नगरी में दस हजार योजन ऊॅंचे एक खरब मूॅंगे के षिखर हैं । उसके बाद पद्यरागमणि के बीस हजार योजन ऊॅंचे दस अरब षिखर हैं । उसके अंदर तीस हजार योजन ऊॅंचे एक करोड़ वैदूर्यमणि से बने षिखर हैं । षिखर के चारों ओर के स्थान पर घर बाग बावड़ी ,कुॅंआ नद और नदियॉं हैं । बाहर से अंत तक क्रम से उस स्थानों पर परम मुक्त आत्माओं का वास है। यह धाम दिव्य धाम है ,उनके लिये दिव्य आनंद की वस्तुएॅं उपलब्ध हैं। अगणित षिव के गण एवमे प्रभावषाली कन्याओं का भी वही वास है । उन षिखरों पर कल्पवृक्ष व कामधेनुएॅं विचरण करती रहती हैं । इन स्थानों पर जो षिव की आराधना कर षिव की कृपा प्राप्त कर जीवन मरण से मुक्त हैं वही रह सकते हैं ।
इनके बाद चालीस हजार योजन ऊॅंचे षिखर हैं । ये पुष्पराग मणि के षिखर हैं जिनसे निरंतर प्रभा निसृत होकर चतुर्दषाओं को आलोकित करती हैं । इन पुष्पराग मणि षिखरों पर गन्धर्व ,यक्ष ,किन्नर,गरुड़,नाग आदि रहते हैं । उनके बाद पचास हजार करोड़ योजन ऊॅंचे एक करोड़ गोमेदक मणि के षिखरों का घेरा है।यहॉं पर पदच्युत इंद्र्रों का वास है । ये यहॉं पर निरंतर षिव की आराधना में लीन रहते हैं ।
इसके बाद साठ हजार योजन ऊॅंचे दस लाख नीलमणि के षिखरों का घेरा है । यहॉं चार मुख वाले अनेक ब्रह्मा का वास है । षिवभक्ति में लीन इनका हृदय षिव आराधना से शांत है । इसके बाद नीलमणि के सत्तर हजार योजन ऊॅचे एक लाख षिखर हैं इसमें अनेकों विष्णु निरंतर षिव आराधना करते हुए रहते हैं । इसके पष्चात अस्सी हजार योजन ऊॅंचे दस हजार एक मुक्तमणि षिखरों का घेरा है इसमें अनेकों महात्मा रुद्रगण षिव अराधना करते षिव कृपा की दीप्ति से दिपदिपाते रहते हैं । इसके बाद नब्बे योजन ऊचे एक हजार स्फटिक षिखरों का घेरा है । इसमें नन्दी ,महाकाल,
वीरभद्र आदि सभी षिव की अपर मूर्ति हैं रहते हैं । ये षिव की आज्ञा से करोड़ों ब्रह्माडों को बनाने बिगाड़ने में समर्थ हैं ।इसके बाद एक सौ हीरक मणि के एक सौ योजन ऊॅंचे षिखर हैं जिनके प्रकाष में षिवधाम आलोकित होता है इसमेंसभी देवी ष्श्क्तियॉं,स्वामी कार्तिकेय,विघ्नेष्वर रहते हैं । यहॉं साधारण देवता नहीं आ सकते । इसके बाद ग्यारह ज्योर्तिमय षिखर है जो सदा षिव के निज धाम को घेरे खड़े हैं । निज धाम में षिव मॉं जगदम्बा के साथ दिव्य सिंहासन पर विराजमान हैं ।2
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