एक के बाद एक कमरे गैलरी से पार करते जा रहे थे वे खत्म ही नहीं हो रहे थे चलते-चलते थकने लगे और समयभी हो गया था लौटने का ,इसलिये लौट आये। कई इमारतें 1150 सन् तक की है 1924 से इसकी देखभाल का जिम्मा वहाँ के स्थानीय निकाय ने संभाल लिया है।
हमारे कुछ साथी झील के किनारे बनी संगमरमर की चौकियों पर बैठकर झील का आनंद लेने लगे झील में विशाल राजसी वोट दिखाई दे रही थी। कुछ दूर पर ही एक लामा टेंपल था लेकिन वहाँ तक जाने की हिम्मत नहीं हुई।पहाड़ी पर पैगोडा था जिसमें बुð की विशाल मूर्ति थी। आधे रास्ते तक तो हम चढ़े लेकिन समय और हिम्मत चाहिये थी इसलिये लौट आये अंधेरा झुकने लगा था इसलिये चल दिये।
बाहर पंक्तिबद्ध दुकाने थीं वहाँ पर कपड़े खिलौने कलात्मक वस्तुऐं मिल रही थी। सामान सब अच्छा था। बस वाला शोर मचा रहा था जल्दी करिये-जल्दी करिये फिर भी सबने कुछ-कुछ लिया।और एक के बाद एक दुकान देखी जा रही थी बार बार पुरातत्व समय की वस्तुऐं और ब्ल्डििंग देखते देखते सब बोर तो हो ही रहे थे एक सा देखते देखते मन दूसरी ओर मुड़ जाता है । सबको सामान खरीदने में मजा आने लगा जो थकी हुई थीं वो नीचे नहीं उतर रहीं थीं हॉं बस से ही सबसे चींजें मंगा कर ले रही थीं उस समय अंधेरे की परवाह नहीं थी हॉं बस वाला असहज हो उठा वे बस ड्राइवर की ओर देखती और फिर किसी न किसी वस्तु की ओर भाग कर बढ़ देतीं,ःअरे बहुत अच्छी है, बहुत रीजनेबुल ,सुनकर अधिकांश ने झांक झांक कर देखना प्रारम्भ कर दिया। बस वाले ने धमकी दी फिर आगे कुछ नहीं दिखाउँगा क्योंकि स्मारक बंद हो जायेगा तब सब छोड़ छाड़ कर भागकर बस में चढ़ गईं, वहाँ से हम सब सुप्रसि( चैंगलिग म्यूजियम गये।
बस के पास एक विकलांग लड़की को एक वयोवृ( महिला व्हील चेयर लिये खड़ी थी। उसने हमसे खाली बोतलंे मांगी संभवतः उन्हें बेचकर वह जीवन-यापन करती थी लड़की व महिला दोनों ही साफ कपड़े पहने ठीक से थीं कहीं
भी भिखारिन जैसी नहीं दिख रही थी।यद्यपि यह भी भीख का तरीका था लेकिन आत्म सम्मान भी था ।
सैफरीना ने बस एक जैड आर्ट गैलरी के सामने रोकी सामने ही ग्रीन जैड व हल्के दूधिया रंग के जैड पत्थर से पूरी सीनरी सी बनी थी। बड़े-बड़े कलात्मक शो पीस रखे थे। यहाँ भारत में बड़े-बड़े माल में जहाँ क्रिस्टल का या ज्वेलरी का शोरूम होता है दो फुट तक ज्यादा से ज्यादा जैड की कलात्मक कृतियाँ दिखती हैं लेकिन वहाँ तो दस-दस फुट ऊँचे तक अम्बर लाल, हरे काले रंगों में थी, महीन कारीगरी देखने लायक थी।
एक अन्य जैड फैक्टरी गये वहाँ पर जैड की कटिंग होती, घिसाई और बनाना सब दिखा रहे थे वहीं पर हीरे आदि की घिसाई कटिंग आदि की बड़ी फैक्टरी थी। चाइना ने नकली हीरा भी बेहद चमकीला और आभा वाला बना लिया है उसमें औेर असली हीरे में जौहरी ही पहचान कर सकते हैं।कहा जाता है भारतीय जौहरी हीरे के हर सैट में कुछ हीरे चाइना के जरूर लगाते हैं ।
