Saturday, 26 July 2025

kailash mansarover 12

 12दोनों ओर रास्ते में चीनी सामान  की दुकानें लगी थी विषेष रूप से कंबल बहुत थे ।       दूसरे चैकपोस्ट पर हम मूलचंद भाई का इंतजार करने लगे । यहॉं से हमें चार चार के ग्रुप में लैंडक्रूजर गाड़ियों से आगे की यात्रा प्रारम्भ करनी थी । उस समय हमारी घड़ियों में दो बजे थे और चाइना की घड़ियॉं चार बजा रही थीं हमने चीन की घड़ियों से समय मिलाया किसी प्रकार मूलचंद भाई को  लाया गया यहॉं  बीनू भाई और अवतार गाइड की 

 पुरानी पहचान और अनुभव काम आया । हमारे पासपोर्ट आदि एक बार फिर चैक हुए और चार चार  के दल को एक एक गाड़ी का नंबर दे दिया गया । लैंडक्रूजर गाड़ी पर्वतीय क्षेत्र के लिये  विषेषरूप से बनाई गई है यह चारों पहिये पर चलती है तथा इसमें ट्रक के पहिये लगे होते हैं । मैत्री पुल के बाद चैक पोस्ट से हमें बाहर निकाला गया वह स्थान झांग  मू था 

होटल पास ही था वहॉं पहुॅचने तक शाम के 6ः बज चुके थे । झांग मू यद्यपि तिब्बत का अंग है लेकिन तिब्बत अब चीन के अधीन है । वहॉं सरकार एवरेस्ट तक सड़क बना रही है । दिन में पहाड़ काटे जाते हैं इसलिये बम ब्लास्ट किये जाते हैं सड़क ऊबड़खाबड़ व संकरी  होने की वजह से एक तरफीय मार्ग चलता है। हमारा अगला पड़ाव निलायम् था जिसके लिये हमें वही मार्ग पार करना था हमें बारह बजे रात्रि यात्रा प्रारम्भ करनी थी  तबतक रुकने का हमारा प्रबंध तिमंजिला होटल में था वह भी ऊचाई पर था । तीन मंजिल की चढ़ाई बैग तो साथ था ही लगा यहीं पर्वत चढ़ रहे हैं । पर उत्साह तोथा ही मजे मजे से चढ़ गये । एक बड़ा सा हॉल उसमें कुछ पलंग पड़े थे एक एक पलंग पर दो दो जन  आराम करने लगे । चाय का मन कर रहा था पर समान के ट्रक ने अभी मैत्री पुल नहीं पार किया था उसे हरी झंडी नहीं मिली थी आता ही होगा उम्मीद पर दुनिया कायम है और खबर मिल गई कि आ गया आगया । फुर्ती से ट्रक के साथ आये ष्शेरपाओं ने चाय तैयार की ।

  जबतक चाय तैयार हो रही थी बीनू भाई ने आगे की यात्रा के विषय में बताना प्रारम्भ किया । अगला पड़ाव निलायम् था जहॉं रात्रि दो बजे के आस पास पहुॅंचना था । वैसे तो यात्रा बारह बजे प्ररम्भ होनी थी लेकिन दस बजे तक लाइन में लग जाना था क्योकि एक निष्चित समय के लिये यात्रा खुलती थी  सड़क अधिकारी निष्चित समय पर निष्चित मात्रा मेंगाड़ियॉं पार कराते हैं । सब यात्रियों का परिचय हुआ । अभी तक दो बसों में अलग अलग यात्रा की थी तथा कमरे भी अलग अलग थे । अलग अलग कमरे होने से व्यक्तिगत आराम और सुविधा तो रहती है लेकिन दल का सा एहसास नहीं हो पाता है ।

चाय के साथ जैसे  जोष आ गया और एक  के बाद एक भजन गाये जाने लगे । दूसरे दल की कुछ महिलाऐं भी अपने को रोक नहीं सकीं और अपनी किताबें लेकर आ गई और भजन गाने लगीं । दिल्ली की श्रीमती विजय लक्ष्मी गुप्ता  चेन्नई की थीं  उन्होंने  संस्कृत में षिव स्तुति प्रस्तुत कर मुग्ध कर दिया । एक भक्तिमयी संगीतमयी संध्या ने जैसे  रंग बिखरा दिये हों सुनने  लिये बादल भी  नीचे आकर कमरे में आने का प्रयास करने लगे । बादल एक दूसरे से टकरा गये रिमझिम वारिष ने जैसे  ताल देना  प्रारम्भ कर दिया । लगा  देव लोक में आ गये ।

