अगला पड़ाव सागा था रास्ते में कहीं कहीं जरा देर के लिये ऐसे स्थानों पर यात्रा दल रुकता था जहॉं पर तिब्बतियों की चार पॉंच तम्बू नुमा दुकानें होती थीं जिनमें यात्रा के उपयोग की वस्तुऐं रहती थीं। वहॉं भी तिब्बती महिलाऐं सामान बेच रही थीं । तरह तरह के नमकीन बिस्कुट टॉफी मनके मालाऐं रजाई पिन आदि साथ ही कोल्ड ड्रिंक आदि भी रख रखे थे । उन तिब्बती बालाओं का श्रंगार देखने योग्य था । कान में बालियॉं या झुमके। कई कई मनकों की मालाऐं। केषों मेंतरह के पिन सजावटी कंघी आदि लगी हुई थी । वहॉं तिब्बती परिधान भी दिख रहे थे ै कुछ यात्रियों ने फोटो खींचना चाहा तो वे एकदम छिटक कर बोली ,फोटो नइं , फोटो खंचना है तो पैसे दो ,उन्होंने सौ युआन तक मांगे ।
सागा के रास्ते में एक विषाल झील हमारे साथ साथ थी । कई किलो मीटर लम्बी इसे तिब्बती पिगुत्सी लेक कहते हैं बेहद सुंदर स्वच्छ जल । सागा 16800 फुट की ऊॅंचाई पर है । यहॉं पर आक्सीजन 66प्रतिषत है । कुछ लोगों को यहॉं पर सॉंस लेने में असुविधा होने लगी। मुबई की ज्योति रतनपॉल पेषे से वकील थीं अकेली आईं थीं । उम्र पेंतीस के आसपास थी अविवाहित थी ं उनको सॉस लेने में परेषानी होने लगी कुछ दवाऐं सबके पास थीं कुछ डाक्टरी दवाऐं यात्रादल के साथ चल रहीं थी । छोटे छोटे सिलेंडर सबके साथ थे ही लेकिन उन्हें बेहद ठंड लग रही थी सॉंस की भी षिकायत हो ही गई थी । उनके कार के सहयात्री और ष्शेरपा पेम्बा ने उनकी देखभाल का जिम्मा उठाया । आगे की यात्रा कर पायेंगी कि नहीं भाई को खबर की जाय तो उन्होंने सिरे से नकार दिया ‘नहीं भाई ने बहुत मना किया था अकेली मत जाओ अब यदि पता चलेगा कि मेरी तबियत खराब हो गई तो बहुत गुस्सा होगें, मैं ठीक हो जाउॅंगी चिंता मत करो ’।
ष्शाम होते होते हम सागा पहुॅंच गये । सागा पहुॅंचकर ज्योति को कई वस्त्र ओढ़ाकर लेटा दिया गया। चिकित्सा अधिकारी ने उन्हें दवा देदी। चिकित्सक का कहना था उन्हें अस्पताल में भरती करा दिया जाये लेकिन उनके साथ किसी को रुकना पड़ सकता था अपनी यात्रा बीच में छोड़ने के लिये किससे कहा जाता फिर लौट कर आने तक दस दिन का समय बहुत परेषानी वाला होता। निष्चय यह रहा, देख रेख होती रहेगी आगे की यात्रा जारी रहेगी । रात तक कुछ बेहतर महसूस करने लगी ।
सागा का होटल बहुत अच्छा था । तीन मंजिल वाले होटल में सभी सुविधाऐं उपलब्ध थीं लिफ्ट नहीं थी और हमें तीसरी मंजिल ही ठहरने के लिये मिली थी । एक कमरे में तीन लोगों का ठहरने का इंतजाम था। कमरे में पहुॅंचकर सबसे पहले नहाने का प्रबन्ध देखा , दो दिन से स्नान नहीं हुआ था सोचा कैसे भी नहाया जाये । होटल सभी सुख सुविधाओंसे पूर्ण था लेकिन चीन में पानी की बहुत कमी है । अभी तक की यात्रा जैसे धर्म स्थलों के स्थान होते हैं वैसी थी लेकिन सागा के पॉंच सितारा होटल ने उसे लक्जरी में पहुॅंचा दिया । हर कमरे में कॉफी के पाउच ,चाय के पैकेट व गर्म पानी