धीरे-धीरे झुकती शाम में बीजिंग का अपना सौंदर्य था।लेकिन ईश्वर ने पेट एक एसा अंग बनाया है वह सब को पीछे छोड़ देता जब वह कुलबुलाता है तो केवल वही नजर आता है । अब फिक्र हुई खाना कहॉं खाया जाये जिससे कुछ अच्छी सी जान पड़े।बस वाले की शरण ही गये । उसने बताया चीन मंें भी जगह-जगह भारतीय रेस्टोरंेट उपलब्ध हैं। उस ने कहा कि आपको गंगेज होटल ले चलता हूॅं , गंगेज रैस्टोरंेट जा रहे थे कि एक स्थान पर पार्क में काफी युवक-युवती नृत्य करते दिखाई दिये वे उनके काम के बाद मौज-मस्ती के कुछ क्षण थे। वहीं पर कुछ स्टाल लगे थे वे खा-पी रहे थे। बैंड बज रहा था म्यूजिक चल रहा था। संभवतः मध्यम वर्गीय लोगों के लिये एक मनोरंजन का साधन था। हमें बताया गया इस प्रकार के ओपन रेस्ट्रा बहुत चलते हैं।बस में सब चुप चुप से थे क्योंकि थकान ने अब बोलना शुरू कर दिया था पर देख सब पूरी उत्सुकता से रहे थे ।शैलबाला भाभी की कलम बराबर चल रही थी इतनी हिलती बस में कैसे लिख रही हैं । मनोरमाजी बहुत चुप चुप सी थीं अच्छा नहीं लग रहा था ।
गंगेज रैस्ट्रोरेंट में शु( भारतीय खाना मिला। चाइनीज लड़कियाँ सलवार सूट में थी तथा हिंदी बोल रही थी। यद्यपि रैस्ट्रोरेंट छोटा सा ओपन रैस्ट्रोरंेट था इतना छोटा कि चार चार कुर्सी की पॉंच मेज पड़ी थीे। ऊपर ही एक कमरे में परिवार रहता था उस परिवार की दोनों लड़कियाँ वेट्रेस का काम कर रही थी। होटल में माहदाल, नॉन, रोटी, चावल, सब्जी, रायता सब गर्मागम मिला तो बहुत अच्छा सा लगा।पतली सीढ़ी चढ़कर आठ फुट लंबे चौड़े कमरे में पूरा परिवार रह रहा था । हम ऊपर जाकर उनका घर देख आये,एक आम घर एक कमरे में जो संभव हो सकता था सामान था एक कोने में गैस रखी थी कुछ
डिब्बे डिब्बियॉं कुछ बर्तन ,पर्दा लगा कर आलमारियों में कपड़े रखे थे । उन्हीं लड़कियों ने बताया कि भारतीय खाना खाने हर देश के लोग आते हैं और पसंद करते हैं । उन लड़कियों की आंखों को भारतीय कर दें तो हम भारत के ही किसी सड़क किनारे के रैस्टोरैंट में अपने को पायेंगे ।अहा ! असीम तृप्ति । पेट भरा तो जग हंसा , बस चलता तो वहीं पसर जाते वहॉं से कोई उठना ही नहीं चाह रहा था खाना खाकर भी वहीं कुटुक कुटुक कर रहे थे । चाह रहे थे कि और कोई ग्राहक न आये पर उठना तो था ही । बाकी होटल तक यात्रा तो स्वाभाविक थी ऊॅघते ही जाती ।
दूसरे दिन प्रातः हम चीन की सुप्रसि( दीवार, संसार का सातवां आश्चर्य देखने के लिये निकलना था। चीन की दीवार के लिये कहा जाता है कि यही एक मात्र पृथ्वी का निर्माण है जो अन्तरिक्ष से दिखता है लेकिन नवीनतम अंतरिक्ष यात्रा से यह धारणा भ्रामक सि( हुई है क्योकि अंतरिक्ष से चीन की दीवार पृथ्वी के रंग में घुलमिल जाती है।ग्रेटवाल अंतरिक्ष से बिलकुल नहीं दिखती वह केवल 65,617 फिट तक की ऊँचाई से दिखती है और 196,850 फुट की ऊँचाई से दिखना असंभव है यह उसके समान है कि 2688 मीटर ऊँचाई से हम एक बाल ढूँढ़े। जो चीज वास्तव में दिखती है वह है ब्रह्मपुत्र नदी,और चीन में उसका 67 प्रतिशत भाग बहता है भारत में वह 33 प्रतिशत है वहाँ यह सांगपो के नाम से जानी जाती है विश्व में चीनी राष्ट्रपिता सुनयात सेन के द्वारा चीन के विकास हेतु नक्शे बनवाये गये जिसमें सांगपो नदी के जल को उत्तरी चीनमें लेे जाना भी शामिल था। ;तब ही ब्रह्मपुत्र के उद्गम स्त्रोत का पता चला कि यह मानसरोवर झील से 2400 किलो मीटर की यात्रा करती है और चीन ने वह कर दिखाया।
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