तभी ष्शेरपा अपना बड़ा सा कैसरोल लेकर आ गये ‘ ‘ सूप ,सूप’ हम सब एक दूसरे का मुॅंह देखने लगे । इतनी जल्दी खाना अभी तो चाय पी है । बाहर बादल होने के बावजूद सूर्य का उजाला था । वहॉं आठ बीस का समय अवष्य था पर हमें छः का  सा ही समय लग रहा था । गर्म गर्म टमाटर का सूप मिला साथ ही खट खट  तीन कैसरोल और आ गये ,‘ आज तो खिचड़ी ही बन पाई है’ प्रमुख शेरपा बोला । लेकिन गरम गरम खिचड़ी पापड़ अचार उस समय बहुत अच्छे लगे ।साथ ही निर्देष मिला आगे की यात्रा के लिये तैयार हो जायें । घड़ी नौ बजा रही थी  आसमान लाल हो रहा था सूर्य को  विदा  भी दे रहे थे । अपना अपना बैग समेट सब गाड़ी के लिये उतर आये। हल्की हल्की वारिष हो रही थी गाड़ियॉं तो खड़ी थी  हाथ में नंबर  लेकर अपनी अपनी  गाड़ी ढूंढने लगे । गाड़ी तो मिल गई पर ड्राइवर नदारद था । एक बंद  दुकान के सामने बैठ गये  हमारी गाड़ी के सहयात्री  महेन्द्र भाईसाहब व शोभा भाभी थे ।

कुछ देर बाद सभी गाड़ियों के ड्राइवर दिखने लगे हमारी गाड़ी का ड्राइवर एक बाईस चौबीस साल का चीनी जवान था । संभवतः झांग मू की लड़कियों में बहुत लोकप्रिय क्योंकि दस बजे के आसपास  हमने यात्रा प्रारम्भ की झांग मू के बाजार से निकल कर पहाड़ी सड़क तक के रास्ते अनेकों लड़कियों से वह  हंसता बोलता गया । लगा बहुत हंसमुख लड़का है ।

परंतु उस स्थान से बाहर होते ही जैसे वह दूसरा व्यक्ति बन गया । चुप गुस्सैल बात बात में झल्लाने वाला । हम लोगों कोबता दिया गया था कि  चीनी अपने वतन के  खिलाफ या उसकी व्यवस्था के खिलाफ कोई बात नहीं सुन सकते हैं  वे बहुत वतन परस्त होते हैं उनसे किसी प्रकार से काम की बात के अलावा कोई भी बात करने की कोषिष न करें । यह न समझें कि ये हिन्दी या अंग्रेजी नहीं जानते  होंगे पर ये आपसे केवल चीनी में ही बात करेंगें । वे अपना कर्तव्य करेंगे पर आप किसी प्रकार की सहानुभूति की अपेक्षा न करें । गाड़ी में बैठते ही उसने चीनी  लोक धुनों की कैसेट चला दी और उस पर थिरकता सा गुनगुनाता चल दिया । वास्तव में धुनें बहुत  कर्णप्रिय थी । बहुत पूछने पर बताया कि फसल पकने पर खेतों में नाचते  हुए फसल काटत हुए गा रहे हैं । लेकिन वैसे  पूरी यात्रा में हम लोंगों के साथ उसने  एक भी ष्शब्द नहीं बोला उसकी भृ-कुटि हमेषा टेढ़ी ही रही यहॉं तक कि  यदि कोई दैनिक आवष्यकता हेतु भी गाड़ी रोकने के लिये  कहता तो झल्लाता । यह यात्रा के प्ररम्भ में ही  ज्ञात हो गया था ।

