँ संगी विषधर हैं
तेरे कैलाश पर भी बिजली नहीं आती होगी
लगता है तूने भी टोरेंट का मीटर लगवाया

ओ काली  कमली वाले
तुझसे सीखेंगे  सब नीचे वाले
तूने क्यों नदिया को बनाया सवारी
समझ गए तेरी भी होगी लाचारी
तेरी सरकार भी गणो   के आधीन  होगी
जिन्हें दियें होंगे अधिकार हेराफेरी की होगी
घटा जोड़ गुणा करते रहे होगे
जोड़ गुणा  उनके घटा तुझे दिखाते होंगे
पेट्रोल डीजल गैस की सब्सिडी उनकी कारों की
तेरे पास तो भूसा होगा खिलाने को
यहाँ तो वह भी है लाचारी
यहाँ तो भूसा भी कर देते हैं बिहारी 

Monday, 7 January 2013

क्या आज  का युवा  विद्रोही  हो गया  है   ?

आज  का युवा  विद्रोही  नहीं यथार्थ  के धरातल  पर है  पुरातन पीढ़ी  समाज  और  परिवार से बंधी है  वह जो  कुछ भी  करती है परिवार और समाज के  लिए  करती है  उसकी नजर मैं परिवार  सर्वोपरि है  लेकिन अब  सीमित परिवार  और व्यापक वैश्विकता  ने मानदंड  बदल  दिये  हैं .एक तरह से परिवार  खत्म  हो गए  हैं  ज्यों  ज्यों  विश्व स्तरीय  नोकरियाँ  बढती  जा रहीं  है  आर्थिक  सम्पन्नता  भी उसी मैं  युवा पीढ़ी  को दिखाई 
देती है  और है भी  क्योंकि  या तो कॉर्पोरेट  घराने  संपन्न हैं या नेता  या फिर विश्वस्तरीय  नोकरियां  पंख  पसारने  के लिए खुला  आसमान  देती हैं . इसे विद्रोह  नहीं युग की मांग  कहेंगे  जो  प्रोढ़  पीढ़ी  ने दिया हैं  उसी  का देय है  यह .
मध्यवर्गीय परिवार जहाँ आज भी सबसे  अधिक पिस रहा है  पहले  भी परेशान था  उसे समाज के साथ  चलना है  जबकि चलने मैं समर्थ नहीं  होता .अब मध्यवर्गीय परिवार का  बच्चा  कुए  से बाहर  कूद  गया  है  उसने सारे दरिद्र  काट  दिए हैं  युवा  पीढी  अब एक एक  पैसा  नहीं  एकदम सौ  पैसा  चाहती है  तो बुरा क्या  है परिवार  के  प्रति कर्त्तव्य  अब यही है कि  वह आर्थिक  सहायता  कर पाता   है . अब युवा पीढ़ी  जीने मैं विश्वाश  करती है  जोड़ने  मैं नहीं ,'पूत कपूत  तो  का धन संचै ,पूत सपूत तो का धन  संचे ' वाली उक्ति चरितार्थ  करती है  और यही  प्रौढ़  पीढ़ी  को विद्रोह लगता है  कि  युवा अपने मैं सीमित  हो गया है . यह युग क़ी  मांग है  युग परिवर्तन  है .

Thursday, 3 January 2013

nav varsha ki badhai

नये वर्ष  की आप  सबको  बधाई
आती  रहे आपकी काम वाली  बाई
न उसको नए नए  बहाने बंनाने पड़े
जूडी  बुखार  न ताप चढ़े
डॉक्टर के न लगाने  पड़े आपको चक्कर
अस्पताल  के बिल न बनायें घनचक्कर
 कृपा अपनी बनाये रखे भगवान
न भेजे इस महगाई  मैं  कोई  मेहमान
पडोसी का चूल्हा रोज रोज जले
उसका खाली  सिलेंडर  देख ठंडक  मिले
गैस पर दूध  रख कर न भूलें
दाल  न सब्जी  आपकी जले
आपका सिलेंडर  दो महिना  चले
देख कर सारी  महिलांए  जलें
ईश्वर से है  प्रार्थना  वर्ष मंगलमय  हो
चाहे  सारे  अख़बारों  की ख़बरें दंगालमय  हों