बाबूजी ग्लेषियर , फूलों की घाटी आदि सभी दुर्गम स्थलों की यात्रा कर आये थे लेकिन जो सौंदर्य उन्होंने कैलाष यात्रा में पाया वह अन्य कहीं नहीं था । बद्री नाथ ,केदारनाथ ,गंगोत्री ,यमुनोत्री आदि स्थलों से हम बहुत प्रभावित हुए थे लेकिन उन्होंने कैलाष के आगे उसे बिलकुल नकार दिया । रास्ता तो उसा सा ही है समझ लो पर ऊपर तो जो है मैं बता नहीं सकता। चित्रलिखे से हम कल्पना करते एक झुरझुरी सी आती और साथ ही मन में संकल्प लेते हम भी जायेंगे । अभी समय नहीं है पर जायेंगे जरूर । मालपा कॉंड ने कुछ समय को आगे बढ़ने पर मजबूर कर दिया । कच्ची गृहस्थी बच्चों की जिम्मेदारी,अभी तो बहुत स्थल हैं देखने के लिये अगर सबसे सुन्दर वस्तु सबसे पहले देख ली तो बाकी कुछ भी देखने में मजा नहीं आयेगा । उसकी तुलना ही करते रहेंगे । और फिर तीर्थ करने की अभी उम्र भी नहीं है ।
पर कैलाष यात्रा में यह धारणा कितनी गलत साबित हुई है । वैसे भी जब ऊॅचे ऊॅंचे पहाड़ों पर बैठे देवी देवता को देखते हैं तो ष्शारीरिक अक्षमता पहले सामने आ जाती है । युवावस्था ही है जब आप इन स्थानों पर बिना किसी परेषानी के जा सकते हैं । ऊॅंची चढ़ाई खाई खंदक हो कुछ भी हो कूद कर पार कर गये । उम्र बढ़ने के साथ सॉंस की तकलीफ घुटनों की तकलीफ । ऐसे में ऊॅंचाई पर बैठे देवी देवताओं से कहॉं मिल सकते हैं । सभी देवी देवता ऊॅंचे स्थानों पर ही अपना स्थान बनाकर बैठे हैं या घने जंगलों में बीहड़ों में एकांत स्थानों में इतने भव्य मंदिर क्यों और कैसे बने ? बद्रीनाथ,केदारनाथ ,गोमुख, गंगोत्री ,यमुनोत्री,आदिबद्री ,पंच केदार आदि मंदिरों का निर्माण कैसे हुआ होगा आष्चर्य होता है ।
ग्लोबल वार्मिंग और आधुनिक सुविधाओं के चलते ये तीर्थ अब सहज सुलभ हो गये हैं और लाखों की संख्या में यात्री पहुॅचने लगे हैं लेकिन पूर्व में ऐसे सभी तीर्थ पर जाना बहुत कठिन माना जाता था ।
मुझे याद आता है अब से पचपन वर्ष पूर्व हमारी दादी चार धाम की यात्रा पर गईं थीं तब पूरा परिवार एकत्रित हुआ था जैसे उन्हें आखिरी विदा दी गई हो । हमारे पिताजी ताउजी चाचाजी आदि पॉंचो पुत्र उन्हें ऋषिाकेष तक छोड़कर आये थे । तब चार धाम की यात्राऋषिाकेष से पैदल जाती थी । जबतक यात्री दल ऑंखों से ओझल नहीं हो गया थे बेटे खड़े रहे थे जब पिताजी लौटकर आये थे तब पहली बार हमने पिताजी को रोते देखा था‘पता नहीं जीजी ;हम सभी दादीजी को जीजी कहते थे, अब देखने को मिलेगी या नहीं । छः महिने बाद जब यात्री दल के साथ वापस आईं तो जैसे पुर्नजन्म हुआ हो । विषद भोज और भंडारा करके जष्न मनाया गया था कुछ कुछ वही परिस्थिति कैलाष मानसरोवर की यात्रा पर बाबूजी के साथ थी परन्तु उतनी विषम नहीं थी । तीन साल से यात्री दल सकुषल लौट ही रहे थे इसलिये अधिक आष्वस्ति थी बस यही चिन्ता थी किसी कारण तबियत न बिगड़ जाय या खाई आदि पार करते कोई अनहोनी न हो जाये ।
उम्र के पड़ाव कदम बढ़ाते गये निराषा गहरी उतरती गई कैलाष मानसरोवर यात्रा अब संभव नहीं है। लेकिन जिसदिन काठमांडू से होते हुए लैंडक्रूजर गाड़ी से यात्रा के विषय में ज्ञात हुआ छिपी इच्छा ने सिर उठा लिया ष्शायद यात्रा अब इतनी कठिन नहीं रही अभी जाया जा सकता है।पत्र पत्रिकाओं में यात्रा के रोमांचक वर्णन पढ़ने को मिल रहे थे लेकिन स्थिति स्पष्ट नहीं थी कि हम जा सकते हैं या नहीं किसी अनुभवी से पूछा जाय ।
