अदभुत् धाम कैलाष मान सरोवर
मया सृष्टि स़्त्रष्टु- राधा वहति
विधि हुत या हवि र्या च होत्री
ये द्वे काले विधितः श्रुति विषय
गुणा या स्थिता व्याप्य विष्वम ।
या माहु सर्व बीजः प्रकृतिरिति
यथा प्राणनिः प्राणवन्तः
प्रत्यक्षामिः प्रपन्नस्तनुमिरवतु
अस्मामिरष्टा - मिरीषः ।।
(; षिव जी उस जल के रूप में हमें प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं जिसे ब्रह्मा ने सबसे पहले बनाया उस अग्नि के रूप में दिखाई देते हैं जो विधि के साथ दी हुई हवन सामिग्री ग्रहण करती है उस होता के रूप में दिखाई देते हैं जिसे यज्ञ करने का काम मिलता है उस चंद्र और सूर्य के रूप में दिखाई देते हैं जिसके कारण सब जीव जी रहे हैं ; इस प्रकार , जल , अग्नि, होता सूर्य ,चन्द्र, आकाष, पृथ्वी और वायु के इन आठ ; प्रकृति के , प्रत्यक्ष रूपों में भगवान षिव सबको दिखाई देते हैं वे आप सबका कल्याण करें )
कैलाष षिव का धाम है । माना जाता है मॉं पार्वती के साथ वहॉं षिव निवास करते हैं । षिव के धाम की कल्पना ही की जा सकती है और यदि उस धाम के प्रत्यक्ष दर्षन हो जायें तब उस सौभाग्य का वर्णन करने के लिये मॉं वाणी की सहायता लेनी पड़ेगी। जिस अगम्य अगोचर धाम का वर्णन मॉं वाणी कर सकती हैं वह धाम भी अगम्य है । हम संसारी तो इसलोक के षिव धाम का वर्णन करने में अक्षम पा रहे हैं । स्वर्ग में जो स्थान बैकुंठ का है पृथ्वी पर वही स्थान कैलाष का है। जो बैकुंठ है वही कैलाष है।
पुराणों में ‘काषी केदार महात्म्य’ में कैलाष का वर्णन मिलता है उसके अनुसार कैलाष दो हैं । एक महा कैलाष और एक भू कैलाष। महा कैलाष षिव का निवास है वह अगम्य अगोचर है । ब्रह्मांड के महोदक में एक लाख योजन कनक भूमि है। उस स्थान की ऊॅंचाई भी लाख योजन है वही महाकैलाष है । उस स्वर्ण भूमि के चारो ओर भी पचास हजार योजन विस्तृत रजत भूमि है और बीस योजन तक रजत घेरे से ऊॅंचाई से घिरी है । आठ दिषाओं में आठ मणियों के द्वार हैं। हर द्वार पर महागण नियुक्त हैं। पूर्व द्वार पर महात्मा विघ्नेष,अग्निकोण पर महागण भृं़िगरिष्ट,दक्षिण द्वार के रक्षक महाकाल,नैतृत्य कोण के संरक्षक षिव के अंग से उत्पन्न वीरभद्र हैं । पष्चिम द्वार की रक्षक महाषास्ता हैं । वायव्य कोण की रक्षिका दुर्गा देवी हैं । उत्तर द्वार के द्वारपाल सुब्रह्मण्यम हैं तथा ईषानकोण के द्वार रक्षक ष्शैलादि गणनायक हैं । इन गणनायकों के अनगिनत अनुचर हैं ।
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