रखा था ही काफी पी गई । पता लगा पानी आठ बजे आयेगा और केवल दो घंटे के लिये आयेगा और एक ही समय पानी आयेगा ।अर्थात् इस समय नहाना और सुवह के लिये भरकर रखना इस समय नहाकर भी सुवह नहाकर ही चलना चाहते थे क्योंकि पता था आगे प्रयांग में और दारचेन में नहाने की सुविधा नहीं है ।
होटल के पीछे सैन्य छावनी थी होटल के कमरे में निर्देष था उधर की तरफ देखना या फोटो खींचना निशिध्द है । नित्य नई तकनीक विकसित हो रही हैं । उस तरफ दीवार ष्शीषे की थीं यदि किसी के मन में गलत हो तो वह आराम से फोटो खींच सकता था । । लेकिन हमने निर्देष का पूरा पूरा पालन किया लेकिन यह तो मानवीय प्रकृति है जिस वस्तु का निषेध होता है उसके लिये उत्सुकता भी होती है जरा सा पर्दे के पीछे से ही झांक कर देखा अवष्य कि क्या है परन्तु ऐसा कुछ नहीं था वहॉं सैनिकों की ड्रिल हो रही थी हम हट गये हमें बस इतनी उत्सुकता थी । हर देष का सैनिक अपनी मातृष्भूमि का रक्षक है हमारी उनके प्रति पूरी पूरी श्रध्दा है हमें उनसे कुछ लेना देना था नहीं पर हॅंसी अवष्य आई कि जिस होटल में देष विदेष का हर नागरिक रुकता है वह ऐसे स्थान पर क्या सोच कर बनाया है । संभवतः कोई अधिक महत्वपूर्ण छावनी नहीं होगी ।
नहाने के लिये होटल वालों से बाल्टी मग का प्रबन्ध करने के लिये कहा । एक बाल्टी मिली । नहाकर मग ,पानी के गिलास यहॉं तक कि डस्टबिन तक पानी से भरकर रख लिया सोचकर कि आधी आधी बाल्टी से नहा लेंगे डस्टबिन के पानी को अन्य प्रयोग में ले आयेंगे गिलास खाली बोतलों के पानी को ब्रष आदि के उपयोग के लिये रख लिया । सिर रात्रि को ही धेा लिया । एक बार लगा रात्रि में इतनी ठंड में सिर धेाकर बीमार न पड़ जायें लेकिन एक तो गर्म पानी का लोभ क्योकि सुबह तो रात का भरा सीमित मात्रा में ठंडा पानी ही मिलना था ऊपर से ऊबड़ खाबड़ धूल भरे रास्ते में बहुत ही ऊंचा नीचा होता रहा था एकाएक बीस डिग्री तक का फर्क आ जाता था । कभी ठंडी हवाऐं तो कभी असह्य गर्मी। धूल ही धूल की वजह से ष्शीषा जरा भी नहीं खोला जा पा रहा था और बंद गाड़ी में ऊनी कपड़ों के साथ बहुत गर्मी लगती थी । बार बार ऊनी कपड़े पहनना और उतारना यही नाटक चलता रहता था । मंकी कैप जरा भी नहीं उतारने दी जाती थी हम महिलाओं को तो सुविधा थी हम ष्शॉल औढ़ और उतार लेते थे । वहॉं यात्रा में इसी प्रकार के वस्त्रों का चयन करना पड़ता है कि आसानी से उन्हें पहना या उतारा जा सके । पैरों में सूती और पतले मोजे पहने थे ज्यादा ठंड लगने पर उसी पर दूसरा मोजा आसानी से चढ़ जाता था ।
No comments:
Post a Comment