मॉं वाणी पता नहीं हमारे मुॅंह से कब क्या कहलवाना चाहती है यह उनकी कृपा पर निर्भर है । दैनिक जागरण से प्रियंका का फोन आया‘आंटी ग्रीष्मावकाष में आप कहॉं जा रही हैं । बिना सोचे समझे कह बैठी ‘मान सरोवर ’ । ष्शायद मन की तहों में छिपी भावना ने सिर उठाया । यद्यपि उन दिनो सबसे अधिक थाइलैंड, मलेषिया ,सिंगापुर जाने के लिये बात हो रही थी जैसे वहॉं जाने की एक बहार थी वहॉं जाना संभव था पर कैलाष मानसरोवर जाने की कहीं कोई बात नहीं थी ।
अनायास कही बात ष्शायद मॉं वाणी ने ही कहलाई थी । षिवधाम जाने की अदम्य लालसा थी ही इसीलिये मन की बात होठों तक आ गई ।
कुछ दिन बाद ही दैनिक पत्रों में समाचार पढ़ा ‘मान सरोवर यात्रा प्रारम्भ ’ पढ़कर पृष्ठ बदल लिया । फिर एक दिन पढ़ा आगरा के बहुत से गणमान्य व्यक्ति विजय कौषल जी महाराज के साथ मान सरोवर यात्रा पर जा रहे हैं जो भी नाम आये वे सभी करीब करीब हमउम्र और परिचित‘ अरे जब सब ये लोग जा सकते हैं तब हम क्यों नहीं जा सकते ?’
‘ना बाबा मेरा सत्संग भजन आदि में मन नहीं लगेगा मेरा ऐसा जोड़ नहीं बैठेगा ,हॉं कोई अलग से टूर जा रहा होगा तो चलेंगे ’ । गोयल साहब ने हाथ खड़े कर दिये
आर्य समाजी परिवार में सिवाय हवन के कोई अन्य धार्मिक गतिविधियॉं होती नहीं हैं सत्संग भजन आदि से कोई वास्ता नहीं रहता है वास्तव में हर समय ऐसे वातावरण में मन रमना मुष्किल था ही । यद्यपि ईष्वर में पूरी आस्था है और ईष्वरीय संरचना से बेहद प्यार।प्रकृति अदभुत् है उसे अधिक से अधिक ऑंखों में उतार लो यह उत्कट अभिलाषा रहती है ।भूली बिसरी स्मृतियॉं सिर उठाने लगती हैं । गढ़वाल मंडल के यात्री दल के साथ चार धाम की यात्रा पर गये उस दल में सभी हम उम्र थे एक दो को छोड़कर उन सभी की धारणा भी धार्मिक स्थलों को मात्र धर्म से जोड़कर चलना नहीं थी
जितने भी धर्म स्थल हैं बेहद खूबसूरत हैं । उन्होने भी मंदिरों में दर्षन लाभ के साथ साथ मार्ग की खूबसूरती का पान किया लेकिन बद्रीनाथ मंदिर में सभी ने गर्भृह में बैठकर अभिषेक कराने की पर्ची कटाई ज्ञात हुआ अभिषेक कार्यक्रम पूरे पॉंच घंटे तक चलता है। श्रध्दापूर्वक सभी यात्री बदरी विषाल के सांगोपांग दर्षन के लिये अंदर चले गये । गर्भगृह से दर्षन की 2100 रु0 की पर्ची कटी थी सब समझे हम इतना खर्च नहीं कर सकते पर क्योकि बस वापस एक बजे जानी थी हम आस पास के दर्षनीय स्थलों को देखने के लिये रुक गये आधा घंटे का समय बदरी विषाल के स्नान व श्रंगार के दर्षन करके हम आस पास के पौराणिक स्थलों को देखने निकल गये ।
हमने वहॉं देष का आखिरी गॉंव माना देखा सरस्वती नदी , भीम पुल ,वसुधारा ,गणैष गुफा,व्यास गुफा (;जहॉ महाभारत की रचना हुई) ष्शेषनाग के नेत्र आदि स्थल देखे । बदरी वृक्ष जहॉं कहते हैं लक्ष्मी जी अब भी आती हैं । साढ़े बारह बजे जब हम बस पर वापस आये ज्ञात हुआ वे पूर्ण अभिषेक प्रक्रिया के दर्षन लाभ कर अभी वापस आये हैं ईष्वरीय सत्ता के नीचे वे भी थे और हम भी दोनों अपनी अपनी जगह प्रसन्न थे तो साथ ही उन्हें यह दुःख भी था कि वे यहॉं इन स्थलों को नहीं देख पाये
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