जहॉं से एक तरफा मार्ग पार करना था वहॉं  पैट्रोल भरवाने के लिये गाड़ी रोकी गोयल साहब ने लघुषंका जाने के लिये गाड़ी  से उतरना चाहा तो जोर से घुड़का परंतु गोयल साहब ने कहा मजबूरी है । वारिष झमाझम बरसने लगी थी आगे संकरा रास्ता था जोर देकर उतर कर हल्के हो आये  पर वह गुस्सा करता ही रहा ।  उधर मान सरोवर जाने वालों की गाड़ियॉं पंक्तिबध्द होने लगी बार बार ड्राइवर की ठेढ़ी भृकुटि देख रहे थे  अगर ऐसे यात्रा करनी पड़ी तो कैसे करेंगे अगर अपने यहां का ड्राइवर होता तो उसी समय छुट्टी हो जाती । लग रहा था बताओ एक ड्राइवर से भी डरना पड़ रहा है ,परंतु मजबूरी थी ,बहुत कुछ सुन रखा था ,यदि उक बार अंदर तो बाहर का सूरज तो क्या दोबारा सांस लेना भी भूल जाओगे ।। यह तो  बता ही दिया गया था कि पतला  संकरा पहाड़ी रास्ता है ऊपर से ऊबड़ खाबड़ । वारिष ने पूरा वेग पकड़ लिया था पराया देष जहॉ  पर जरा सी गलती की सजा केवल जेल है । चुपचाप रास्ता पार हो जाये  यही सोचकर चुप्पी लग गई । चीनी ड्राइवर संगीत के बहुत ष्शौकीन होते हैं  चीन में राजकपूर की फिल्मों के गाने बहुत पसंद किये जाते हैं हमसे  बताया गया था कि दो चार  राजकपूर की फिल्मों के  कैस्ेाट इन्हें भेंट कर देना  ये  खुष हो जायेंगे  लेकिन हमें याद नहीं रहा था

अब अंदर ही अंदर अफसोस हुआ। यह तो अच्छी तरह से पता चल गया था कि वह हिन्दी जानता है क्योंकि अन्य ष्शेरपाओं से वह  टूटी फूटी हिन्दी ही में बात कर रहा था। यात्रा में हमारे साथ नौ गाड़ी और दो ट्रक थे । हर गाड़ी में एक एक ष्शेरपा बैठता था और ट्रकों में रसोइया आदि ।  कुछ ष्शेरपाओं के नाम थे  पेम्बा , प्रेम , दादा कामी , नीमर , नेम्बा आदि । इनमें प्रेम बहुत अच्छा गाता था और बहुत हॅंसमुख था । बहुत ही कर्णप्रिय धुन में  पेम्बा ने एक  लोक गीत सुनाया

तेगू छे माटी पेगू छे  गुंदो

ते माथा आसा छे

तीमती रैसा आर के रोबड़ी

ते मते आसा से 

(; मानेस्टरी के पार गुम्फा, आपका पड़ोसी आपका प्रेमी हो जायेगा )

अभी तो प्रकृति का भयंकर रूप देखने को मिल रहा था । बाहर घोर अंधकार केवल दूर दूर तक गाड़ियों की रोषनी के बीच दिखती पहाड़ी झलक ,मिट्टी गाद से भरी सड़क एक तरफ से रिसती पहाड़ियॉ दूसरी तरफ से कभी नदी की घेार गर्जना तो कभी एकदम ष्शांति । पानी की आवाज से और गाड़ी की रोषनी  से लगता न जाने कितनी गहरी खाई है ।   

 गाड़ियॉं चल पड़ी लेकिन अनहोनी न हो इस आषंका के साथ । गाड़ी का ष्श्ीषा खोल नहीं सकते थे क्योंकि तेज बौछारें थी वैसे भी तीखी हवा चल रही थी । नीरवता मन में उतर चुकी थी लेकिन बाहर नटराज का नृत्य चल रहा था। स्वतः मन ही मन ओम नमः षिवाय का जाप चलने लगा । सभी सवारियॉं बीच बीच में नींद का झोंका ले लेतीं । वारिष ने भयंकर रूप ले लिया था गाड़ी पर पानी मोटी धार के रूप में पड़ रहा था । गाड़ी जरा भी रुकती तो आषंकित बाहर झांकने का प्रयास । अपने अपने ष्शॉल पैरों पर डाल लिये । मन ही मन भोले बाबा से प्रार्थना की ,‘ हे बाबा कुछ भी हो अपने दर्षन 

अवष्य देना ,मौसम ठीक करदो बाबा जिससे यात्रा का आनंद ले सकें ।


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